श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की तीसरी कविता
तन को तो मिल गई शरण ओ! दाता तेरे आँगन में
बता देवता कब तक भटकेगा मेरा यह मन बंजारा।
जिस-जिस हाट गया यह निर्धन, उसमें इसको मिली निराशा
इसकी पूँजी गई न परखी, क्वाँरी रही युवा अभिलाषा,
इसको देख, समेट दुकानें, चले गये सारे व्यापारी
भरी दुपहरिया साँझ हो गई, ज्यों ही इसने गाँठ पसारी,
ठहरा दिया इसे तूने भी अपनी अतिथि शाला में
बँधी गाँठ ले काटे कैसे रजनी, यह दर-दर का मारा
बता देवता कब तक.....
सोचा था, तू इसे देखकर रंग महल खुलवायेगा
तू परखेगा इसके मोती, कुछ सौदा हो तायेगा,
पर, माखन से मुँह बिचका कर तू सिर्फ देखता रहा गगरिया
तेरे आँगन आकर मैंने लम्बी कर ली और उमरिया,
जीने को जी लूँगा मैं, चल भी लूँगा काँटों में
किन्तु कहाँ तक रख पाऊँगा, छालों में मैं सागर खारा
बता देवता कब तक.....
सुनता था तू परखैया है, लाखों और हजारों में
तेरी साख बहुत चलती है बड़े-बड़े बाजारों में,
तेरे एक इशारे भर से नीलामी रुक जाती है,
तेरे आगे लाख कुबेरों की पूँजी चुक जाती है,
बता कौनसी खोट दिखाई देती मेरी गठरी में
निर्मम! जो तू कहता मुझसे, आ जाना फिर कभी दुबारा
बता देवता कब तक.....
चाहे मेरा तन ठुकरा दे, पर मन को तो मत ठुकरा
चाहे मेरा मूल्य भुला दे, पर धन को तो मत बिसरा,
यह तेरा निर्माल्य बता मैं वापस कैसे लेकर जाऊँ
तेरे इस अकलंक विरद पर, मैं कलंक कैसे कहलाऊँ,
मैंने कब कीमत माँगी है, मेरे मूक समर्पण की
कब ललचा कर मैंने तेरे आगे रीता हाथ पसारा
बता देवता कब तक.....
मन-महलों में रखा उन्हें जो मुझसे पीछे आये थे
बतला क्या वे मुझसे ज्यादह मँहगे मोती लाये थे,
मुझको ईर्ष्या-द्वेष नहीं है तेरे किसी पुजारी से
रार नहीं है मुझको तेरे द्वारा तृप्त भिखारी से
मेवल मेरा तन सहला कर पल-दो-पल को मत बहला
वर्ना तेरे आँगन में ही होगा मरघट का उजियारा
बता देवता कब तक.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
पूर्व कथन - ‘दरद दीवानी’ की कविताएँ पढ़ने से पहले’ यहाँ पढ़िए
दूसरी कविता: ‘राधाएँ तो लाख मिलीं’ यहाँ पढ़िए
चौथी कविता: ‘रीता पेट भरूँगा कैसे’ यहाँ पढ़िए
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteएक बार फिर वही। इस कोरोना-काल में मनोदशा लगभग जड़वत् हो गई है। इसीलिए आपकी यह टिप्पणी इतने विलम्ब से देख पा रहा हूँ। कृपया अन्यथा न लें और क्षमा कर दें।
Deleteआप मुझ पर सतत् नजर बनाए रखते हैं। आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।