श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की चौंतीसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की चौंतीसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
नाक की शोक-शैली
सुना है मैंने कि
ईश्वर मर गया।
व्यवस्था की छाती पर
कील ठोकने वाले हाथ
बँधे रह गये अपनी ही छाती पर।
सिहासनों को रौंदनेवाले पाँव
रख दिये गये प्लास्टर के कोटरों में।
आकाश के ललाट पर
मिट्टी मारनेवाला माथा
लुढ़क गया अनजानी दिशा में।
उमंगों का इन्द्र-धनुष
तनने के पहले ही टूट गया
काल-पुरुष की चुटकी से एक तीर
अलक्ष्य ही छूट गया।
यह सब हुआ सरे आम सडकों पर
ठीक उनकी नाक के नीचे
जिनकी नाक, बकौल उनके
नाक नहीं हमारा भविष्य है।
अब वे सुरक्षित रखने के लिए
हमारा भविष्य
तोड़ रहे हैं हमारा वर्तमान
जो कि नितान्त हमारा है।
तुम नहीं कर सकते कोई शोक-सभा
बन्द कर दिये हैं उन्होंने
तुम्हारे प्रार्थना-स्थल
चूँकि तुम कहोगे
‘ईश्वर’ मर गया
और उनका कहना है कि
जब तक वे जीवित हैं
ईश्वर मर नहीं सकता
और मर भी गया हो तो
उसका मातम
कोई कर नहीं सकता।
तुम्हें अगर कोई शोक,
कोई मातम
करना भी हो तो
उनकी शैली में करो
वरना ‘ईश्वर’ की तरह
सड़कों पर
अधूरी मौत मरो।
-----
रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
-----
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.