‘मैं उपस्थित हूँ यहाँ’
की एकसौएकवी कविता
यह कविता संग्रह
पाठकों को समर्पित किया गया है।
पहाड़ की प्रार्थना
(स्व. पण्डित जवाहरलाल नेहरू के प्रति)
अब भारी हो जाती है
उनकी जबान
तुम्हारा नाम लेते हुए।
पहले जब वे
तुम्हें देते थे गालियाँ
तब चलती थी वह
बेलगाम-अथक-अनवरत्।
पर अब?
जब आई उन पर जिम्मेदारी
तुम्हारी ‘मृगछाला’ की
तब,
लेना तो चाहते हैं तुम्हारा नाम
पर लें कैसे?
मन ही मन
स्वीकारते हैं वे
अपनी इस क्षुद्रता को
लेकिन प्रकट में
हिला नहीं पाते
अपनी लकवा लगी जबान।
कल जब
प्रहार किया उन्होंने
तुम्हारे श्वेत कपोतों पर
लहूलुहान किया
तुम्हारे शान्ति कबूतरों को
नोचा तुम्हारे गुलाबों को
तब देखने लायक था
उनका शौर्य (?) से
दिपदिपाता चेहरा।
अपराध बोध से ग्रस्त
वे ढूँढ़ रहे थे
तुम्हारी तस्वीरें
शायद क्षमा याचना के लिए
लेकिन फिर ठिठक गए।
अतीत का बोल
अच्छे-अच्छों को
ठिठका देता है।
आज पहनी है उन्होंने
तुम्हारी जाकेट
कल पहनेंगे तुम्हागी अचकन
परसो सजायेंगे अपनी धड़कनों पर
तुम्हारा गुलाब
और दिखेंगे तुम जैसे।
लेकिन
उनका अभीष्ट है
तुम्हारे पंचशील को
’पंच लकड़ी’ देना
और उर्वरता खत्म कर देना
उन खेतों की
जिनमें तपस्या-रत् है
तुम्हारी चिता-भस्म।
वे खिसका देना चाहते हैं तुम्हें
तुम्हारे ’धु्रव-आसन’ से।
और जब
मैंने उन्हें समझाया
‘पागलों!
नदियाँ रोकी जी सकती हैं
बाँधी या मोड़ी जा सकती हैं
लेकिन खिसकाये नहीं जा सकते पहाड़।
’तुम पहाड़ के कन्धों पर बैठकर
देख सकते हो
निस्सीम क्षितिजों के पार
उसके सिर पर चढ़कर
बढ़ा सकते हो अपना कद
मिटा सकते हो अपना बौनापन
लेकिन उसे खिसकाना
असम्भव है।
अपनी क्षुद्रताओं पर
इतराना छोड़ो
ऋषि-मन से बैठो
ऋषि की मृगछाला पर
यश-लिप्सा में
अपनी लज्जा छिपाने के लिए
उसे यूँ मत ओढ़ो।
तब
मेरे समझाए को
स्वीकारते तो हैं वे
लेकिन उसे मानते हैं
मरे मन से।
ऐसे ही बुझे-बुझे
अभी-अभी लौटे हैं
वे ‘शान्ति वन’ से।
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मैं उपस्थित हूँ यहाँ: छन्द-स्वच्छन्द-मुक्तछन्द-लय-अलय-गीत-अगीत
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
एक्स-30, ओखला इण्डस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली-110020
वर्ष - 2005
मूल्य - रुपये 95/-
सर्वाधिकार - लेखकाधीन
टाइप सेटिंग - आर. एस. प्रिण्ट्स, नई दिल्ली
मुद्रक - आदर्श प्रिण्टर्स, शाहदरा
रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।
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