मेरे कस्बे का माणक चौक विद्यालय अपनी स्थापना के सवा सौवें वर्ष में चल रहा है। इस वर्ष में यहाँ विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जा रही हैं।
इसी क्रम में, पुस्तकों की एक अनूठी प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। अनूठी इस मायने में कि यह प्रदर्शनी लेखन अथवा प्रकाशन की किसी विधा-विशेष पर केन्द्रित न होकर केवल ‘पुस्तक’ पर केन्द्रित है। इस प्रदर्शनी में, सन् 1847 से 1947 तक के 101 वर्षों में प्रकाशित पुस्तकें शामिल की जाएँगी जिन्हें प्रकाशन के वर्षानुक्रम से, अलग-अलग टेबलों पर प्रदर्शित किया जाएगा। विद्यालय के वाचनालय/पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकें ही इसमें शामिल की जाएँगी। जाहिर है कि इसमें स्कूली विशयों की पुस्तकें ही प्रमुख होंगी।
पुस्तकें छाँटने के दौरान एक पुस्तक ऐसी मिली है जिसकी भाषा से कोई परिचित नहीं है। विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर मुरलीधर चाँदनीवाला ने अपनी सूझ-समझ और क्षमतानुसार पूरे कस्बे के लोगों से सम्पर्क किया किन्तु कोई भी इस भाषा के बारे में नहीं बता पाया।
उन्होंने ने मुझे यह काम सौंपा। मैंने भी कस्बे के अनेक लोगों से सम्पर्क किया (उनमें से कुछ लोग ऐसे मिले जिनसे चाँदनीवालाजी पहले ही सम्पर्क कर चुके थे) किन्तु मुझे भी सफलता नहीं मिली।
इस पुस्तक के दो पन्नों का चित्र यहाँ प्रस्तुत है। विद्यालय के पुस्तकालय में यह पुस्तक सन् 1886 में शामिल की गई थी।
प्रदर्शनी, बसन्त पंचमी दिनांक 8 फरवरी को शुरु होगी। यदि उससे पहले कोई कृपालु इसकी भाषा के बारे में आधिकारिक जानकारी दे सके तो बड़ी कृपा होगी।
-----
आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
हर पुस्तक का सम्मान, पर भाषा नहीं समझ आ रही है।
ReplyDeleteये तो पुरातत्ववेत्ता सटीकता से बता पाएंगे कि भाषा-बोली कौन सी है, परंतु लिपि तो गुजराती-देवनागरी मिक्स लग रही है?
ReplyDelete@रवि रतलामी
ReplyDeleteरविजी,
देवनागरी जैसी लग रही है किन्तु है नहीं और गुजराती वाले इसे गुजराती मानने से इंकार कर रहे हैं। रतलाम में गुजराती समाज की उपस्थिति से तो आप भली भॉंति परिचित हैं ही।
एक नज़र देखने पर भाषा तो मराठी लग रही है। लिपि के बारे में इतना ही कहूंगा कि यह शर्म की बात है कि हम लोग अपनी लिपियों के वेरिएशंस को भी रिकॉर्ड नहीं कर पाये, यह पुस्तक तो ऐसी प्राचीन भी नहीं कि इसके बारे में जानना इतना कठिन हो।
ReplyDeleteभाषा: मराठी
ReplyDeleteलिपि: मोदी
मोदी लिपि देवनागरी की ही एक शैली थी जिसमें कलम उठाये बिना जल्दी लिखा जा सकता था।
@स्मार्ट इण्डियन
ReplyDeleteआपने नया नाम (मोदी लिपि) बताया है। धन्यवाद। लेकिन काम कठिन लग रहा है। मोदी लिपि जाननेवाले कोई मेरे कस्बे मैं हैं या नहीं-मालूम नहीं। किसी मराठी भाषी मित्र से ही शुरुआत करनी पडेगी। सफलता मिली तो आपको सूचित करूँगा ही। फिर से धन्यवाद।
हमे पता नही जी, शायद अनुराग जी ने सही कहा हो मोदी लिपि हो. धन्यवाद
ReplyDeleteआप यहां मोदी मराठी का नमुना देख सकते हे...
ReplyDeleteयहां
लिपि और भाषा-बोली दोनो प्राचीन मराठी और प्रारभिक गुजराती के संधी काल की प्रतीत होती है। भाषा उस काल में मुंबई की लोक-बोली सी आभास देती है।
ReplyDelete@सुज्ञ
ReplyDeleteयह 'मोडी मराठी' है। 'बर्ग वार्ता' वाले श्री अनुरागजी शर्मा (पिट्सबर्ग) ने यह तलाश पूरी की थी।
पुस्तक का नाम: मोडी वचनसार
ReplyDeleteप्रकाशक: वसुदेव मोरेश्वर पोद्दार
हेड्मास्टर, गिरगाँव प्राय्वेट स्कीम 4, मुम्बई
[हाल ही में इसी विषय पर एक फेसबुक वार्ता देखी तो सोचा कि इस पुस्तक का विवरण यहाँ लगा ही दूँ सन्दर्भ के लिये]
फेसबूक पर मोडी लिपी समूह - https://www.facebook.com/groups/123786634305930/?ap=1
ReplyDeleteमैं इस पुस्तक को खरीदना चाहता हूँ । क्या मुझे कोई बता सकता है कि यह मुझे कहाँ मिल सकती है ?
ReplyDelete