आज दादा की 6ठवीं अवसान तारीख और पाँचवीं बरसी है। उन्हें याद करते हुए एक रोचक घटना का आनन्द लीजिए।
यह 1969 से 1972 के कालखण्ड की बात है। दादा पहली बार विधायक बने थे और श्री श्यामाचरण शुक्ल के मुख्य मन्त्रित्ववाली, मध्य प्रदेश सरकार में सूचना-प्रकाशन राज्य मन्त्री थे। श्री के. सी. रेड्डी (पूरा नाम क्यासम्बली चेंगलराय रेड्डी) मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे। रेड्डी सा’ब, मैसूर प्रान्त (आज का कर्नाटक) के पहले मुख्य मन्त्री थे। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे। वे अभिरुचि सम्पन्न व्यक्ति थे। दादा से उनकी खूब पटती थी। इतनी कि वे यदा-कदा, कभी-कभार बिना काम, बिना बात के भी दादा को बुला लिया करते थे। सड़कछाप भाषा में कहें तो, रेड्डी सा’ब दादा पर लट्टू थे।
ऐसी ही, बिना काम, बिना बात की एक बैठक में रेड्डी सा’ब अचानक फरमाइश कर बैठे - ‘आई वाण्ट टू विजिट योर कांस्टिट्यूएंसी।’ (मैं तुम्हारा विधान सभा क्षेत्र देखना चाहता हूँ।) आज तो राज्यपाल अपनी मन-मर्जी के मालिक हो गए हैं। जब चाहें, जिधर चाहें, निकल पड़ते हैं। लेकिन तब ऐसा नहीं था। तब, राज्यपाल का दौरा बड़ी और विशेष घटना होती थी।
दादा पहली बार विधायक बने थे। मन्त्री का काम-काज तो छोड़िए, उन्हें तो विधायक के काम-काज के तौर-तरीके भी बराबर मालूम नहीं थे। ‘मन्त्री बन कर काम कैसे किया जाता है?’ इसका पहला पाठ दादा ने श्री सीतारामजी जाजू से पढ़ा था। सो, दादा को राज्यपाल के काम-काज, व्यवहार आदि की (जिसे ‘प्रोटोकॉल’ कहा जाता है) प्रारम्भिक जानकारी भी नहीं थी। उन्होंने अपने वरिष्ठों, अनुभवियों से अता-पता किया और राज भवन को, अपने विधान सभा क्षेत्र में राज्यपाल के दौरे का अनुरोध पत्र भेज दिया। पत्र भेज कर उन्होंने फौरन श्यामाचरणजी को खबर की। श्यामाचरणजी, दादा के प्रति रेड्डी सा’ब का ‘लाड़’ जानते थे। उन्होंने पूछा - ‘क्यों? गवर्नर को क्यों ले जाना चाहते हो?’ दादा ने कहा - ‘मैं कहाँ ले जा रहा? वे ही आ रहे हैं।’ श्यामाचरणजी हँस दिए। बोले - ‘अच्छा! अच्छा!! यह बाप-बेटे का मामला है! बाप अपने बेटे का साम्राज्य देखना चाहता है! ले जाओ।’
दादा को अब तक यही मालूम था कि अपने क्षेत्र में कोई काम कराने के लिए विभागीय मन्त्री या फिर मुख्य मन्त्री ही काम में आता है। अपने इलाके के काम कराने में भला राज्यपाल कैसे काम में आ सकते हैं? लेकिन रेड्डी सा’ब को तो आना ही था। सो, उनका दौरा कार्यक्रम बनने लगा।
मनासा विधान सभा क्षेत्र में दो बड़े कस्बे हैं मनासा और रामपुरा। (अब तो, कुकड़ेश्वर भी अच्छा-खासा कस्ब बन गया है। श्री सुन्दरलालजी पटवा कुकड़ेश्वर के ही थे।) मनासा से रामपुरा की दूरी लगभग बीस मील (लगभग बत्तीस किलोमीटर) है। गाँधी सागर (बाँध) जाने के लिए रामपुरा होकर ही जाना पड़ता है। रामपुरा-गाँधी सागर की दूरी भी लगभग बीस मील (लगभग बत्तीस किलो मीटर) है। मनासा और गाँधी सागर के बीच में तब कोई डाक बंगला नहीं था। सरकारी लोगों को यह कमी बड़ी खटकती थी। मनासा से गाँधी सागर का सफर लगभग सुनसान रास्ते का सफर हुआ करता था। बीच में कोई ऐसा बड़ा गाँव नहीं जहाँ ‘चाय-पानी’ के लिए रुका जा सके। रेड्डी सा’ब के दौरे को लेकर पता नहीं क्यों दादा को यह बात कैसे याद आ गई। उन्होंने, रेड्डी सा’ब के कार्यक्रम में ‘रामपुरा में विश्राम गृह का शिलान्यास’ जुड़वा दिया।
रेड्डी सा’ब का दौरा कार्यक्रम तय हो गया। जिला प्रशासन को खबर हो गई। जहाँ-जहाँ रेड्डी सा’ब को जाना था, वहाँ-वहाँ चाक-चौबन्द व्यवस्थाएँ हो गईं।
आज की स्थिति तो मुझे मालूम नहीं लेकिन तब रामपुरा कस्बे में प्रवेश के लिए एक बड़ा दरवाजा बना हुआ था। मनासा से आनेवाली सड़क सीधे गाँधी सागर की ओर जाती है। इस सड़क के किनारे ही वह भव्य प्रवेश द्वार था। दरवाजे में घुसते ही, दाहिने हाथ पर सरकारी अस्पताल का विशाल परिसर है। शिलान्यास स्थल सड़क केे इस ओर और सरकारी अस्पताल सड़क के उस ओर। स्वागत मंच अस्पताल परिसर में ही बना था। शिलान्यास के बाद रेड्डी सा’ब को यहीं आना था।
निर्धारित कार्यक्रमानुसार रेड्डी सा’ब रामपुरा पहुँचे। शिलान्यास स्थल रामपुरा बस्ती के बाहर था। लोग बड़ी संख्या में जमा थे। राज्यपाल की यात्रा रामपुरा के लिए बहुत बड़ी घटना और डाक बंगला मिलना बड़ी सौगात था। रेड्डी सा’ब की भव्य कार (लोग कहते हैं कि वह आठ सिलेण्डरवाली इम्पाला कार थी) शिलान्यास स्थल पर रुकी। कड़क, ठाठदार सूट पहने, माथे पर सफेद टोपी लगाए रेड्डी सा’ब कार से उतरे। सरकारी अमला हरकत में आया। मामला राज्यपाल का था, सो कार्यक्रम प्रोटोकॉल के मुताबिक, ‘मिनिट टू मिनिट’ सम्पन्न होने लगा। पण्डितजी ने रेड्डी सा’ब को टीका लगाकर, कलावा (हमारे मालवा में उसे ‘लच्छा’ कहते हैं) बाँधकर, पूजा का विधि-विधान शुरु किया। पत्रम्-पुष्पम् अर्पण के बाद रेड्डी सा’ब को एक छोटी सी, सुन्दर ‘करनी’ (जिससे सीमेण्ट लेकर ईंटों पर लगाया जाता है) उन्हें थमाई गई। रेड्डी सा’ब ने दादा को मानो अपने से सटा रखा था। नवलचन्दजी जैन पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यन्त्री थे। उन्होंने सीमेण्ट की तगारी आगे की। रेड्डी सा’ब ने उसमें भरपूर सीमेण्ट ली, तैयार किए गए गड्ढे के कारण उन्हें काफी झुकना पड़ा, गड्ढे में रखी ईंटों पर सीमेण्ट डाली और, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रामपुरा के डाक बंगले का शिलान्यास हो गया।
रेड्डी सा’ब ने मुस्कुराते हुए दादा को देखा। दादा भी उनके साथ ही झुके हुए थे। रेड्डी साहब खड़े होने के लिए सीधे होने लगे। दादा ने उनके हाथ से करनी ली और रेड्डी सा’ब पूरी तरह तनकर, सीधे खड़े हों उससे पहले ही बोले - ‘थैंक्यू वेरी मच योर एक्सलेंसी। वी आर ओब्लाइज्ड। बट, प्लीज रिमेम्बर, द डाक बंगलो, फॉर विच यू हेव जस्ट लेड डॉउन द फाउण्डेशन स्टोन, हेव नॉट ए सिंगल पेनी इन द स्टेट बजट।’ (बहुत-बहुत धन्यवाद राज्यपालजी। हम उपकृत हुए। किन्तु एक बात याद रखिएगा कि जिस डाक बंगले की आधार शिला आपने अभी-अभी रखी है उसके लिए राज्य सरकार के बजट में एक धेले का भी प्रावधान नहीं है।)
सुनकर रेड्डी सा’ब, तन कर खड़े होते-होते ठिठक गए। वे हाथ झाड़ना भी भूल गए। हैरत और अविश्वास से दादा को देखा। फिर पता नहीं क्या हुआ कि ठठा कर हँस पड़े और राज्यपाल के सारे प्रोटोकॉल की ऐसी-तैसी करते हुए, दादा की पीठ में एक जोरदार धौल जमाई और बोले - ‘यू ऽ ऽ ऊ नॉटी मिनिस्टर! यू प्लेड ए प्लाण्ड मिस्चीफ विथ मी डेलीबरेटली। बट, ओ के! वेल डन। डोण्ट वरी। आई विल सी द मेटर।’ (बदमाश! तुमने मेरे साथ जानबूझकर, योजनाबद्ध बदमाशी की है। लेकिन, ठीक है। अच्छा किया। चिन्ता मत करो। मैं देख लूँगा।)
और कहना न होगा कि रेड्डी सा’ब ने सचमुच में ‘देखा’। भोपाल पहुँचते ही सबसे पहला काम किया, रामपुरा डाक बंगला निर्माण के लिए बजट में समुचित रकम का प्रावधान कराने का। रामपुरा डाक बंगले का काम शुरु होने के बाद बिलकुल नहीं रुका।
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