मध्य प्रदेश का एक नगर है-नीमच। जिला मुख्यालय है। अंग्रजों के जमाने में सेना का बड़ा केन्द्र था। आज सीआरपीएफ का बड़ा केन्द्र है। यहीं रहते हैं चन्द्र शेखर गौड़। एक निजी संस्थान में काम करते हैं। संस्थान के कर्मचारियों की भीड़ में उनकी कोई अलग पहचान शायद ही हो। लेकिन उनकी एक पहचान उन्हें भीड़ से अलग करती है। यह पहचान है - आरटीआई एक्टिविस्ट की। सूचना के अधिकार के तहत लोकोपयोगी जानकारियाँ माँगना उनका शौक था जो आज व्यसन बन गया है। इसके पीछे किए जानेवाले मासिक खर्च का आँकड़ा वे निश्चय ही अपनी उत्तमार्द्धजी से छुपाते होंगे। मालूम हो जाए तो शायद, बाल-बच्चों पर खर्च की जानेवाली रकम फालतू कामों में खर्च करने पर झगड़ा कर लें। लेकिन शेखरजी के पास आई सूचनाओं का मोल, खर्च की गई रकम से कई गुना अधिक है। मैं यदि किसी अखबार का या समाचार एजेंसी का सम्पादक होता तो शेखरजी से अनुबन्ध कर लेता और बीसियों-पचासों नहीं, सैंकड़ों से भी आगे बढ़कर अनगिनत ‘एक्सक्लूसिव’ समाचार (इतने कि महीनों तक दैनिक स्तम्भ के रूप में) छापने का श्रेय हासिल कर लेता।
इन्हीं शेखरजी से मेरा सम्पर्क बना रहता है। बातों ही बातों में इन्होंने दो ऐसे किस्से सुनाए जो, राष्ट्रीय स्तर के दो महत्वपूर्ण मुद्दों, मोदी के डिजिटल इण्डिया के सपने और सूचना के अधिकार की सफलता, के प्रति मध्य प्रदेश सरकार की ‘नीयत’ उजागर करते हैं।
पहला किस्सा।
मध्य प्रदेश की जेलों में बन्द कैदियों से जुड़ी मानवीय स्थितियों की कुछ सूचनाएँ उपलब्ध कराने के लिए शेखरजी ने जेल मुख्यालय को आवेदन भेजा। जवाब में उनसे, सूचना के चार पन्नों का शुल्क आठ रुपये जमा कराने को कहा गया। साथ ही, जवाब प्राप्त करने के लिए पर्याप्त डाक टिकिट लगा लिफाफा भी भेजने को कहा गया।
आठ रुपये भेजने के लिए शेखरजी ने खूब माथा खुजाया। बैंक ड्राफ्ट बनवाएँ तो ‘सोने से घड़ावन मँहगी’ और मनी आर्डर करें तो, पत्र और मनी आर्डर अलग-अलग भेजने पर (दोनों का प्राप्ति समय अलग-अलग होने से) जवाब मिलने में देर होने का खतरा। सो, शेखरजी ने दस रुपयों का पोस्टल भेजा और साथ में रजिस्टर्ड पत्र से जवाब पाने के लिए सत्ताईस रुपयों के डाक टिकिट लगा लिफाफा भेजा। इसमें रजिस्ट्री खर्च आया 22/- रुपये। जवाब में शेखरजी को चार पन्नों की सूचना मिल गई।
पहली नजर में, देखने-सुनने में इसमें सब कुछ नियमानुसार, सामान्य ही लगता है। कुछ भी अटपटा और आपत्तिजनक नहीं लगता। किन्तु बकौल शेखरजी, इस मामले को तनिक ध्यान से और प्रधान मन्त्री मोदी के ‘डिजिटल इण्डिया’ की भावना के परिप्रेक्ष्य में देखें तो कुछ अलग ही तस्वीर सामने आती है।
यदि सरकार ने अपने कामकाज में ऑन लाइन या कि डिजिटल व्यवस्था अपनाई होती तो शेखरजी आठ रुपयों का सूचना शुल्क ऑन लाइन जमा कर देते और शेखरजी को वांछित सूचनाएँ पहली ही बार में डिजिटल स्वरूप में मिल जातीं।
यह तो विलम्ब की बात हुई। खर्चे का हिसाब तो और भी रोचक तो है ही, धन और संसाधनों के अपव्यय का मामला भी बनता है। विस्तृत ब्यौरे इस प्रकार हैं -
शेखरजी ने आवेदन शुल्क 10/- रुपयों के पोस्टल आर्डर सहित अपना आवेदन रजिस्टर्ड डाक से भेजा जिसका खर्च आया - 22/- रुपये।
उत्तर में जेल मुख्यालय ने रजिस्टर्ड पत्र भेजकर शेखरजी से आठ रुपये सूचना शुल्क माँगा जिसका खर्च आया 22/- रुपये।
तदनुसार शेखरजी ने 27/- रुपयों के डाक टिकिट लगे लिफाफों सहित 10/- रुपयों का पोस्टल आर्डर रजिस्ट्री से भेजा। रजिस्ट्री का खर्च आया 22/- रुपये।
जेल मुख्यालय ने रजिस्टर्ड पत्र से शेखरजी को चार पन्नों में सूचना भेजी। इसमें रजिस्ट्री खर्च आया 22/- रुपये।
इस तरह कुल खर्च आया 135/- रुपये। भरपूर समय, लिखा-पढ़ी का मानव श्रम और कागज-लिफाफे लगे सो अलग।
शेखरजी के मुताबिक सरकार ने यदि ऑन लाइन/डिजिटल व्यवस्था अपनाई होती और सूचना शुल्क 8/- रुपये ऑन लाइन जमा कराने की सूचना ई-मेल पर दी होती तो पहली बार आवेदन शुल्क 10/- रुपये, रजिस्ट्री शुल्क 22/- रुपये और बाद में 8/- रुपये सूचना शुल्क की सकल रकम केवल 40/- रुपये खर्च होते और सूचनाएँ डिजिटल स्वरूप में उपलब्ध करा दी जातीं। इसमें समय, मानव श्रम और संसाधनों के खर्च की जो बचत होती वह ‘शुद्ध मुनाफा’ होती।
किन्तु इससे भी महत्वपूर्ण बात यह होती कि यदि मध्य प्रदेश सरकार ने ऑन लाइन व्यवस्थाएँ अपनाई होतीं तो यह जहाँ एक ओर सूचना के अधिकार की पारदर्शिता की भावना के अनुकूल होता वहीं मोदी के, डिजिटल इण्डिया के विचार को भी साकार करता।
लेकिन यह उदाहरण बताता है कि मध्य प्रदेश सरकार को इन दोनों बातों से कोई लेना-देना नहीं है।
दूसरा किस्सा अगली कड़ी में।
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ब्लॉग बुलेटिन - ये है दिल्ली मेरी जान “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteपहले ओंन लाइन व्यवस्था का इस्तेमाल करो | बाद मी कॅशलेश कि बात करो }नाही तो बकवास बंद करो |
ReplyDeleteमध्य प्रदेश का तो पता नहीं, केंद्र सरकार के सारे मंत्रालयों को ऑनलाइन अर्ज़ी भेजी जा सकती है। https://rtionline.gov.in पर
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