अब राजस्थान रोडवेज की बारी?

भगवान करे, मेरा अन्देशा केवल अन्देशा बनकर ही रह जाए। यह कभी सच न हो और राजस्थान राज्य परिवहन निगम का भट्टा कभी न बैठे।

परसों, पहली फरवरी को मैंने रतलाम से मन्दसौर तक की यात्रा, राजस्थान राज्य परिवहन निगम याने राजस्थान रोडवेज की रतलाम-उदयपुर बस (नम्बर RJ27/PA 1838) से की और कण्डक्टर का ‘आर्थिक आचरण’ देखकर मुझे लग रहा है कि राजस्थान रोडवेज की दशा भी मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम जैसी होने में अब देर नहीं है। इसका भट्टा बैठना ही बैठना है।

सुबह कोई पौने सात बजे जब यह बस चली तो हम कोई पचीस यात्री इसमें थे। कस्बे से बाहर निकलते ही कण्डक्टर ने यात्रियों से किराया लेना शुरु किया। उसे बहुत देर नहीं लगी। पन्द्रह मिनिट से भी कम समय में उसने सबसे किराया वसूल लिया। मेरे पास आया तो मैंने किराए की रकम पूछी। उसने कहा - ‘साठ रुपये।’ रुपये देते हुए मैंने कहा - ‘अपने यात्रा बिल में लगाने के लिए मुझे टिकिट लगेगा। टिकिट साफ-साफ बनाइएगा जिसमें किराए की रकम और यात्रा का गन्तव्य बिना कठिनाई के पढ़ा जा सके।’ ‘आप टेंशन मत लो।’ कह कर वह इत्मीनान से अपनी सीट पर बैठ गया।

कस्बे से 6-7 किलोमीटर दूरी पर स्थिति इप्का लेबोरटरीज पर 12-15 लोग उतर गए। इनमें से प्रत्येक से उसने 5-5 रुपये वसूल किए थे।

अब बस में हम 10-12 यात्री बचे थे। जावरा में बस रुकी तो जितने यात्री उतरे उनसे अधिक चढ़े। जब बस जावरा से चली तो हम लगभग 35 यात्री हो गए थे। उसने इस बार भी वहीे किया - यात्रियों से किराया लिया और इत्मीनान से अपनी सीट पर बैठ गया।

उसने किसी को टिकिट नहीं दिया। किसी ने माँगा भी नहीं। मुझे लगा, वह मुझे भी टिकिट नहीं देगा। मैंने उसे याद दिलाया तो बेमन से उसने टिकिट दिया। दो कारणों से मुझे अच्छा लगा। पहला तो यह कि उसने टिकिट दिया और दूसरा यह कि टिकिट छपा हुआ था। लेकिन मैंने देखा - किराए की रकम 58 रुपये थी। मैंने तत्काल पूछा - ‘इसमें तो 58 रुपये लिखे हैं और आपने 60 रुपये लिए हैं?’ कण्डक्टर ने निस्पृह भाव से मेरी ओर उड़ती नजर डाली और अपनी सीट पर बैठ गया।

मन्दसौर पहुँचने से पहले मैंने उससे दो बार अपनी बाकी रकम (दो रुपये) माँगी। दोनों ही बार उसने अनसुनी की। मेरी ओर देखा भी नहीं। मन्दसौर में उतरते समय मैंने उससे फिर दो रुपये माँगे। उसने कहा - ‘छुट्टे नहीं हैं।‘ मैंने कहा - ‘बेग में देखिए तो सही! छुट्टे होंगे।’ उसने जवाब दिया - ‘बेग देख रखा है। छुट्टे नहीं हैं। आप आठ रुपये दे दो। मैं आपको दस रुपये दे देता हूँ।’ मुझ अजीब लगा। कहा - ‘तुम्हारे पास तो दो रुपये भी छुट्टे नहीं हैं और मुझसे आठ रुपये छुट्टे माँग रहे हो?’ उसने ‘मुद्राविहीन मुद्रा’ और जमा देनेवाली ठण्डी आँखों से मुझे देखते हुए कहा - ‘मेरे पास तो छुट्टे नहीं हैं।’ वास्तविकता क्या थी यह या तो वह जाने या फिर ईश्वर किन्तु मुझे अब तक लग रहा है कि उसने तय कर लिया था कि वह मुझे दो रुपये नहीं ही लौटाएगा।

मैं बस से उतर गया। लेकिन अब तक वह सब नहीं भूल पा रहा हूँ। कण्डक्टर ने बार-बार माँगने पर भी मेरी बाकी रकम नहीं लौटाई और टिकिट तो उसने मेरे सिवाय किसी को नहीं दिया। किसी ने माँगा भी नहीं। पता नहीं, कागजों में उसने कब, क्या और कैसे लिखा होगा?

वह भूलना तो दूर रहा, इस घटना ने मुझे मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम की याद दिला दी। वहाँ भी यही होता था। आकस्मिक जाँच दलों को, ओव्हर लोडेड बसें, बिना टिकिट मिला करती थीं। मेरे एक मित्र का चचेरा भाई म. प्र. राज्य परिवहन निगम में कण्डक्टर था। रामपुरा-इन्दौर बस में चला करता था। बस, शाम को लगभग सात बजे रामपुरा से चलती थी और सुबह 6-7 बजे इन्दौर पहुँचती थी। बस, रामपुरा से ही पूरी भर जाती थी और इन्दौर तक प्रतिदिन ओव्हरलोड ही चलती थी। मेरे मित्र का वह चचेरा भाई, कम से कम तीन बार निलम्बित हुआ - तीनों ही बार, पूरी की पूरी बस, बिना टिकिट यात्रियों से भरी मिली। पता नहीं, वह कैसे वापस बहाल हो जाया करता था। किन्तु चौथी बार वह निलम्बित नहीं हुआ। सीधा बर्खास्त कर दिया गया। ऐसा प्रकरण यह अकेला नहीं था। ऐसे समाचार अखबारों में आए दिनों छपते ही रहते थे जिनकी परिणती म. प्र. राज्य परिवहन निगम के बन्द होने में हुई। आज मध्य प्रदेश के लोग, निजी यात्री बस मालिकों की मनमर्जी के शिकार हो रहे हैं - पूरा किराया देते हैं, भेड़-बकरियों की तरह ठुँस कर सफर करते हैं, धक्के तो खाते ही हैं, अपमान भी झेलते हैं।

लगता है, अब राजस्थान में यही सब होनेवाला है।

भगवान करे, मेरा अन्देशा केवल अन्देशा ही बन कर रह जाए। सच न हो।
-----

आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे इंपतंहपअपेीदन/हउंपसण्बवउ पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

3 comments:

  1. यह तो खुली लूट है, हद है बेशर्मी की।

    ReplyDelete
  2. बहुत चिन्तनीय स्थिती है। अन्देशा ही रहे तो अच्छा है। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  3. bahut hi chinta janak stithi ho gai aaj ke samay me

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.