श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की दूसरी कविता
कलाकार की अन्तर्वेदना
जीवन के इस वृन्दावन की महकी-महकी गलियों में
राधाएँ तो लाख मिलीं पर, जसुदा एक न मिल पाई।
ज्यों ही मेरे वृन्दावन पर, फागुन ने डेरा डाला
त्यों ही ऐसा शोर उठा कि मान लग गई हो ज्वाला,
दल के दल तितली-भँवरों के प्यास बुझाने दौड़ पड़े
सबने पाया भाग बराबर फिर भी करते हैं झगड़े
इन कुंजों के शुचि संयम का बाँध तोड़ती, बल खाती
सरिताएँ तो लाख मिलीं पर, जमना एक न मिल पाई
राधाएँ तो लाख मिलीं.....
मुझे निमन्त्रण मिले हजारों, माखन चोरी कर जाओ
जमना तट पर चीर चुरा कर बंसी वट पर चढ़ जाओ
गागर फोड़ो, बाँह मरोड़ो, कर लो कुछ तो मनमानी
वेणु बजाओ, रास रचाओ, हमें नचाओ अज्ञानी,
मचलो-रूठो, मनो-मनाओ, मुकर-मुकर बदनाम करो
ललनाएँ तो लाख मिलीं पर श्रद्धा एक न मिल पाई
राधाएँ तो लाख मिली.....
मेरा ग्वाला वेश देखकर लाखों ने कजरी पाली
साँझ-सवेरे पंथ निहारे, ललक-ललक लट घुँघराली
लाखों अधरों ने चोरी से मेरी मुरली को चूमा है
पनघट जाते इसको सुनकर, लाखों का यौवन झूमा है
यमुना तीरे, कुंज-कुटीरे, इस अल्हड़ आवारा को
मुग्धाएँ तो लाख मिलीं पर ममता एक न मिल पाई
राधाएँ तो लाख मिलीं.....
मैं ममता का प्यासा लेकिन मेरी प्यास रही अनजानी
जो भी मिलती है, कहती है, तुम्हें पड़ेगी भूख मिटानी
किस भाषा में बात करूँ मैं, कैसे अपनी प्यास जताऊँ
कैसे भक्ष्य बनूँ मैं इनका, कैसे इनकी भूख मिटाऊँ
मुझ प्यासे को इन नंगों की इस नंगी रजधानी में
वनिताएँ तो लाख मिलीं पर वरदा एक न मिल पाई
राधाएँ तो लाख मिलीं.....
यह सच है, मैं आँसू पीकर, साँसों को बहला लेता हूँ
आतप, आकुल प्राण पपीहे को समझा-सहला लेता हूँ
कहीं किसी का दर्द मिला तो अंजुरी भरकर पी लेता हूँ
बन्दीगृह का परबस जीवन जैसे-तैसे जी लेता हूँ
इस कारा में आत्म शान्ति के अधिवेशन की अध्यक्षा-
विपदाएँ तो लाख मिलीं पर, सुखदा एक न मिल पाई
राधाएँ तो लाख मिलीं.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
वाह..।
ReplyDeleteजानकारी और रचना बढ़िया।
इस कोरोना-काल में मनोदशा लगभग जड़वत् हो गई है। इसीलिए आपकी यह टिप्पणी इतने विलम्ब से देख पा रहा हूँ। कृपया अन्यथा न लें और क्षमा कर दें।
Deleteआप मुझ पर सतत् नजर बनाए रखते हैं। आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद।