सवाल सिर्फ खिड़कियों का नहीं
उनके खुली रहने का है!
खिड़की होने भर से
खिड़की नहीं हो जाती,
काल-कोठरियों में भी होती हैं
बन्द रखी जाने के लिए खिड़कियाँ!
दीवारें जनम से सबके साथ हैं
सख्त से सख्ततर होती हुईं
खिड़कियाँ
दीवारों को भेद कर ही सम्भव हैं!
ताजी हवा फेफड़ों के लिए
और संसार
सपनों की सेहत के लिए
जरूरी है!
-----
उनके खुली रहने का है!
खिड़की होने भर से
खिड़की नहीं हो जाती,
काल-कोठरियों में भी होती हैं
बन्द रखी जाने के लिए खिड़कियाँ!
दीवारें जनम से सबके साथ हैं
सख्त से सख्ततर होती हुईं
खिड़कियाँ
दीवारों को भेद कर ही सम्भव हैं!
ताजी हवा फेफड़ों के लिए
और संसार
सपनों की सेहत के लिए
जरूरी है!
-----
‘शब्द तो कुली हैं’ कविता संग्रह की इस कविता को अन्यत्र छापने/प्रसारित करने से पहले सरोज भाई से अवश्य पूछ लें।
सरोजकुमार : इन्दौर (1938) में जन्म। एम.ए., एल.एल.बी., पी-एच.डी. की पढ़ाई-लिखाई। इसी कालखण्ड में जागरण (इन्दौर) में साहित्य सम्पादक। लम्बे समय तक महाविद्यालय एवम् विश्व विद्यालय में प्राध्यापन। म. प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग (भोपाल), एन. सी. ई. आर. टी. (नई दिल्ली), भारतीय भाषा संस्थान (हैदराबाद), म. प्र. लोक सेवा आयोग (इन्दौर) से सम्बन्धित अनेक सक्रियताएँ। काव्यरचना के साथ-साथ काव्यपाठ में प्रारम्भ से रुचि। देश, विदेश (आस्ट्रेलिया एवम् अमेरीका) में अनेक नगरों में काव्यपाठ।
पहले कविता-संग्रह ‘लौटती है नदी’ में प्रारम्भिक दौर की कविताएँ संकलित। ‘नई दुनिया’ (इन्दौर) में प्रति शुक्रवार, दस वर्षों तक (आठवें दशक में) चर्चित कविता स्तम्भ ‘स्वान्तः दुखाय’। ‘सरोजकुमार की कुछ कविताएँ’ एवम् ‘नमोस्तु’ दो बड़े कविता ब्रोशर प्रकाशित। लम्बी कविता ‘शहर’ इन्दौर विश्व विद्यालय के बी. ए. (द्वितीय वर्ष) के पाठ्यक्रम में एवम् ‘जड़ें’ सीबीएसई की कक्षा आठवीं की पुस्तक ‘नवतारा’ में सम्मिलित। कविताओं के नाट्य-मंचन। रंगकर्म से गहरा जुड़ाव। ‘नई दुनिया’ में वर्षों से साहित्य सम्पादन।
अनेक सम्मानों में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ट्रस्ट का ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ (’93), ‘अखिल भारतीय काका हाथरसी व्यंग्य सम्मान’ (’96), हिन्दी समाज, सिडनी (आस्ट्रेलिया) द्वारा अभिनन्दन (’96), ‘मधुवन’ भोपाल का ‘श्रेष्ठ कलागुरु सम्मान’ (2001), ‘दिनकर सोनवलकर स्मृति सम्मान’ (2002), जागृति जनता मंच, इन्दौर द्वारा सार्वजनिक सम्मान (2003), म. प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा ‘माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान’ (2009), ‘पं. रामानन्द तिवारी प्रतिष्ठा सम्मान’ (2010) आदि।
पता - ‘मनोरम’, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर - 452018. फोन - (0731) 2561919.
R/SIR SAROJ KUMAJI SADAR NAMASTE !SHAYAD HI AAPKO YAAD HOGA KI AAPNE KABHI MUJHE MERI TUTUI FUTI KAVITA PAR KAHA THAA SURVAT TO BAS ESE HI HOTI HAI SUNA KARO AUR LIKHA KARO, PHIR ADARNIA SURESH YADAW ALLINDIA RADIO NE KAHA THA YA TO KAVITA LIKHO YAA KAHANI.AUR MANANIYA NARENDRAJI PANDIT ALL INDIA RADIO NE PROTSAAHAN DIYA.KUL MILA KAR ME KAHAN CHAYATA HOO AAP JAISE LOGO KE DYWARA KHOLI KHIDKI BAHOOT TAAJI HAV DETI HAI , AWARA MASIH KE LEKHAK JINONE SHARD CHAND KI JIVANI LIKHI THI MUJHE KAHA THA NAA LIKHO AUR JIVAN KO PAAS SE DEKHTE RAHO VAHI KAR RAHA HOO.VAAJ YAH SAB LIKH PAYA VISHNUJI BERAGI KE KAARN JAY HO !
ReplyDeleteबंद खिड़की बंद दिमाग की तरह होती है,इसलिए खिड़की हो तो खुली हो ...वरना न हो । सरोज जी को धन्यवाद । इस रचना के लिए ।
ReplyDelete