श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘आलोक का अट्टहास’ की दूसरी कविता
स्वभाव
‘आलोक का अट्टहास’ की दूसरी कविता
स्वभाव
डराओ मत
बिजली को बादल से
सोने को आग से
शून्य को अंक से
और मछली को पानी से।
मुक्त कर लो अपने आपको
इस डरावनी मानसिकता
और पागल परेशानी से।
बिजली को बादल से
सोने को आग से
शून्य को अंक से
और मछली को पानी से।
मुक्त कर लो अपने आपको
इस डरावनी मानसिकता
और पागल परेशानी से।
बादल ही तो है बिजली का घर
आग ही परखती है सोने को
शून्य क्यों डरेगा अंक से?
और मछली?
मछली पानी से नहीं तो
क्या प्यार करेगी पंक से?
अगर ये
डरने लगे एक-दूसरे से
तो हो गया काम!
एक-दूसरे को बाँहों में ही
मिलता है इन्हें आराम।
ये बातें मुझे तब सूझीं
जब लोग डरा रहे थे
उन्हें चुनाव से
शायद लोग परिचित नहीं हैं
बिजली, सोने, शून्य
और मछली के स्वभाव से ।
-----
संग्रह के ब्यौरे
आलोक का अट्टहास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - सत्साहित्य प्रकाशन,
205-बी, चावड़ी बाजार,
दिल्ली-110006
सर्वाधिकार - सुरक्षित
संस्करण - प्रथम 2003
मूल्य - एक सौ पच्चीस रुपये
मुद्रक - नरुला प्रिण्टर्स, दिल्ली
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.