‘चटक म्हारा चम्पा’ की ग्यारहवीं कविता
यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।
महल की कमाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाड़ी
महल की कमाड़ी रे महल की कमाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे
गरज पुरावा अई गज गामण
चाली तो अणऋतु चाली ग्यो कामण
नींद पराई वेईगी जग की
अब नींदड़ली ने छोड़ो म्हारा सायबा अनाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाड़ी
मेंहदी महके मतवारी ने कंकू करे किलोल
चाँदा ने दूँ चाँदणी को मूँडे माँग्यो मोल
पाणी न्ही दे मॉंगवा म्हारी पायलड़ी का बोल
नवलख तारा को तप टूटीग्यो
पेचां वारी पागॉं हार्यो चाँद सो जुवाड़ी
चड़ चूं चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाड़ी
हाँझ बापड़ी आँसू देई ने लेईजा रूप उधार
रोज परोड़े ऊषा आवे अई-अई करे रे गुहार
अधकाची कलियाँ पर म्हारा जोबनियाँ को भार
बारई महिना की पटराणयाँ भी
ओढ़े म्हारी रूप छटा की उतरी-पुतरी साड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाडी
नाचे जद म्हारा सपना तो ढबे नाचता मोर
आस उठावे घूँघटियो तो लाजाँ मरे चकोर
टीस उठे ऐसी उठे ज्यूँ मन्दरिया में चोर
कूँपर के ऊपर अम्बर है
और पीरा-पीरा पानड़ा पड़े रे पिछाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाड़ी
ऊँचा कोट कंगूरा कूदी-कूदी नगर उजाड़
लोक-लाज का समदर कूदी, कूदी कोड़ पहाड़
अग-जग की रीतड़ल्याँ तोडी अब तो खोल कमाड़
प्रीतड़ली की पूनम तरसे
मूँछड़ली को मान अब तो राख रे खिलाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाडी
डूबी डूबी आँखड़ल्याँ की कोर नींदा तू खोल
रूप कमल की पाँखड़ल्यॉं ती भँवरा दई दो बोल. -
निठरई में निकरे रे निठार फागणियो अणमोल
चम्पा वरणी कोयल कूके
यो ही करनो थो तो म्हारी लाज क्यूँ उघाड़ी
चड़ चूँ चूँ चूँ चूँ बोले रे थारा महल की कमाड़ी
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संग्रह के ब्यौरे
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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