यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।
छोटी सी विनती
मेरी यह छोटी सी विनती रखना मालिक ध्यान में
मुझे हमेशा पैदा करना, मेरे हिन्दुस्तान में
प्यारे हिन्दुस्तान में
इसके सरवर, इसके सागर, इसके पर्वत प्यारे हैं
इसकी नदियों के पानी में, अमृत की मनुहारें हैं
मधु-पराग से भरे फूल हैं, भँवरों की गुंजारें हैं
अमृत से भी ज्यादा मीठापन है इसके धान में
मुझे हमेशा पैदा करना, मेरे हिन्दुस्तान में
प्यारे हिन्दुस्तान में
गोरे-काले, भोले-भाले, इसके लोग सुहाते हैँ
बड़े गजब हैं, अंगरों पर, हँस-हँस कर चल जाते हैं
धुन के पक्के, मन के सच्चे, चाहा कर दिखलाते हैं
तू क्या जाने क्या जादू हैं, इनकी सरल जबान में
मुझे हमेशा पैदा करना, मेरे हिन्दुस्तान में
प्यारे हिन्दुस्तान में
चलना, गिरना, उठना, चलना, इनकी अमर कहानी है
मेहनत ही मजहब है इनका, इनके पग तूफानी हैं
साठ बरस के बूढ़ों पर भी रहती जहाँ जवानी है
मेहनत और मुहब्बत शामिल, है जिनके ईमान में
मुझे हमेशा पैदा करना, मेरे हिन्दुस्तान में --
प्यारे हिन्दुस्तान में
मन्दिर, मस्जिद, देवल, द्वारे, तेरे तीरथ स्थान हैं
जन-जन के मन-मन में तेरी, दया, दुआ का गान है
जहाँ सभी कुछ तेरा है और, जो तेरा वरदान है
तू मुसकाता रहता जिसके, सोहन और सुभान में
मुझे हमेशा पैदा करना मेरे हिन्दुस्तात में
प्यारे हिन्दुस्तान में
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963. 2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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