माँजना हई बाजाँ


प्रसंग शोक का हो, आप परिवार के अग्रणी की स्थिति में हों और अकस्मात् ऐसा कुछ हो जाए कि आपकी हँसी छूट जाए। तो? इतना ही नहीं। आप पाएँ कि आपके आसपास के लोग, आपसे पहले ही उस ‘कुछ’ से वाकिफ बैठे थे और कुछ तो प्रसंग/वातावरण के कारण और कुछ आपके लिहाज में वे अपनी हँसी नियत्रित किए बैठे थे और आपके हँसते ही वे सब भी आपकी हँसी में शामिल हो गए हैं। तो? तो क्या! समझदारी इसी में होती है कि खुद की हँसी रोकें नहीं और न केवल दूसरों को हँसने दें बल्कि दूसरों की हँसी में खुलकर शामिल हो जाएँ।

बिलकुल यही हुआ हम दोनों भाइयों के साथ - दो दिन पहले। इसी रविवार, 27 नवम्बर को।

मेरी बड़ी बहन गीता जीजी का निधन इसी 23 नवम्बर को हो गया। उसकी उत्तरक्रियाओं के अन्तिम में से एक कर्मकाण्ड की समाप्ति पश्चात्, मौके पर उपस्थित हम सब लोग भोजन के लिए पंगत बना कर बैठे। एक तो हमारी बहन का निधन और दूसरे, आयुमान से पूरे जमावड़े में हम दोनों भाई सबसे वरिष्ठ। सो, सबकी नजरें हम दोनों पर और हमारी शकलों पर। कागज के बने दोने पत्तल में भोजन परोसा जाना था। हम सबके सामने एक-एक पत्तल और एक-एक दोना रख दिया गया। पूरी, आलू की सब्जी और बेसन की नमकीन सेव परोसी जानी है - यह हम सबको पता था। सामग्री आने में थोड़ी देर थी। अचानक ही मेरी नजर पत्तल पर पड़ी। एक विज्ञापन छपे कागज की पत्तलें हमारे सामने रखी गई थीं। विज्ञापन की, बारीक अक्षरों वाली इबारत को बिना चश्मे के पढ़ पाना तो सम्भव नहीं था किन्तु ‘श्वान-शिशु’ का चित्र तो बिना चश्मे के ही नजर आ रहा था। जिज्ञासा के अधीन, चश्मे की सहायता से विज्ञापन की इबारत पढ़ी तो मेरी हँसी छूट गई। दादा ने तनिक खिन्न स्वरों में पूछा - ‘क्या बात है? यह हँसने का मौका है?’ मैंने कहा - ‘जिन पत्तलों में हमें भोजन करना है उन पर कुत्तों के पिल्लों के भोजन का विज्ञापन छपा है।’ मेरी बात पूरी होते ही मेरे पास बैठे सज्जन, मुझसे भी जोर से हँस पड़े। दादा ने पूछा - ‘अच्छा! वाकई में?’ मैं जवाब देता उससे पहले ही, मेरे पास वाले सज्जन ने हँसते-हँसते कहा - ‘वाकई में। पढ़ तो मैंने पहले ही लिया था और हँसी तो मुझे भी आ रही थी। किन्तु दबाए रहा। अच्छा नहीं लगता। पता नहीं आप क्या सोचते। लेकिन है तो कुत्तों के भोजन का विज्ञापन ही।’

अब दादा ‘सहज’ से आगे बढ़कर तनिक ‘उन्मुक्त’ हो गए। उनका ‘शब्द पुरुष’ जाग उठा। अपनी हँसी को पूरी तरह नियन्त्रित करते हुए बोले - “अब जब ऐसा हो ही गया है तो मान लें कि ‘माँजना हई बाजाँ’ आ गई हैं।” सुन कर वे सब भी हँसने में साथी बन गए जो शोक ओढ़े, गम्भीर मुद्रा में बैठे थे।

जितनी तेजी से बात शुरु हुई थी, उतनी ही तेजी से खत्म भी हो गई क्योंकि इसी बीच भोजन सामग्री परोस दी गई थी। पूरियों और बेसन सेव के कारण विज्ञापन की इबारत तो दब गई थी किन्तु ‘श्वान-शिशु‘ का चित्र और बड़े-बड़े अक्षरों में छपा, उसके भोजन का नाम साफ-साफ दिखाई दे रहा था। हम चाहते तो भी दोनों को छुपा नहीं सकते थे क्योंकि, जैसा कि आप चित्र में देख रहे हैं, दोनों ही पत्तल के किनारों पर छपे थे।

अब ‘माँजना हई बाजाँ’ का अर्थ भी जान लीजिए। यह मालवी कहावत है। ‘माँजना’ याने पात्रता, काबिलियत। ‘हई’ याने ‘के अनुसार’ और ‘बाजाँ’ याने पत्तलें। पूरा अर्थ हुआ - आपकी पात्रता के मुताबिक आपके लिए पत्तलें मँगवाई गई हैं या कि जैसे आप वैसी पत्तलें आपके लिए।

हम लोग तो शोक प्रसंग में भी खुलकर हँस लिए थे। आप तो हमसे भी अधिक खुल कर हँस सकते हैं।

9 comments:

  1. इन परिस्थितियों में बिना मुस्कराये रहा भी नहीं जा सकता।

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  2. जी, दुखद अवसर पर भी हंस पाना सबके बस की बात नहीं है। सांझा करने का आभार!

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  3. इस हंसने वाले विज्ञापन के बहाने बहुत कुछ कह दिया आपने कि, जीवन में चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों सहजता को बनाये रखना ही श्रेयस्कर है ....!

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  4. हँसी के प्रसंग आने पर हँसी नहीं देखती कि माहौल क्‍या है।

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  5. वैसे तो ये हंसने की बात थी ही, फिर भी 2-3 दिन तक लगातार शोक में रहने और रोना-धोना होते रहने के बाद हंसी आना स्वाभाविक है। बस बहाना मिल जाये तो फूट पडती है।

    प्रणाम

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  6. यह तो कुछ वैसा ही हुआ - मैं अपने बाबा की चिता को अग्नि दे कर विश्राम कर रहा था घाट पर और साथ आये किसी की बात पर मुस्करा पड़ा था। मुझे खुद को भी वह अजीब लगा था! बहुत पुरानी बात है, पर विचित्र थी, सो याद है।

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  7. सुन्दर अनुभव. अच्छा लगा. साझा करने का आभार.

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  8. अपना छोड़ा,वो चाटता अक्सर,
    एक मौक़ा उसे जो मिल पाया,
    क़र्ज़ उसने तो बस चुकाया है.
    बाजां ही में सवार होकर के,
    योग्यता के मुजब खिलाया है.

    http://aatm-manthan.com

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  9. Wakaee Bahoot khoobsurat prasang ban gaya.Mansoor ali ji ki tippani bhi achchhi lagi.Gham ke mauko per hasi achanak aane per kesa ehsas hua hoga,yeh mujhe bhi yeh anubhav padkar anubhav ho raha he.

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