सपने सारे सच कर दूँगा

श्री बालकवि बैरागी
के प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की अठारहवीं कविता




करने दे उपहास जगत को, तू मेरी मनुहार के

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के


आज चाँद ने हाँ भर ली है, हाँ भर ली है तारों ने

सच कहता हूँ, हाँ भर ली है, फागुन और बहारों ने,

तेरा हर सन्देश सलौनी! वे मुझ तक ले आयेंगे

तेरी हर आज्ञा मानेंगे, तेरी प्रजा कहायेंगे


तेरी मरजी से ही कुदरत, सारा काम चलायेगी

ऋतुओं ने भी दे डाले, अधिकार तुझे संघार के

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के


अब न अकेली रोने दूँगा, तुझे निगोड़े निर्जन में

हरदम तुझको साथ रखूँगा, मैं साँसों के सर्जन में

मेले लगवा दूँगा पगली, करवा दूँगा चहल-पहल

जीते जी ही बनवा दूँगा, मैं गीतों के ताज महल,


जहाँ बैठकर व्याख्या करना, तू इस झीनी चादर की

शीश झुकायेंगे अनुयायी, चौबीसों अवतार के

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के


यूँ मत दिल को छोटा कर री, यूँ मत दिखला कमजोरी

कटात्म-समर्पण, आत्म-निवेदन, नहीं कहाता है चोरी,

कैसे तुझको समझाऊँ मैं, प्रणय कभी भी पाप नहीं

कायरता है इसकी बैरन, इसके आँसू माफ नहीं,


जिस दिन तू साहस कर लेगी, लाँघ चलेगी देहरिया

उस दिन शोर उठेंगे जग में, तेरी जय-जयकार के 

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के


ये बन्धन, प्रतिबन्ध सलौनी! अपने आप लजायेंगे

जैसे-जैसे प्यार बढ़ेगा, बेचारे हट जायेंगे,

जिस दिन तेरे स्वर, साजनिया! मेरे गीत उचारेंगे

उस दिन ये बन्धन बेचारे, रातें कहाँ गुजारेंगे?


तू तो बस मीरा की मस्ती, भर ले अपनी साँसों में

सौ मेवाड़ें निछरा देंगे, तुझ पर कवि संसार के।

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के


शीश उठाकर चल गूजरिया! मैं भी तेरे साथ हूँ

तू अम्बर की पटरानी है, मैं धरती का नाथ हूँ,

दुनिया है बारात हमारी, चिन्ता मत कर तानों की

पूजा होती है दुनिया में, मस्ती की, मस्तानों की,


मरघट के अंगारों तक ने, दिये मुझे हैं हस्ताक्षर

हुकुम सभी मानेंगे वे भी, मेरे जोड़ीदार के।

सपने सारे सच कर दूँगा, सजनी! तेरे प्यार के

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दरद दीवानी
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963











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