श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘शीलवती आग’ की सत्ताईसवीं कविता
हम भूल गए हैं वेदराग
‘शीलवती आग’ की सत्ताईसवीं कविता
हम भूल गए हैं वेदराग
(आर्य समाज, बदायूँ के शताब्दि समारोह 12, 1, 14 अक्टूबर 1975
के अवसर पर महर्षि दयानन्द के प्रति एक भावांजलि।)
वह शक्ति नहीं वह भक्ति नहीं
आसक्ति मात्र बस रही शेष।
हे क्रान्ति देव! तुम देखो तो
अब वहाँ जा रहा आर्यदेश?
आसक्ति मात्र बस रही शेष।
हे क्रान्ति देव! तुम देखो तो
अब वहाँ जा रहा आर्यदेश?
हल्की-सी आँधी में बरगद तक
उखड़ गए निर्मूल हुए।
अनुकूल दैव भी क्यों होगा
जब हम खुद ही प्रतिकूल हुए।
पदचिह्न तुम्हारे मिटे नहीं
पर हमसे जाता नहीं चला।
पहिले पूजो फिर बिसराओ
यह सीखी हमने नई कला।
बस धूर्तनीति ही प्रमदा है
है लोकनीति निश्शेष यहाँ।
वेश्या से बदतर राजनीति
विषकाल विषम परिवेश यहाँ।
सौ साल तुम्हें हम जी न सके
किस मुँह से गायें यशोगान?
हम प्रायश्चित तक कर न सके
मत देना हमको क्षमा दान।
जो तुमने जीवन भर साधा
हम भूल गए वह वेदराग।
निर्गन्ध फूल-सा जीवन है
कण मात्र नहीं परिमल पराग।
पथ भूले, भटके, ठिठके हैं
फिर वेद पन्थ दिखलाओ तो।
हे! आर्य-क्रान्ति के आदि पुरुष!
तुम एक बार फिर, एक बार फिर आओ तो।
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संग्रह के ब्यौरे
शीलवती आग (कविता संग्रह)
कवि: बालकवि बैरागी
प्रकाशक: राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर, मोतिया पार्क, भोपाल (म.प्र.)
प्रथम संस्करण: नवम्बर 1980
कॉपीराइट: लेखक
मूल्य: पच्चीस रुपये
मुद्रक: सम्मेलन मुद्रणालय, प्रयाग
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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