श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’
की पचीसवीं कविता
‘रेत के रिश्ते’
की पचीसवीं कविता
यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को
समर्पित किया गया है।
तू हँस
ओ मेरे स्व,
हँस।
मेरे अन्तर्यामी मनु! तू हँस।
व्यवस्था की जटिलता
और आचरण की कुटिलता
लाख रोके तुझे
पर तू हँस,
मेरे आत्मदेव! तू हँस।
विषम वातावरण में हँसकर जीना
और नागफनी निराशा का विष
ठठाकर पीना
मात्र तेरे ही बस की बात है।
तेरे निर्माता ने हँसने की शक्ति
दी है केवल तुझे-यानी कि मनुष्य को।
तेरे सिवाय कोई हँस नहीं सकता-
न घोड़ा, न गधा, न बन्दर, न भालू,
न तोता, न मैना
फिर भी बिना हँसे गुम-सुम रहना
खुला विरोध है उस प्रभु का।
विरोध भी करना है तो हँसते-हँसते कर।
रुदन से जीवन शुरु करनेवाले
मेरे आराध्य मनुष्य!
मरना भी हो तो हँसते-हँसते मर।
वक्त-बेवक्त हँसने के लिए खुद को गुदगुदा,
इस छोटे-से काम के लिये
नहीं उतरेगा आसमान से
कोई खुदा,
उसे और भी कई काम हैं,
वेसे भी तेरे मारे उसकी नींद हराम है।
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रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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