बाल-गीत : जूझ गई मौसम से



श्री बालकवि बैरागी के बाल-गीत संग्रह
‘गाओ बच्चों’ का ग्यारहवाँ बाल गीत 




जूझ गई मौसम से

जूझ गई मौसम से पाँखुरी गुलाब की
अब पसीना दीजिये और रोकिये बहार को

एक अजानी आग में जब घिरा चमन
और पराग होने लगा राख में दफन
लग रहा था फूल सब मरेंगे बे-कफन
(तो) कूद पड़ी आँगन में लाड़ली ऋतुराज की
अब तो अर्ध्य दीजिये इस कुन्दनी निखार को
जूझ गई मौसम से.....

काला गगन हो गया है आज सुनहला
हो गया वसुन्धरा का रूप रुपहला
हँस रही है झोपड़ी खुश है दुमहला
पुर गईं हर चौक में राँगोलियाँ पराग की
रूप नया दीजिये इस कुंकुंमी सिंगार को
जूझ गई मौसम से.....

बीस कमल खिल गये हैं देश ताल में
फर्क साफ-साफ है पवन की चाल में
गा रहा हर एक भ्रमर सुर में ताल में
आ गई है बाग में बेला बिहाग की
अब मुक्त पवन दीजिये इस गन्ध को गुंजार को
जूझ गई मौसम से.....
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संग्रह के ब्यौरे 

गाओ बच्चों: बाल-गीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राष्ट्रीय प्रकाशन मन्दिर 
पटना, भोपाल, लखनऊ-226018
चित्रकार: कांजीलाल एवं गोपेश्वर, वाराणसी
कवर: चड्ढा चित्रकार, दिल्ली
संस्करण: प्रथम  26 जनवरी 1984
मूल्य: पाँच रुपये पच्चास पैसे
मुद्रक: देश सेवा प्रेस
10, सम्मेलन मार्ग, इलाहाबाद




बाल-गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।
























 


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