मैं चाह कर भी ‘आडवाणी’ के साथ ‘जी’ नहीं लगा पा रहा हूँ। अब तक मैं उनसे असहमत, उनसे रुष्ट, उन पर क्रुद्ध रहता रहा। उनका ‘दुराग्रह’ मुझे कभी नहीं रुचा किन्तु यदा-कदा अचेतन में अच्छा लगता था कि कोई आदमी सारी दुनिया की परवाह न कर, अपने आग्रहों पर किस चरम तक अड़ा रह सकता है। किन्तु आज? आज मुझे उन पर शर्म आ रही है।
आडवाणी को ‘लौह पुरुष’ कहा जाता रहा है। यह नामकरण किसने किया, कब किया यह खोज का विषय हो सकता है। किन्तु इस समय मुझे लग रहा है कि निश्चय ही, खुद आडवाणी ने ही खुद का यह नामकरण किया होगा।
भारत में ‘लौह पुरुष’ का एक एक ही अर्थ होता है - सरदार वल्लभ भाई पटेल। इच्छा शक्ति, प्रबल आत्म विश्वास, रोम-रोम में व्याप्त राष्ट्र पे्रम, प्रत्येक भारतीय के लिए सम दृष्टि, राष्ट्र के लिए खुद को होम कर देने की, अहर्निश उत्कट अभिलाषा जैसे गुण जिस दुर्लभता से उनके व्यक्तित्व में थे, उन्हीं के कारण, उनके बाद, उनके उन जैसा दूसरा कोई नहीं हो पाया। यह बात जब देश का बच्चा-बच्चा जानता और अनुभव करता रहा हो तो भला आडवाणी क्यों पता नहीं रहा होगा? बिलकुल रहा होगा। किन्तु अब मैं कह सकता हूँ कि इसके समानान्तर सच यह भी था कि यह आदमी पहले ही क्षण से जानता था कि यह ‘लौह पुरुष’ है ही नहीं। किन्तु, जैसा कि मैं बार-बार कहता रहता हूँ, हमारे यहाँ ‘होने’ के बजाय ‘दिखना’ अधिक महत्वपूर्ण है। सो, इस आदमी ने भी ‘लौह पुरुष’ का स्वांग किया और इतनी भाव प्रवणता से किया कि देश का बड़ा तबका इसमें ‘लौह पुरुष’ को ही देखने लगा। इस आदमी के ‘स्वांग’ की पराकाष्ठा यह रही कि इस आदमी ने एक बार भी, सौजन्यवश या कि लोकाचार निभाने के लिए, विनम्रता दर्शाते हुए, एक बार भी, जी हाँ, एक बार भी नहीं कहा कि उसे इस नाम से न पुकारा जाए।
‘वह लौह पुरुष’ देश के लिए खुद को होम कर गया। और यह लौह पुरुष? इसने तो अपने लिए देश को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, ऐतिहासिक रूप से कलंकित कर दिया। ‘वह लौह पुरुष’ पद के पीछे कभी नहीं दौड़ा, उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं को (यदि कोई रही हों तो) कभी प्राथमिकता नहीं दी, अपनी अन्तरात्मा से कभी समझौता नहीं किया, जब लगा कि हैदराबाद का निजाम, भारत में अपनी पृथक सत्ता बनाए रखने पर आमादा है तो उससे समझौता करने (या कि तुष्टीकरण करने) के बजाय उसे, सैन्य कार्रवाई की दो-टूक चेतावनी देकर उसके घुटने टिकवा दिए। ‘उस लौह पुरुष’ ने जब भी सोचा, देश को सोचा, देश के लिए सोचा और तदनुसार ही काम करते हुए देश के लिए जीया और देश के लिए मर गया।
और ‘यह लौह पुरुष?’ इस आदमी ने तो जब भी सोचा, खुद के लिए सोचा और खुद के लिए देश को दाँव पर लगाने में इस आदमी को क्षणांश को भी हिचक नहीं हुई!
इस आदमी ने केवल कहा नहीं, अपनी पुस्तक में आधिकारिक रूप से लिखा भी कि ‘कांधार विमान अपहरण’ प्रकरण में, आतंकवादियों को छोड़ने के बारे में इस आदमी को कोई जानकारी नहीं थी और न ही यह निर्णय लेने वाली केबिनेट बैठक में यह उपस्थित था। इस लिखे के पीछे जो अनलिखा है, उसके जरिए यह आदमी कह रहा था कि यदि इसे मालूम होता तो यह आदमी ‘लौह पुरुष’ की तरह दृढ़ता बरतता और आतंकवादियों को कभी नहीं छोड़ता। पूरे देश की तरह मुझे भी आश्चर्य हुआ था। भला कोई प्रधान मन्त्री और रक्षा मन्त्री इस सीमा तक तानाशाह हो सकते हैं कि, इतने सम्वेदनशील मुद्दे पर अपने ही गृह मन्त्री की उपेक्षा कर दें? किन्तु मैंने तब इस आदमी की इस बात पर विश्वास किया था-यह सोचकर कि इतना बड़ा, गृहमन्त्री के पद पर रह चुका आदमी झूठ नहीं लिख सकता। किन्तु आज यह आदमी झूठा साबित हो गया है। इसे झूठा कहने वाले इसके राजनीतिक विरोधी नहीं, इसी की पार्टी के और इसी के साथ काम करने वाले लोग हैं (और अभी भी इसी की पार्टी में हैं) और बात-बात में प्रतिवाद करने वाले इस आदमी के मुँह से बोल नहीं फूट रहे हैं? लेकिन यह आदमी अभी भी नहीं कह रहा है कि इसे ‘लौह पुरुष’ नहीं कहा जाए।
एक ‘वह लौह पुरुष’ था जिसने, देश की तमाम मुस्लिम आबादी में लोकप्रियता की कीमत पर निजाम के घुटने टिकवाए। इधर ‘यह लौह पुरुष’ है जो पाकिस्तान में, जिन्ना की मजार पर जाकर जिन्ना की तारीफ में कसीदे पढ़ भी आया और लिख भी आया। इसके साथी आज खुले आम कह रहे हैं कि मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए ‘इस लौह पुरुष’ ने भारत के साथ यह बेवफाई की। अपने दोस्तों की इस बात का प्रतिवाद करने के लिए भी ‘इस लौह पुरुष’ की जबान नहीं खुल रही है। इस आदमी को मुसलमानों के वोट क्यों चाहिए थे? इसलिए कि यह आदमी प्रधानमन्त्री बन सके। अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए भारत के इतिहास को कलंकित करने से पहले इस आदमी ने सोचा भी नहीं!
मनमोहन सिंह सरकार को बचाने के लिए सांसदों की खरीदी का मामला पूरी दुनिया में गूँजा। भाजपा सांसदों ने, लोक सभा में नोटों की गड्डियाँ लहराईं। जब यह सब हो रहा था तब हमारा ‘यह लौह पुरुष’ निर्लिप्त, निश्चन्त भाव से अपनी पार्टी के सांसदों के इस करिश्मे को चुपचाप देख/सुन रहा था। लोकसभा का कायदा है कि वहाँ पटल पर कोई भी कागज या वस्तु प्रस्तुत करने से पहले स्पीकर की अनुमति लेनी पड़ती है। ऐसा न करना, संसद की अवमानना है। घटिया भाषा में कहें तो ऐसा करना, संसद का बलात्कार करना है। उस काण्ड को लेकर कुछ भाजपा सांसदों को बर्खास्त किया गया। आज, भाजपा से निष्कासित जसवन्तसिंह, समाचार चैनलों को, टेलीविजन के जरिए सारी दुनिया के सामने कह रहे हैं कि, स्पीकर की अनुमति के बगैर नोटों की गड्डियाँ लहराने की सलाह हमारे ‘इस लौह पुरुष’ ने ही दी थी। तीन दिन से अधिक का समय हो गया है, हमारा ‘यह लौह पुरुष’ अपनी जबान तालू से चिपकाए बैठा है।
और तो और, ‘लौह पुरुष’ के जिस विशेषण को यह आदमी अपनी टोपी में खोंस कर अपनी शान बढ़ाता रहा है, ‘उस वास्तविक लौह पुरुष’ का अपमान करने में भी हमारे ‘इस लौह पुरुष’ को संकोच नहीं हुआ। लगता है, इस आदमी की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और विवेक नष्ट। इस आदमी ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नेहरू के दबाव में राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाया था। ईश्वर के सिवाय कोई भौतिक शक्ति ऐसी नहीं थी जो वल्लभ भाई से उनकी अन्तरात्मा के खिलाफ कोई काम करा लेती। लेकिन हमारा ‘यह लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल को दबाव में आने वाला क्षुद्र राजनीतिक घोषित कर गया।
भारत का प्रधानमन्त्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा (अब तो इसे ‘क्षुद्र और हीन महत्वाकांक्षा’ कहना ही समीचीन होगा) की पूर्ति के लिए इस आदमी ने सारे देश के सामने झूठ बोला, जान बूझ कर झूठ बोला, दुराशयतापूर्वक झूठ बोला, अभिलेखीय झूठ बोला, संसद को अपवित्र किया। मुझे तो इस आदमी के मुकाबले मोहम्मद अफजल बहुत ही छोटा अपराधी लगने लगा है। उसने जो कुछ भी किया, ‘दुश्मन मुल्क’ पर किया। किन्तु इस आदमी ने तो यह सब अपने ही मुल्क पर किया। मुझे आजीवन ग्लानि रहेगी कि सारी दुनिया में भारत की इज्जत हतक करने वाले इस आदमी की कुछ बातों पर मैं मुग्ध हुआ और इसे सच माना। मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूँ।
इस प्राणान्तक वेदना के बीच भी मैं खुशी की एक किरण देख रहा हूँ। यह आदमी जब कुछ भी नहीं था तब इतना कुछ कर गुजरा।
यह आदमी यदि देश का प्रधान मन्त्री बन गया होता तो?
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लौहपुरुष का अर्थ भी आपने समझा दिया। इसके पीछे छिपी अर्थशक्ति भी बताई जिसमें गरिमा, ऊर्जा और महिमा सब साफ नज़र आईं।
ReplyDeleteकाश आडवाणी आपके इन शब्दों को पढ़ पाते।
बौना होना बुरी बात नहीं, पर मुहावरे वाला बौनापन किसी की शख्सियत पर आरोपित होना बड़ी बात है। आडवाणी सचमुच बौने हैं।
जो हुआ नहीं और न ही अब होने की गुंजाईश है, उस पर क्यूँ अपनी जुबान खराब करें भाई जी. :)
ReplyDeleteAapke poore lekh se sahamat hoon siwa isake ki afajal guru ne jo kiya sahee kiya, are wo bhee to isee desh ka nagarik tha aur deshdrohee bhee. yah similee digest nahee huee.
ReplyDeleteलौह पुरुष के बीच में दिखलाया जो भेद।
ReplyDeleteपहले वाले को नमन दूजे पर है खेद।।
सरदार वल्लभ भाई पटेल जीजैसा क्या कोई समर्पित नेता किसी भी पक्ष में मिलेगा?
ReplyDeleteदेर रात तक आप की बत्ती हरी देख खुश हो रहा था। सुबह उस का नतीजा देखने को मिला इस खूबसूरत पोस्ट के रूप में । बधाई!
ReplyDelete'वैरागी' जी, बहुत बढ़िया लिखा है। इतना अच्छा तो 'राजराजेश्वरी' सोनिया यदि पैसा देकर लिखवातीं या किसी 'चमचे' से लिखवातीं तो भी नहीं बन पाता।
ReplyDeleteआदरणीय बैरागी जी, अब की बार तो आपने खूब इन्तजार करवाया......खैर देर आए,दुरूस्त आए और साथ में एक बढिया पोस्ट् भी लाए!!!
ReplyDeleteSir, very well written. thanks
ReplyDeleteमहोदय मे आपसे सहमत हू आडवाणी जी ने सत्ता के लालच मे ये सब किया है पर अफ़सोस ये होता है की कंधार कांड का ज़िक्र तो सभी करते है पर ऐसा ही एक घटना कश्मीर मे भी हुई थी जिसमे कांग्रेस के तत्कालीन साथी मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने अपनी मात्र एक व्यक्ति याने की अपनी प्रिय पुत्री को छुड़ाने के लिए ऐसे ही आंतकवादी को छोड़ा था पर उसकी आलोचना किसी ने नही की हमारे तथाकथित सेक्युलर मीडीया ने भी कभी नही क्या वो सही था ? खैर मे आडवाणी का पक्ष नही ले रहा आडवाणी ने तो घटीयपन की हद पर कर दी सिर्फ़ एक कुर्सी के लालच मे .
ReplyDeleteआपके इस उम्दा लेख के लिया धन्यवाद.
एक शानदार खबर आप लोगो के लिए पुरानी है पर आप लोगो ने सुनी नही होगी आप सभी महनुभाओ के विचार आमंत्रित है विशेषतः भाई विष्णु बैरागी जी के
ReplyDeleteफ़िलहाल यू-ट्यूब की यह लिंक देखें और अपना कीमती (और असली) खून जलायें… सेकुलर UPA sarkar के सौजन्य से… :)
http://www.youtube.com/watch?v=NK6xwFRQ7BQ
wahreindia,
ReplyDeleteTab shayad VP singh ki govt. thi
आदरणीय abhigupta2204 समाचार सुन कर और देखकर भी आप ऐसी बेहूदा बात कर रहे है की आपको मनमोहन सिंघजी भी वीपी सिंह नज़र आ रहे है और श्री प्रकाश जायसवाल पता नहीं क्या दिखाई दे रहे है इसे ही कहते है आँखों के अंधे और ये ही हम लोगो की समस्या है की आँखे होते हुए भी हम सच से आँख मूंद लेते है और फिर बाद में पछताते है भगवन आप लोगो को सदबुद्धी दे . आदरणीय बैरागी जी से भी इस पर एक पोस्ट की उम्मीद है पर शायद उनमे भी अपनी पारिवारिक पार्टी के बारे में कड़वा सच लिखने की हिम्मत नहीं है
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