यदि तुम मेरे गीत न गाओ, कोई हर्ज नहीं, मत गाना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
मेरा अपना क्या है इनमें, जो भी है, है सभी तुम्हारा
तुम कह दो तो मैं भी इनको, गाऊँगा अब नहीं दुबारा
आखिर कुछ तो वजह बताओ, भली नहीं है यह खामोशी
कुछ तो बात समझ में आवे, किसका दोष, कौन है दोषी
कुछ भी नहीं बताना चाहो, खैर हटाओ, मत बतलाना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
तुम यदि मेरे गीत न गाओ.....
पैदा तो हो गये अभागे, कब रुकते ये मेरे रोके
दे दूँ इनको दश निकाला, आये ऐसे लाखों मौके,
लेकिन तुम ही फिरे घूमते, इनको ओठों से लिपटाये
बुरा न मानो तो सच कह दूँ, मुझसे ज्यादा तुमने गाये
आज तोड़ दो, अभी तोड़ दो, बेशक इनसे नेह पुराना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
तुम यदि मेरे गीत न गाओ.....
मैं तो पहले ही रोता था, कहता था ये बड़े बुरे हैं
इनमें पीड़ा ही पीड़ा है, ये आहों से भरे-पुरे हैं,
ये कपूत ही साबित होंगे, लेकिन तुमने एक न मानी
पाला तुमने, पोसा तुमने, बड़े कहाये औढरदानी,
सम्भव हो तो वापस ले लो, तुम अपना अनमोल खजाना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
तुम यदि मेरे गीत न गाओ.....
इनके पलने में बतलाओ, किसने बाँधी रेशम डोरी
इन्हें छीनने मुझसे बोलो, किसने की थी जोरा-जोरी,
लाड़-प्यार में तुमने इनको, मुझसे तक कर डाला बागी
मुझे निपूता करके तुमने, बना दिया सचमुच बैरागी,
लावारिस रह भी जाने दो, बेशक मेरा राजघराना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
तुम यदि मेरे गीत न गाओ.....
झगड़ा इनका और तुम्हारा, मुझे सजाएँ क्यों देते हो
तुम्हें कसम है, सच-सच कह दो, कटे-कटे से क्यों रहते हो,
साँसों के इस चौराहे पर, मुझ सा मीत नहीं पाओगे
अनपरखे ही ठुकराया तो, लाख जनम तक पछताओगे,
गूँगे ही मरने दो इनको, मत इनका स्मारक बनवाना
लेकिन यूँ तो मत कतराओ, मत सीखो यूँ आँख चुराना
तुम यदि मेरे गीत न गाओ.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
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