दाँव लगा तो राजघाट तक को नीलाम करेंगे।।



बालकवि बैरागी

 

बापू तेरे जनम दिवस पर, कवि का मन भर-भर आता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

चूर-चूर हो गए सपन सब, बापू तेरे मन के।
सुमन सभी निर्गन्ध हो गए, बापू इस उपवन के।।
तेरे आदर्शों की बापू, होती है अवहेला।
तेरे राम-राज का पावन, चित्र हुआ मटमैला।।

दिन-दिन बात बिगड़ती बापू,कोई नहीं बनाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

जिन की खातिर रहा जनम भर, बापू तू अधनंगा।
जिन की खातिर लाया था तू, आजादी की गंगा।।
अब भी वे भूखे हैं बापू, अब भी हैं वे प्यासे।
वे ही सूनी-सूनी आँखें, वे ही उखड़ी साँसें।।

भूमिहीन है अब तक बापू, दुनिया का अन्नदाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

राजनीति ने लोकनीति का, आज किया मुँह काला।
धूर्तनीति ने रहा-सहा भी, सब स्वाहा कर डाला।।
राम-भरत में सिंहासन की, होती खींचातानी।
त्याग-तपस्या की बातें अब, लगतीं बड़ी पुरानी।।

माता पर शासन करती है बापू, आज विमाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

हम भाषा के लिए झगड़ते, लड़ते, खून बहाते।
नये प्रान्त बनवाते बापू, हम नारे लगवाते।।
आज राष्ट्र से बड़ा हो गया, बापू पेट हमारा।
सचमुच हमसे कहीं भला था, बापू! वो हत्यारा।।

अब तक तो तू खुद ही उसको, दे आवाज बुलाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

बात-बात में चलती गोली, जगती है रणचण्डी।
सर्वोदय के दल्लालों ने, मँहगी कर दी मण्डी।।
अलग-अलग दुकानें बापू, अलग-अलग वादों की।
देख लगी क्या बापू, गुण्डों और दादाओं की।।

जयचन्दों ने जोड़ लिया है, परदेसी से नाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

देशभक्ति को दे डाला है, दिल से देश निकाला।
अब भी लड़वाते हैं बापू, मस्जिद और शिवाला।।
तन पर आई है चिकनाई, लेकिन मन हैं रूखे।
सरहद पर तपती दोपहरी, ताण्डव होते लू के।।

ढाई अरब भुजाओं पर भी, गीदड़ है गुर्राता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

आजादी के गुड़ पर बापू, लगे हुए हैं चींटे।
तुझको तक दे सकते हैं हम, भाषण मीठे-मीठे।।
लाभ न जाने कहाँ गया है, दिखता है बस घाटा।
पता नहीं किसने अमृत को, कहाँ बैठ कर बाँटा।।

नीलकण्ठ! यह कालकूट तो तुझको भी तड़पाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

राह दूर तक नहीं दीखती, दिखता नहीं उजाला।
तेरे तन पर पोत रहे हैं, हम सब मिल कर काला।।
खा पी कर चुकती कर दी है, तेरी सकल कमाई।
आलस के आलिंगन में है बापू, अब भारत की तरुणाई।।

दर-दर झोली फैलाती है बापू! तेरी भारत माता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

सभी बुझाने, लगे हुए हैं, अपनी-अपनी दाढ़ी।
एक जवाहरलाल कहाँ तक, खींचे सारी गाड़ी?
उसे दाँव पर लगा-लगा कर, रोज खेलते जुआ।
इधर खोद दी खाई हमने, उधर बनाया कुआ।।

कुर्बानी का नारा बापू, झूठा समझा जाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

दिन भर में चल पाये बापू! केवल कोस अढ़ाई।
कर लेते हैं मन बहलाने, अपनी आप बढ़ाई।।
बहुत अधिक खोया है बापू, क्या-क्या तुझे गिनाऊँ?
आँसू ले-ले कर आँखों में, गीत कहाँ तक गाऊँ?

गीत वतन के गानेवाला, चापलूस कहलाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

तुझे पता तो होंगे ही सब, उलटे काम हमारे।
आये दिन सुनता ही होगा, तू भी नाम हमारे।।
कहने को तो हमने बापू, सारी बात बना ली।
लेकिन दिल की बात है बापू! राम करे रखवाली।।

जुल्म हुआ जो आज सत्य पर, नहीं बताया जाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

*        *        *        *        *        *        *

घाटे की दुकानें बापू, हमने बीसों खोलीं।
तेरे फूल-कफन तक पर हम, बोल लिए हैं बोली।।
या तो नोचेंगे नेहरू को, या आराम करेंगे।
दाँव लगा तो राजघाट तक को नीलाम करेंगे।।

तुझ से छिपा हुआ ही क्या है, खुला पड़ा सब खाता।
इस वेला में तू होता तो, तड़प-तडप कर मर जाता।।

-----


दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की यह दुर्लभ कविता, उनकी पोती, हम सब की प्रिय रूना (रौनक) बैरागी ने उपलब्ध कराई। 

-----


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.