ये हैं मेरी उत्तमार्द्ध, वीणाजी। इनका यह चित्र, करवा चौथ, 02 नवम्बर 2012 की सुबह 10 बजकर 37 मिनिट पर लिया था। चित्र में, इनके हाथ की थाली में तले हुए आलू चिप्स और बाँयी ओर रखी प्लेट में राजगिरे का हलुवा आप शायद देख पा रहे हों।
आज के अखबारों में करवा चौथ छाई हुई थी। किसी ने धार्मिकता के साथ तो किसी ने मार्केटिंग के नजरिये से करवा चौथ को प्रमुखता दी थी। बरसों से माथा खपा रहा हूँ लेकिन यह बात मुझे आज तक समझ नहीं आई कि सारे व्रत-उपवास महिलाओं के लिए ही क्यों जरूरी किए गए हैं? खूब ध्यान से देखने पर भी, एक भी व्रत-उपवास पुरुषों के लिए नजर नहीं आया। पुरुष अपनी मन-मर्जी से एकादशी-पूर्णिमा का व्रत/उपवास कर लें, यह अलग बात है किन्तु ‘केवल पुरुषों के लिए’ एक भी व्रत/उपवास का प्रावधान नहीं मिला। मुझे यह बात कभी अच्छी नहीं लगी। इसीलिए, मैं ऐसे प्रत्येक प्रसंग पर मेरी उत्तमार्द्ध को व्रत/उपवास करने से रोकता रहा हूँ।
आज मैंने ठान लिया कि आज मैं इन्हें उपवास नहीं करने दूँगा। सो, चाय पीते हुए कहा - ‘मेरी हार्दिक इच्छा है कि आज आप उपवास नहीं करें।’ मेरी बात सुनकर इन्होंने मेरी ओर देखा भी नहीं। मैंने कहा - ‘क्या आप इसीलिए मुझे दीर्घायु देखना चाहती हैं या सात जनम तक मेरा साथ चाहती हैं कि आप मेरी बात अनसुनी करती रहें, मेरी उपेक्षा करती रहें?’ इस बात ने असर किया। तनिक असहज होकर मेरी ओर देखा। बोलीं - ‘यह क्या बात हुई?’ मैंने कहा - ‘जब आप मेरी बात ही सुनने-मानने को तैयार नहीं तो उपवास तो केवल एक कर्मकाण्ड, एक दिखावा भर है! जिस पति की बेहतरी के लिए आप उपवास करना चाहती हैं, उसी की प्रसन्नता ही चिन्ता नहीं कर रहीं? क्या फायदा ऐसे उपवास का?’ वे तनिक नरम पड़ीं। बोलीं - ‘लोग क्या कहेंगे? आस-पड़ौस की औरतें क्या कहेंगी?’ इस जवाब ने मेरा हौसला बढ़ा दिया। मैंने मानो अन्तिम तर्क दिया - ‘आपको मेरे मुकाबले लोगों की और आस-पड़ौस की औरतों की चिन्ता ज्यादा है! पूछें तो कह दीजिएगा कि जिसके लिए उपवास करना था, उसी ने मना कर दिया। आप नहीं कह सकें तो मुझे बुलवा लीजिएगा। मैं सबको जवाब दे दूँगा।’ यह सवाल कारगर साबित हुआ। हथियार डालते हुए बोलीं - ‘अच्छा निर्जल उपवास नहीं करूँगी लेकिन निराहार उपवास करने में तो कोई हर्ज नहीं है!’ मैंने कहा - ‘चलिए! न आपकी न मेरी! आधी-आधी दोनों की। आप व्रत कर लीजिए - एक समय भोजन कर लीजिएगा।’ वे मान गईं।
मैंने थामी हुई अंगुली से अपनी पहुँच कलाई तक बढ़ाई - ‘चलिए! ऐसा ही सही। किन्तु शाम तक भूखे मत रहिएगा। सुबह के लिए कुछ फलाहार बना लीजिएगा।’ या तो उन्हें मेरी जिद का अनुमान हो गया था या वे मेरी प्रसन्नता की चिन्ता कर रही थीं - मान गईं। इसी के तहत सुबह उन्होंने आलू चिप्स तले और राजगिरे का हलवा बनाया। मैंने कहा - ‘आप अकेली व्रत नहीं करेंगी। मैं भी आपके साथ व्रत करूँगा।’ वे खुश हो गईं। सो, सुबह हमारे घर में भोजन नहीं बना। हम दोनों ने ‘फलाहार’ किया।
शाम को सब कुछ सामान्य व्यवहार हुआ। रोज की तरह शाम का भेजन बनाकर वे छत पर घूमने गईं। आज कुछ अधिक देर तक रुकीं - चन्द्र दर्शन जो करना था। चन्द्र दर्शन कर नीचे आईं। बोली - ‘आइए! भोजन कर लेते हैं।’ मुझे भूख नहीं थी। जवाब दिया - ‘आप सुबह की भूखी हैं। आप भोजन कर लीजिए। मैं बाद में कर लूँगा।’ अपनी थाली लगाते हुए उन्होंने परिहास किया - ‘करवा चौथ मैं कर रही हूँ या आप?’ मैंने कहा - ‘सुबह ही तय हो गया था कि मैं भी आपके साथ व्रत करूँगा। वहीं तो कर रहा हूँ?’ इस बार वे खुल कर हँसी - ‘हाँ। व्रत तो आपने ही किया है। पत्नी के भोजन करने के बाद भोजन करेंगे। आज का पुण्य आपको मिलेगा।’
वे भोजन करती रहीं और मैं टेबल पर अपना काम निपटाता रहा। अचानक याद आया - भोजन करते हुए इनकी तस्वीर ले ली जाए। मैं पहुँचा तब तक वे भोजन कर चुकी थीं। नीचेवाला चित्र उसी समय का है - रात 9 बजकर सात मिनिट का। उनकी प्लेट ‘सफाचट’ है। पासवाली थाली उन्होंने मेरे लिए लगाई थी। आज शाम हमारे यहाँ मैथी के पराठे, टमाटर की सब्जी और भरवाँ बेसन-मिर्ची बनी थी। मेरी थाली में बादवाली ये दोनों ही चीजें आपको नजर आ रही होंगी।
जब मैं यह लिख रहा हूँ तो दो और तीन नवम्बर की सेतु-रात्रि के साढ़े बारह बजनेवाले हैं। मेरी उत्तमार्द्ध गाढ़ी नींद में हैं। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। आज मैंने मेरी उत्तमार्द्ध को एक व्यर्थ के कर्मकाण्ड से बचाने में सफलता पाई। उन्होंने मेरी प्रसन्नता की चिन्ता की और करवा चौथ के उपवास को दूसरी वरीयता पर रखा।
मुझे लग रहा है - आज हम दोनों ने ही अपना-अपना धर्म निभाया।
अच्छा लगना ही चाहिये, व्रत प्रसन्नता के लिये ही तो रखे जाते हैं ।
ReplyDeleteआपकी शादी के कितने वर्ष हो गए?
ReplyDeleteहमने तो यह पति-धर्म अपनी शादी के पहले वर्ष से ही मना लिया था. :)
हमारे विवाह का सैंतीसवॉं वर्ष चल रहा है। आप सचमुच में प्रणम्य हैं। जाहिर है, मेरा आत्म-बल अपर्याप्त है। जब आपसे 'गण्डा' बँधवाया था, तब ही यह 'गुरु-ज्ञान' भी दे देते तो आज यह दिन नहीं देखना पडता।
Deleteमुझे लग रहा है - आज हम दोनों ने ही अपना-अपना धर्म निभाया।
ReplyDeleteभैया जी ऐसे ही ठगते ठगाते जिंदगी कट जाती हैं
बढिया है इतनी समझ होनी चाहिये
ReplyDeleteBadhai ! 37 barson ki Tapasyaa safal hone par .
ReplyDeleteव्रत त्योहार शरीर को कष्ट देने के लिये नहीं है, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाने के लिये हैं।
ReplyDeleteisi ko pyar kahte hain....
ReplyDeleteबधाई हो आपको !
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