'श्रीराम सेतु'
आजकल सम्पूर्ण भारत में श्री रामसेतु विवाद छाया हुआ है । इस विशय पर श्री मानस का शोध छात्र होने के नाते मैं कुछ तथ्यों की ओर देश का ध्यान दिलाना चाहता हूं ।
वानर सेना की सहायता व कुशलता से निर्मित इस रामसेतु के माध्यम से जब प्रभु श्रीराम लंका विजय पश्चात् विभीषण को लंका का राज्य देकर वापस श्रीअध्योध्याजी आ रहे थे, तब विभीषण की प्रार्थना पर इसी रारमसेतु के तीन खण्ड प्रभु श्रीराम ने अपने धनुष से कर इसे खण्डित कर दिया । आज वे ही खण्डित भाग दृष्टिगोचर हो रहे हैं ।
हमारी हिन्दू संस्कृति मान्यतानुसार किसी भी खण्डित वस्तु या प्रतिमा आदि का पूजन, स्पर्श व दर्शन नहीं किया जाता । जब प्रभु श्रीराम ने स्वयम् इस सेतु को खण्डित किया, तब आज उसी खण्डित वस्तु पर धार्मिक आस्थाओं को उभारना उचित नहीं । श्रीराम सेतु समुद्र में डूबा है जहां पूजा-अर्चना सम्भव नहीं । अत: इस धार्मिक उन्माद पर अंकुश लगाना होगा ।
खण्डित वस्तु को बचाना सही है या नहीं, इस पर भी प्रकाश डाला जाना चाहिए.
ReplyDeleteसंजय बेंगाडी का सवाल सटीक है.
ReplyDeleteबेंगाणीजी का सवाल बिलकुल सही है । इसका वास्तविक जवाब तो पण्डित ओमप्रकाश शर्मा भारद्वाज ही दे सकते हैं । लेकिन चूंकि ब्लाग पर मैं ने प्रस्तुत किया है इसलिए इसकी जवाबदारी मुझ पर भी आती ही है ।
ReplyDeleteखण्डित चीजों को जरूर बचाया जाना चाहिए और पुरा सम्पदाओं को तो बचाया ही जाना चाहिए, लेकिन फिर इसके लिए अभियान भी उन्हीं सन्दर्भों में चलाया जाना चाहिए और ऐसे किसी भी अभियान का लक्ष्य राजनीति और वोट तो होने ही नहीं चाहिए । रामसेतु बचाने के लिए जो आन्दोलन संघ चला रहा है, उसका कोई सांस्कृतिक, पुरातात्विक लक्ष्य है ही । उसके लक्ष्य पूरी तरह से और अन्तिम रूप से केवल राजनीतिक हैं । शायद इसीलिए, संघ के इस अभियान या आन्दोलन से देश का एक भी पुरा-प्रेमी संगठन नहीं जुडा है ।
अपवित्र साधनों से पवित्र लक्ष्य कभी भी हासिल नहीं हो पाता । नापाक इरादों से पाक मंजिलें हासिल नहीं होतीं ।
"रामसेतु बचाने के लिए जो आन्दोलन संघ चला रहा है, उसका कोई सांस्कृतिक, पुरातात्विक लक्ष्य है ही । उसके लक्ष्य पूरी तरह से और अन्तिम रूप से केवल राजनीतिक हैं । शायद इसीलिए, संघ के इस अभियान या आन्दोलन से देश का एक भी पुरा-प्रेमी संगठन नहीं जुडा है ।"
ReplyDeleteदेश में पुरा-प्रेमी संगठन कितने हैं, जो स्वतंत्र हैं? संघ के राजनीतिक लक्ष्य की बात क्यों की जा रही है, मुझे समझ में नहीं आता. ये राजनीतिक मामला नहीं है. ये पूरी तरह से धार्मिक मामला है. 'पुरा-प्रेमी संगठन' सरकार के अधीन काम करते हैं, ऐसे में वे किसी का समर्थन करेंगे, मुझे नहीं लगता.
यही 'पुरा-प्रेमी संगठन' ग्रेट बैरियर रीफ के रख-रखाव के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करने की हिमायत करते हैं, लेकिन इस सेतु के लिए कुछ कहते भी नहीं. कहेंगे कैसे, 'धर्म-निरपेक्षता' की रक्षा जो करनी है. सच्चाई का सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं है? हम क्यों स्वीकार नहीं करते की ये मामला धार्मिक है.
और एक बात. इस मामले पर राजनीति संघ या फिर बीजेपी ने नहीं बल्कि और पार्टियों ने शुरू की, जब उन्होंने राम के बारे में तमाम तरह के अपशब्द कहे.
पुरा-प्रेमी संगठन शहरों के बीच में टूटी-फूटी इमारतों को तो हेरिटेज का दर्जा देने में वक्त जाया करते हैं, लेकिन इस मामले में उनका निकम्मापन दिखाई दे रहा है.
छोड़िये कि सेतु रखा गया था या खण्डित किया गया था। सवाल तो राम के अस्तित्व पर शंका का है - यह सरकार अगर किसी और धर्म की बात होती तो उस मुद्दे पर ऐसा बोलती! शायद नहीं।
ReplyDeleteयदि ऐसा है तो भारत भी खण्डित है; इसकी भी पूजा नहीं होनी चाहिये बल्कि इसका पुनर्विखण्डन करना चाहिये!
ReplyDeleteधांसू तर्क खोज के लाये हैं।
:)
Deleteतिल को पहाड साबित करने की साजिश,,,पेट में मेल कुचैल,, रेत,, कंकर से काफी बडी-बडी पत्थरी बन जाती हैं,,, ऐसे ही समुद्र में आलतु फालतु चीजों के जुडने से कुछ पुल जैसा दिखने लगा है,, ''क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म?'' डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा 'अज्ञात' का लिखा लेख ''कहां से टपका रामसेतु'' इस विषय पर पढते हैं तो पता चलता है कि यह नाम ''राम सेतु'' शब्द तक किसी ग्रंथ में कहीं नहीं मिलता,, कंकर-पत्थ्र जम-जम कर जो आज कहीं है कहीं नहीं तो कहीं 10 फुट चौडी पटटी दिखायी दे जाती है इसको हिन्दू ग्रंथों का 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा पुल कहा जा रहा,, लंबाई की बात करें तो श्रीलंका से हिन्दुस्तान की इस हिस्से कुल दूरी 30 किलोमीटर लम्बी है जबकि ग्रंथ में पुल की 1468 किलोमीटर लिखी है,,,
ReplyDeleteविविदित पुल की लंबाई 30 किलोमीटर ,चौडाई कहीं 10 से कहीं 30 फुट तक ,जबकि रामायण के अनुसार-
चौडाई 128 किलोमीटर
लंबाई 1288 किलोमीटर
वानरों ने पहले दिन 14 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और 5वें दिल 23 योजन लंबा पुल बाधा इस तरह नल ने 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा पुल तैयार किया, पुल 10 योजन अर्थात 128 किलोमीटर चौडा था,
दश्योजनविस्तीर्ण शतयोजनमायतम्
दद्टशुर्देवरांधर्वा- नलसेतुं सुदुष्करम
--वाल्मिकी रामायण 6/22/76
लम्बाई-
वाल्मिमिकी रामायण के अनुसार यह नलसेतु 100 योजन अर्थात 1288 किलोमीटर लंबा था (संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी के अनुसार 1 योजन 8-9 मील का होता है, यहां हम ने 8 मील मान कर यह किलोमीटर में 1288 का आंकडा दिया है, यदि 9 मील का योजन मानें तो 100 योजन 1468 किलोमीटर होगा) पर अब जो पुल है वह तो केवल 30 किलोमीटर है, शेष 1258 अथवा 1438 किलोमीटर है कहां है्,
पानी में तैरते पत्थरों का सच-
floating stones [Pumice]
उज्जैन साइंस कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ आर एन तिवारी के अनुसार ज्वालामुखी फटने के बाद जब लावा जमता है तो ऐसे पत्थर बनते हैं इनका घनत्व कम होने के कारण यह पानी में तैर सकते हैं,,,,, एसे पत्थरों को प्यूमिस स्टोन Pumice कहा जाता है,
वहीं भौमिकी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ़ प्रमेंद्र देव ने बताया कि बसाल चटटानों के कारण ऐसे पत्थर बनते हैं, सतह पर छिद्र होने के कारण वजन कम होता है इस कारण यह पानी पर तैर सकते हैं , अधिक जानकारी के लिए ,, यू टयूब पर Pumice stone सर्च करके देखें
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=R1FOhfQBYMs
अधिक जानकारी इधर देखें
http://en.wikipedia.org/wiki/Pumice