श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की तेईसवीं कविता
‘आलोक का अट्टहास’ की तेईसवीं कविता
मैं रहा टेसू-का-टेसू
कोई न कोई
रिश्ता है जरूर
आम और कोयल में।
ये गाए
और वो बौराए
याकि
ये बौराए
और वो गाये
कैसे हो जाता?
रिश्ता है जरूर
आम और कोयल में।
ये गाए
और वो बौराए
याकि
ये बौराए
और वो गाये
कैसे हो जाता?
पता नहीं
पहल कौन करता है ?
ये उसपर मरती है
या वो इसपर मरता है ?
पर कोई-न-कोई रिश्ता
है जरूर!
जब मैंने पूछा
पड़ोसी पलाश से
कि गुरु!
तुम्हें तो जरूर
जानकारी होगी
इस अन्तर्यामी अनुराग की
तो वो बोला-
भाई, कसम खाता हूँ
मेरी अपनी आग की
मुझे कुछ पता नहीं।
कोई चक्कर-वक्कर हो तो
कोयल की कोयल जाने
आम की आम जाने
इन बौराते-गाते दिलों की
बातें राम जाने।
जी हाँ!
मैं खड़ा हूँ लाल सुर्ख
गाल लिये
पर ये काली-कलूटी
कलमुँही कोयल
फूटी आँख भी नहीं देखती
मेरी ओर
और नापकर अनन्त आकाश
के अनजाने छोर
अनायास घुस आती है
अमराई की झमकारियों से।
चढ़ जाती है
ऋतुराज के रति महल की
अनगिन सीढ़ियाँ
और फागुन से आषाढ़ तक
कभी-कभी तो
फागुन से सावन तक
गाती रहती है
अनंग के अनगाए गीत
और जब तक
नहीं जाता
वसन्त बीत
तब तक जलाती रहती है
मेरा कलेजा।
झरता हूँ मैं पात-पात
अकसर सारा-सारा दिन
और पूरी-पूरी रात सुनता हूँ
इनके हूक भरे संवाद
छन्द-छन्द
देखा नहीं जाता मुझसे
ये केलि-कीर्तन
कर लेता हूँ
अपनी आँखें बन्द।
आम लुटता है बौर-बौर
कसकता है मेरा पोर-पोर।
अब किस ज्योतिषी से
जँचवाऊँ मेरी कुण्डली
किस काम की ये ललाई
जिसपर रीझ नहीं पाई
एक भी करमजली।
आखिर मैं भी तो हूँ
इसी ऋतुराज का एक हिस्सा
पर ये दोनों
मस्त हैं अपने-अपने
राग में, अनुराग में
और मैं रात-दिन
जल रहा हूँ
अपनी ही आग में।
अब
जो गा रही है उसे गाने दो
जो बौरा रहा है उसे बौराने दो
मैं रहा टेसू-का-टेसू
मुझे अपने टेसुए, इसी तरह,
यूँ ही बहाने दो।
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संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
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