मेरा कवि भी हार गया है

श्री बालकवि बैरागी

के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सातवीं कविता



पीड़ाओं के सौ-सौ सागर मैंने हँस-हँस पी डाले

लेकिन तेरे पनघट पर तो, मेरा कवि भी हर गया है।


जिस माटी से मेरे मन के महलों का निर्माण हुआ है

उसे करोड़ों झोंपड़ियों के इन्सानों की मिली दुआ है

हल्दी लगी हजारों क्वाँरी पीड़ाएँ इनमें रहती हैं

मेरे संरक्षण का वन्दन, गुम्बज पर चढ़कर करती हैं


गलबहियाँ तेरी पीड़ा के डाल-डाल मैं लिपट गया

लेकिन तेरी जोगन का तो सचमुच ही अवतार नया है।

                                        मेरा कवि भी हार गया है।



गली-गली, घर-घर जाता हूँ, मैं पीड़ा की प्यास लिये

आँखों, अधरों पर, जीवन का, मदमाता मधुमास लिये,

जहाँ-जहाँ मिलती है पीड़ा, ओक माँड कर पी लेता हूँ

दाता को मधुमास दिया औ’ खुद पतझर में जी लेता हूँ,


घुटनों के बल ओक माँडकर, बोल कहाँ तक बिठलायेगी

पानी, पनघट, पनिहारी का यह तो कुछ व्यवहार नया है।

                                        मेरा कवि भी हार गया है।



जिसकी भी पीड़ा पीता हूँ, तलछट तक पी जाता हूँ,

कसम कफन की, मरते-मरते, बहक-बहक जी जाता हूँ,

पी कर चता हूँ तो पीछे युग के युग चल पड़ते हैं

इसीलिये तो ये निर्बल पग, बढ़ते हैं और बढ़ते हैं,


लाखों ने प्रतिबन्ध तोड़कर मेरा पौरुष पूजा है

लेकिन तेरे प्रतिबन्धों का सचमुच ही परिवार नया है।

                                        मेरा कवि भी हार गया है।



प्रतिदिन तेरे पनघट पर मैं क्वाँरी प्यास लिये आता

तुझको बेबस पाता हूँ तो ओठ चाटकर रह जाता,

तेरे सिन्दूरी बन्धन पर मेरी प्यासें निछराऊँ

तू ही बतला हार मान कर किस मुँह से वापस जाऊँ,


मेरे पद चिह्नों पर लाखों कलमेें गुदना गोदेंगी

चिह्न बनाता इन राहों पर इक परबस, लाचार गया है।

                                        मेरा कवि भी हार गया है।



मुझ पीड़ा के प्यासे को यदि तू प्यासा लौटायेगी

(तो) पनघट से अब गागर भरकर दर्द लिये कैसे जायेगी,

गागर फोड़ूँगा, पीयूँगा, पानी हो या हो ज्वाला

आज रोेक ली राहें मैंने, बनकर गोकुल का ग्वाला,


राधा बनकर जो न दिया, वह जसुदा बनकर देती जा

जी भर देख, तेरे काह्ना का, रूप नया, सिंगार नया है।

                                        मेरा कवि भी हार गया है।

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963










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