सिंहस्थ से भयभीत


एक से पन्द्रह मई के बीच, दो दिनों के लिए उज्जैन जाना है लेकिन घबराहट अभी से बनी हुई है। नहीं। न तो सिंहस्थ का पुण्य-लाभ लेना है न ही महाकाल दर्शन का या अन्य किसी साधु-महात्मा के दर्शनों का। एक प्रियात्मा की भावनाओं के अधीन जाना (ही) है। किन्तु अखबारों की सुर्खियाँ और उज्जैनी मित्रों/परिचितों से मिल रही सूचनाएँ विकर्षित और हतोत्साहित कर रही हैं। सुन-सुन कर पहला निष्कर्ष निकल रहा है कि व्यवस्था बनाए रखने के लिए बरती जानेवाली अत्यधिक और अतिरिक्त सतर्कता के कारण ही अव्यवस्था हो रही है। दूसरा निष्कर्ष निकल रहा है - व्यवस्थाओं के नाम पर सिंहस्थ को ‘हाई-टेक’ बनाने के चक्कर में व्यवस्थाओं के घुटने टिक रहे हैं। 

मेरे एक उज्जैनी मित्र के लिए यह पाँचवाँ सिंहस्थ है। वे व्यवस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि अन्तिम निर्णय लेने के लिए जिन अधिकारियों को कमान थमा दी गई है उनमें से शायद ही कोई उज्जैन को और सिंहस्थ के मिजाज को जानता-समझता है। सफलता का साफा बँधाने के लिए (और नौकरी में आगे तरक्की सुनिश्चित करने के लिए) नेताओं ने अपनेवालों को आगे कर दिया है जो ‘राजकीय संरक्षण और सुरक्षा से उपजे अतिरिक्त आत्म-विश्वास’ के चलते, पुराने और सिंहस्थ के अनुभवी लोगों की नहीं सुन रहे हैं। हर बात को ‘पहले जो ठीक और कामयाब था, जरूरी नहीं कि आज भी ठीक और कामयाब हो’ कह कर सब ‘मेनेजमेण्ट के अपने-अपने फण्डे’ आजमा रहे हैं। पहले शाही स्नान वाले दिन इसी कारण ‘सब कुछ होते हुए भी सब कुछ ध्वस्त हो जाने’ के पीछे भी यही मनमानी रही। मेरे एक और परिचित, इन्दौर निवासी एक प्रशासकीय अधिकारी का यह दूसरा सिंहस्थ है। उनका भी यही कहना है कि सिंहस्थ से अनजान अधिकारी, सिंहस्थ के जानकार अधिकारियों को हँसी में खारिज कर रहे हैं और मुख्यमन्त्री की भद पिटवा रहे हैं। उनका भी यही कहना है-‘छप्पन व्यंजन तैयार रखे हैं और लोग भूखे जा रहे हैं।’

यातायात व्यवस्था को लेकर डरावनी खबरें सर्वाधिक आ रही हैं। हर कोई कह रहा है कि पाँच-सात किलो मीटर तो चलना ही पड़ेगा। हम दोनों पति-पत्नी उम्र से भले ही आँखें चुरा लें लेकिन अपने थुलथुलपन से कैसे इंकार करें? इस कारण भी घबराहट हो रही है। ऐसे में कोढ़ में खाज की तरह, मेरे प्रिय मित्र, ‘उज्जैनी’ भाई अनिल देशमुख की इस पोस्ट ने अभी से नींद हराम कर दी है। शाही स्नान के दो दिनों बाद, 24 अप्रेल की उनकी यह फेस बुक पोस्ट पढ़कर आप भी हमारे डर को वाजिब ही कहेगें -

”उज्जैन में सिंहस्थ को ले कर अनावश्यक बैरिकेटस इतने लगा दिए गए हैं कि बिना बात लोगों को परेशान होना पड़ रहा है। जो पुल और चौड़ी सड़कें सिंहस्थ के लिए विशेष रूप से बनी हैं, उन पर ही बैरिकेट लगा कर जाने नहीं दे रहे और लोगों को सँकरे रास्तों पर डाइवर्ट किया दिया जा रहा है। इससे बिना बात जाम की स्थिति बन रही है। 

कल मैं मेरी पत्नी के साथ, अपने दुपहिया से रामघाट जाने के लिए हरिफाटक ब्रिज पर बने, हरसिद्धि को ओर जाने वाले नए पुल पर पहुँचा तो पुलिस ने जाने नहीं दिया। शाम साढ़े आठ का वक्त था और ट्रैफिक बिलकुल नहीं था। काफी देर वहाँ खड़े रहने पर जब कहा कि यह पुल तो बनाया ही इसलिए गया है कि लोग  महाकाल क्षेत्र के सँकरे मार्ग के बजाय सीधे हरसिद्धि जा सकें। अभी जरा भी ट्रैफिक नहीं है। आप क्यों रोक रहे हैं? तब एक पुलिस वाले ने हमें जाने दिया। पर पुल उतरते ही वहाँ बैरिकेट लगा कर 10-15 पुलिसवाले खड़े थे जो किसी को भी नहीं जाने दे रहे थे जबकि पूरी सड़क खाली थी। उन्होंने लोगों को जयसिंहपुरा की और डाइवर्ट कर दिया। याने चौड़ी और नई सड़क के बजाय बेहद सँकरे, पुराने रास्ते पर, जहाँ आगे चौराहे पर अच्छा-खासा जाम लग गया। जैसे-तैसे आगे बढ़े तो नरसिंह घाट से तीन किलो मीटर पहले फिर बैरिकेट्स लगे हुए थे। वहाँ दुपहिया वाहनों की पार्किंग व्यवस्था भी नहीं थी और पुलिस भी बड़ी अभद्रता से पेश आ रही थी। यह रात साढ़े नौ बजे का समय था और मेला क्षेत्र बिलकुल खाली पड़ा था। पार्किंग न होने से कई लोगों ने फुटपाथ पर अपने दुपहिया वाहन चढ़ा रखे थे। मुझे भी वहाँ से आधा किलो मीटर आगे जा कर अपना वाहन खड़ा करना पड़ा जहाँ चाय की दुकाने थीं। पर वाहन सुरक्षा की चिन्ता बराबर बनी रही। 

न तो शाही स्नान का दिन और न ही ट्राफिक का दबाव, न किसी ई-रिक्शा को जाने दे रहे न किसी ऑटो रिक्शा को। फिर भी जाम की स्थिति यदि बन रही है तो वह बिना बात ट्रैफिक-फ्लो को बार-बार अवरुद्ध करने और वाहनों को चौड़ी सड़कों के बजाये सँकरे रास्तों पर डाइवर्ट करने से बन रही है । हम लोग तो खैर स्थानीय, ‘उज्जैनी’ हैं इसलिए इधर-उधर के रास्‍तों से किसी  भी घाट पर जा सकते हैं। पर बाहर से आनेवालों के लिए सिंहस्थ यात्रा किसी प्रताड़ना से कम नहीं है। घर में 80 -85 वर्ष के बुजुर्ग, जो ज्यादा चल नहीं सकते वे ई रिक्शा या अन्य साधन के अभाव में आम दिनों में भी घाट पर स्नान से वंचित हैं। 

यह सब इसलिए पोस्ट किया कि हमारे ग्रुप के कुछ साथी, जरूर प्रशासन के उच्च अधिकारियों के सम्पर्क में रहते हैं। वे ऐसी असुविधाओं (बिना बात की अव्यवस्थाओं) की बात अगर आगे तक पहुँचा सकें तो उज्जैन नगर का गौरव बना रहेगा। अन्य साथी भी यह पोस्ट अधिकतम शेयर करें ताकि आने वाले समय में लोग इस भव्य आयोजन का सपरिवार आनन्द ले सकें।

इन डरावनी और हतोत्साहित करनेवाली खबरों के बीच आज एक परिचित ने कहा कि यह सब सौ प्रतिशत सच नहीं है। स्थिति इतनी भयवह नहीं है। लेकिन अधिसंख्य समाचार फिर भी डरा ही रहे हैं।

आपमें से किसी को कोई अनुभव हुआ तो बताइयेगा।
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1 comment:

  1. पहले शाही स्नान पर वाकई बहुत खराब स्थिती थी, परंतु उसके बाद प्रशासन में बहुत बदलाव हुए और अब तो दोपहिया वाहन घाट के बहुत पास तक जा रहे हैं, उम्मीद है कि आपकी उज्जैन यात्रा सुखद रही होगी।

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