दादा ने लबूर दिया

‘‘दादा! आज दादा ने लोकेन्द्र को ‘लबूर’ दिया।’’ हँसते-हँसते सूचना दी वासु भाई ने। ‘कहाँ मिल गए थे?’ पूछा मैंने तो वासु भाई ने कहा - ‘मिले नहीं। फोन पर।’

‘लबूरना‘ मालवी बोली का लोक प्रचलित क्रियापद है जिसका अर्थ है - मुँह नोंच लेना। वासु भाई के मुताबिक दादा ने फोन पर लोकेन्द्र भाई का मुँह नोंच लिया था।

‘लोकेन्द्र’ याने डॉक्टर लोकेन्द्र सिंह राजपुरोहित और ‘वासु भाई’ याने वासुदेव गुरबानी। लोकेन्द्र भाई बी. ए. एम. एस. (बेचलर ऑफ आयुर्वेद विथ मॉडर्न मेडिसिन एण्ड सर्जरी) हैं। चिकित्सकीय परामर्श का कामकाज तो अच्छा खासा है ही, एक्स-रे क्लिनिक भी चलाते हैं। वासु भाई की, इलेक्ट्रानिक कल-पुर्जों की और उपकरणों की मरम्मत की दुकान है। दुकान मौके की तो है ही, आसान पहुँच में भी है। सो, यार-दोस्तों की बैठक भी यहाँ जमती रहती है। मैं भी कभी-कभार यहाँ की अड्डेबाजी में शरीक हो जाता हूँ। दोनों ‘बाल सखा’ हैं और मुझ पर अत्यधिक स्नेहादर रखते हैं।

बाजार से निकलते हुए वासु भाई की दुकान पर नजर डाली तो पाया कि ग्राहक एक भी नहीं है और दोनों बाल-सखा बतिया रहे हैं। अड्डेबाजी की नीयत से मैं भी रुक गया। मैं जाकर बैठता उससे पहले ही वासु भाई से उपरोल्लेखित सम्वाद हो गया। मैंने देखा - सुनकर लोकेन्द्र भाई खिसियाने के बजाय खुलकर हँस रहे हैं। मैं आश्वस्त हुआ। पूछा तो पूरी बात सामने आई।

लोकेन्द्र भाई ने साधारण बीमा निगम की एक बीमा कम्पनी से ली हुई मेडीक्लेम बीमा पॉलिसी के अन्तर्गत एक दावा कर रखा था। अपने स्थापित चरित्र के अनुसार, बीमा कम्पनी, दावे का भुगतान करने में टालमटूल कर रही थी। लोकेन्द्र भाई ने, बीमा कम्पनी के चेन्नई स्थित मुख्यालय से पत्राचार किया तो उत्तर में उन्हें अंग्रेजी के, बारीक अक्षरों में छपे चार पन्ने मिल गए। इन पन्नों की जानकारी हिन्दी में प्राप्त करने के लिए लोकेन्द्र भाई उठा पटक कर रहे थे। इसी दौरान वासु भाई ने मुझसे मदद माँगी तो मैंने कहा सहज भाव से कहा कि वे दादा को अपनी समस्या लिख भेजें और साथ में सारे कागज भेज दें क्योंकि दादा, राजभाषा संसदीय समिति के सदस्य रह चुके हैं और हिन्दी से जुड़े ऐसे मामले वे उत्साह से लेते हैं। वासु भाई ने मेरी बात लोकेन्द्र भाई को बताई लोकेन्द्र भाई ने ‘अविलम्ब आज्ञापालन भाव’ से सारे कागज दादा को पोस्ट कर दिए।

कोई छः-सात दिन बाद लोकेन्द्र भाई ने, केवल यह जानने के लिए कि कागज-पत्तर मिले या नहीं, दादा को फोन लगाया। जवाब में वही हुआ जो वासु भाई ने बताया था - दादा ने लोकेन्द्र भाई को ‘लबूर’ लिया। मैंने प्रश्नवाचक मुद्रा और जिज्ञासा भाव से अपनी मुण्डी लोकेन्द्र भाई की तरफ उचकाई।

खुल कर हँसते हुए लोकेन्द्र भाई ने बताया कि दादा के ‘हेलो’ के उत्तर में जैसे ही उन्होंने (लोकेन्द्र भाई ने) अपना नाम बताया तो दादा ‘शुरु’ हो गए। जो कहा, वह कुछ इस प्रकार था - ‘दूसरों से हिन्दी में काम काज की अपेक्षा करते हो, उनके अंग्रेजी में सूचना देने को राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन करने का अपराध कहते हो और खुद क्या कर रहे हो? तुम अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी में करते हो! दूसरों को हिन्दी की अवहेलना करने का, राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन करने का दोषी करार देने से पहले खुद तो हिन्दी का मान-सम्मान करो!’ लोकेन्द्र भाई बोले - ‘मेरी तो शुरुआत ही पिटाई से हुई। सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। घिग्घी बँध गई। मुझसे तो हेलो कह पाना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा था। हिम्मत करके, जैसे-तैसे क्षमा-याचना की। लेकिन इसके बाद अगले ही क्षण दादा सामान्य-सहज हो गए। मेरी मदद का आश्वासन दिया। किन्तु अंग्रेजी में मेरे हस्ताक्षरों को लेकर उनकी पहली प्रतिक्रिया ने मुझे झकझोर दिया। अंग्रेजी में हस्ताक्षर करना इतनी गम्भीर बात हो सकती है, यह मैंने कभी नहीं सोचा था।’

चूँकि यह मेरा भी प्रिय विषय है, इसलिए कहना तो मैं भी काफी-कुछ चाहता था किन्तु यह ठीक समय नहीं था। लोकेन्द्र भाई अभी-अभी ही ‘दुर्घनाग्रस्त’ होकर बैठे हैं। मैं कुछ कहूँगा तो ‘कोढ़ में खाज’ वाली स्थिति न हो जाए! सो चुप रहा। थोड़ी देर तक गप्प गोष्ठी कर लौट आया।

अब प्रतीक्षा कर रहा हूँ। कुछ दिन बीता जाएँ। फिर कभी लोकेन्द्र भाई मिलेंगे तो पूछूँगा - ‘अब फिर खुद को लबुरवाओगे या हिन्दी में हस्ताक्षर करना शुरु कर दिया है?’

9 comments:

  1. हिन्दी में हस्ताक्षर, हम तो अभी तक अंग्रेजी में ही करते हैं।

    ReplyDelete
  2. Vivek Rastogi

    कोई बात नहीं। अधिकांश लोग ऐसा ही कर रहे हैं - बिना किसी दुराशय के। किन्‍तु -जब जागे, तभी सवेरा।

    इसी क्षण से हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करना शुरु कर दीजिए। विश्‍वास कीजिएगा - यह छोटी बात नहीं है। इसके मायने होते हैं।

    ReplyDelete
  3. साहित्य संवर्धन चल रहा है, अबाध..

    ReplyDelete
  4. सहज विसंगति, जिसकी ओर सामान्‍यतः ध्‍यान नहीं जाता.

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. जी, शिक्षाप्रद आलेख। हिन्दी हस्ताक्षर पर बड़े नाटक होते देखे हैं अपनी सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी के दौरान।

    ReplyDelete
  7. जी, शिक्षाप्रद आलेख। हिन्दी हस्ताक्षर पर बड़े नाटक होते देखे हैं अपनी सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी के दौरान।

    ReplyDelete
  8. Me shuru se hi hindi me hastakshar karta hoon.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.