सब कुछ दिया है प्रभु ने

श्री बालकवि बैरागी के काव्य संग्रह 
‘वंशज का वक्तव्य’ की उन्नीसवीं कविता

यह संग्रह, राष्ट्रकवि रामधरी सिंह दिनकर को समर्पित किया गया है।




सब कुछ दिया है प्रभु ने

क्या नहीं दिया प्रभु ने मुझे?
सब कुछ दिया।
जल, थल, अनल, पवन और आकाश
घनघोर तम और प्रियतम प्रकाश
चेतना, चिन्तन, अच्छा बुरा
सुरा, बेसुरा, सजल नयन
आकाशी भुजाएँ
ऋतुएँ और ऋचाएँ, अपने और पराये
चाहे और अनचाहे
याने कि सब कुछ!
सब कुछ दिया है प्रभु ने मुझे।
नाम भी, वंश भी, अखिल भी, अंश भी
निर्माण भी, ध्वंस भी।
न वह देते थका, न मैं लेते!
एक तुम हो जो रोज रोते हो
यह नहीं मिला, वह नहीं मिला
विचित्र है तुम्हारा यह
दाता विरोधी सिलसिला!
बन्द करो इसे और नये सिरे से देखो
अपने आसपास
तोड़ दो अपना आईना, करो प्रार्थना
समेटो करुणा
आज से देखना शुरु करो खुला आकाश।
मारे-मारे फिरते रहोगे लेकर फटी झोली
तो चौरासी लाख आँगन में भी
पड़ाव नहीं पायेगी तुम्हारी डोली ।
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वंशज का वक्तव्य (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - ज्ञान भारती, 4/14,  रूपनगर दिल्ली - 110007
प्रथम संस्करण - 1983
मूल्य 20 रुपये
मुद्रक - सरस्वती प्रिंटिंग प्रेस, मौजपुर, दिल्ली - 110053




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।


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