इतना दरद न दे दीवानी
इतना दरद न दे.....
दिन भर देखा करूँ गगन में
रात-रात भर जलूँ अगन में
सुलग जाय साँसों का सागर
चाँद उठा दे ज्वार नयन में
इतना दरद न दे.....
दुनिया लगने लगी पराई
ठुकरादे बैरन तनहाई
लम्बी लगने लगे उमरिया
यौवन के पग फटे बिवाई
इतना दरद न दे.....
अरमानों का दम घुट जाए
परिचय के खण्डहर लुट जायें
सपने मर जायें बचपन में
आशा की अरथी उठ जाये
इतना दरद न दे.....
रूठ जाय मन का पनिहारा
टूट जाय तन का इकतारा
संयम आँगन में आ जाये
आँसू बन जायें आवारा
इतना दरद न दे.....
बरस जाय बिरहा का बादल
भीग जाय अन्तर का आँचल
बह जाये पीड़ा की पुरवा
घुल जाये करुणा का काजल
इतना दरद न दे.....
मुरझा जायें सब मुसकाने
तू भी पीर नहीं पहचाने
करें ठिठोली सब बाराती
देने लगे कफन तक ताने
इतना दरद न दे.....
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कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज निलय, बालाघाट
प्रथम संस्करण - 1100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण पृष्ठ - मोहन झाला, उज्जैन
मुद्रक - लोकमत प्रिंटरी, इन्दौर
प्रकाशन वर्ष - (मार्च/अप्रेल) 1963
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