ओ! निष्ठुर पाषाण

श्री बालकवि बैरागी

के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की आठवीं कविता



अब तो परख वेदना मेरी ओ! निष्ठुर पाषाण

अरे ओ! कठिन हृदय पाषाण!


साँस-साँस न्यौछावर कर दी मैंने तेरे पूजन में

शैशव-यौवन-मधुमय जीवन किया समर्पित वन्दन में

किस सीमा तक सहन करूँ मैं अर्चन के अपमान?

                                अरे ओ! निठुर हृदय पाषाण!


नयन नीर से मैंने तेरा पल-पल पर अभिषेक किया

सप्त स्वर्ग की सौख्य सुधा को ठुकरा क्या अविवेक किया!

कब तक रहूँ जगाता मैं सपनों के बता श्मशान?

                                अरे ओ! निठुर हृदय पाषाण!


तेरे यश के गीत सुनाये मैंने पग-पग, गली-गली

जब-जब जग ने पागल समझा, कहते मेरी हँसी चली-

गीतों के कफनों में कब तक दुलराऊँ अरमान?

                                अरे ओ! निठुर हृदय पाषाण!


तेरी खातिर मैंने अपनी कितनी कसमें तोड़ीं

तट पर जाती नाव सैंकड़ों बार प्रलय में मोड़ी

कब तक करता रहूँ बता मैं अनबोले बलिदान?

                                अरे ओ! निठुर हृदय पाषाण!


अन्तिम साँसों के दीपों से करूँ आरती तेरी

परख अगर तू परख सके तो, मौन साधना मेरी

ठकुराई को निठुराई का मत पहना परिधान।

                                अरे ओ! निठुर हृदय पाषाण!

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963










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