अब मैं तनिक सहज और सामान्य अनुभव कर रहा हूँ। आठ फरवरी वाली ‘राहुल का आभा मण्डल’ शीर्षक अपनी पोस्ट मैंने आज हटा दी है।
आदमी सारी दुनिया से नजर बचा ले, खुद से नहीं बचा सकता। मेरी उपरोक्त पोस्ट पर किन्हीं ‘एनोनीमसजी’ की आई एक टिप्पणी पर प्रतिक्रिया में मैंने जो टिप्पणी की थी, उसकी भाषा और शब्द चयन से मैं उस समय भी सन्तुष्ट और प्रसन्न नहीं था। टिप्पणी में भी मैंने स्वीकार किया था कि मैं अपने भाषा संस्कार से स्खलित हो रहा हूँ जिसका प्रायश्चित मुझे करना ही होगा।
आठ फरवरी की रात कोई नौ बजे, टिप्पणी करने के बाद से अब तक मैं बहुत ही परेशान रहा। ठीक है कि असहमति व्यक्त करने का अधिकार मुझे है। किन्तु यह अभिव्यक्ति भी शिष्ट, संयत और शालीन होनी चाहिए थी। अनुचित भाषा का उपयोग करने के लिए मैंने एनोनीमसजी की भाषा को आधार बनाने का तर्क प्रयुक्त किया था। वस्तुतः यह तर्क नहीं, कुतर्क था। मूर्खता का जवाब मूर्खता से देने की मूर्खता की थी मैंने। मुझे चाहिए था कि मैं अपने संस्कारों पर बना रहता और स्खलित हुए बिना, अपने भाषायी संस्कारानुरूप ही आचरण करता। किन्तु मैंने ऐसा नहीं किया और ईश्वर का तथा खुद का अपराधी बन गया।
अपने इस स्खलन के लिए मैं एनोनीमसजी से, ईश्वर से तथा समूचे ब्लॉग समुदाय से, अपने अन्तर्मन से क्षमा-याचना करता हूँ। जिस किसी को मेरे उस आचरण से ठेस पहुँची हो, आहत हुआ हो, वे सब, उदारता और बड़प्पन बरतते हुए मुझे क्षमा करने का उपकार करें। इससे कम कोई प्रायश्चित मुझे इस समय अनुभव नहीं हो रहा।
यह शायद आयु वार्धक्य का प्रभाव ही है कि मेरा धैर्य अपेक्षया जल्दी चुक जाता है और मैं अविलम्ब ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने का अविवेक कर देता हूँ। मैं यथा सम्भव प्रयास करूँगा कि भविष्य में ऐसा न हो।
ईश्वर मुझे शक्ति तथा आप सबकी शुभ-कामनाएँ प्रदान करे।
-----
आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
सादर शुभकामनायें!
ReplyDeleteविष्णू जी आप ने अपनी पोस्ट क्यो हटा दी, ओर यह अनामी बेनामी जो भी हे नकाब उतार कर बात करे, नकाब पहन कर जो बात करे उन के बार ज्यादा ध्यान मत दे, आप के किसी भी लेख से हम मे से किसी को भी ठेस नही पहुची, राय देना हम सब का फ़र्ज हे, लेकिन हमे अपनी भाषा पर ध्यान देना चाहिये,कि किसी का दिल ना दुखे.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
आपका चिन्तन बहुत संयत है, आपका निर्णय है ठीक ही होगा।
ReplyDeleteहम तो संदर्भ से अनभिज्ञ हैं, लेकिन अपना नाम देखकर चौंक गए, वैसे इस तरह चौंकना आजकल हमारी रूटीन में है.
ReplyDeleteसन्दर्भ तो नहीं मालुम मगर मेरी हार्दिक शुभकामनायें आपके साथ हैं !
ReplyDeletemujhe aapka ye prayas bahut achchha laga..aur ek baat sikhne ko mili...आदमी सारी दुनिया से नजर बचा ले, खुद से नहीं बचा सकता..Thanks
ReplyDeleteमै भी इस संदर्भ से अपरिचित हूँ लेकिन आपकी सुहृद्यता प्रभावित करती है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteअनाम रहकर हम वो कह सकते हैं जोकि नाम के साथ कहना संभव न हो। अनाम के रूप में ख़ुद को व्यक्त करना कितना बड़ा वरदान है ये शायद ही कोई समझता है। ख़ासकर वो लोग जो अनामी कमेन्ट करते हैं वो तो इस बात को बिल्कुल ही नहीं समझते हैं। यही वजह है कि भद्दे कमेन्ट करके अनाम को बदनाम करते हैं।
ReplyDeleteमैंने वो पोस्ट पढ़ी है और मेरे कंप्यूटर और गूगल सर्वर समेत सैकड़ों हजारों कंप्यूटरों पर अभी भी वो पोस्ट सुरक्षित है.
ReplyDeleteइंटरनेट कभी नहीं भूलता और वहाँ से कोई चीज कभी नहीं हटती. अलबत्ता आपके ब्लॉग की सूची से जरूर वो गायब हो गई है.
रहा सवाल उसकी भाषा का तो उसमें तो कोई खोट मुझे नजर नहीं आई थी. बल्कि एक हृदय से निकली सही नसीहत थी. फिर भी, निर्णय आपका अपना स्वयं का है, और यदि इसे मिटाकर आपको सुकून मिला तो आपने ठीक ही किया.
और, बेनामियों की ऊटपटांग बातों, टिप्पणियों से चिंतित न हों. सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म में उतरे हैं तो आरोप-प्रत्यारोप-आलोचना तो झेलने ही होंगें :)