.......मैं दो बाप की औलाद हो गया

यह मंगलवार 24 अप्रेल की सुबह है। पौने दस बज रहे हैं। नरेन्द्रजी अभी-अभी गए हैं। उनकी दशा देखी नहीं जा रही थी। व्यापारी तो मझौले स्तर के हैं लेकिन साख चौबीस केरेट सोने जैसी। सौदे के सच्चे, बात के पक्के। कम बोलते हैं लेकिन नाप-तोल कर बोलते हैं। भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता और संघ के समर्पित स्वयम् सेवक हैं। उनसे मेरी खूब पटती है। उम्र में मुझसे अठारह बरस छोटे किन्तु मेरे आदरणीय। जब भी मौका मिलता है, उनकी दुकान पर बैठ जाता हूँ। खुलकर बात करते हैं। गलत को गलत और सही को सही कहते-सुनते हैं।

उनका अचानक आना मुझे अच्छा तो लगा लेकिन उनकी सूरत ने सहमा दिया। होठ पपड़ाए हुए मानो कच्छ का रन पैदल पार कर आ रहे हों। आँखें इस तरह गीली और रतनार मानो गहरे पानी में सौ डुबकियाँ मार ली हों। उनके आने से उपजी खुशी, उनकी दशा से उपजी दहशत में दब गई। घरघराती आवाज में अगवानी की - ‘वाह! आज तो भए प्रकट कृपाला। कैसे कृपा कर दी?’ मेरा पूछना हुआ नहीं कि मानो कोई मजबूत दीवार भरभरा कर गिर पड़ी हो। उनका निःशब्द रुदन गूँजने लगा। उन्हें इस दशा में देख मैं इतना घबरा गया कि न तो कोई पूछताछ कर पाया न ही सांत्वना के दो बोल मेरे मुँह से फूटे। दो-एक मिनिटों में उन्होंने खुद को संयत किया और बिना किसी भूमिका के, मर्मान्तक पीड़ा भरे स्वरों में बोले - “आज तो बैरागीजी! मैं अपनी ही नजरों में दो बाप की औलाद हो गया।” मुझे मानो ततैया ने काट लिया हो। खुद के बारे में ऐसी टिप्पणी? लेकिन मैं चुप ही रहा। वे अनुचित, अकारण नहीं बोलते। सहमा हुआ, जिज्ञासु बन उनकी शकल देखता रहा। बोले - “यूँ तो कोई ढाई-तीन साल से गुस्सा आ रहा है लेकिन हर बार सोचता रहा कि चलो कोई बात नहीं। मोदीजी जल्दी ही सब ठीक कर देंगे। लेकिन डेड़ साल से तो मैं रोज अपनी परीक्षा ले रहा हूँ और रोज फेल हो रहा हूँ। मँहगाई के विरोध में हमने कितने जुलूस निकाले! कितनी नारेबाजी की! कितनी गालियाँ दीं! कितने पुतले जलाए! कितने ज्ञापन दिए! कोई गिनती नहीं। लेकिन आज सबकी जबानों को लकवा मार गया है। नोटबन्दी के बाद से तो जैसे तपते तवे पर बैठे हैं। धन्धा चौपट हो गया। दुकान खाली पड़ी है। माल नहीं। नाणा तंगी ऐसी कि जहाँ पहले आधी ट्रक माल मँगाता था वहाँ आज टेम्पो भी नहीं भरता। मँगतों की तरह टुकड़ों-टुकड़ों में माल मँगाना पड़ रहा है। बची-खुची कसर जीएसटी ने निकाल दी। धन्धा बाद में करो, पहले रेकार्ड रखो और रिटर्न भरो। मैंने अपने सर्कल के व्यापारियों से बात की - भई! कुछ करो। लेकिन सबने चुप रहने को कहा। बोले - अपनी पार्टी की सरकार है। नेताओं से बात करेंगे। लेकिन हुआ कुछ नहीं। फिर मैंने अपनी एसोसिएशनवालों से बात की। उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए कि देखा नहीं सराफावालों की क्या दशा हुई थी? नेताओं के घर-घर गए थे कि भैया ज्ञपान तो ले लो। लेकिन कोई ज्ञापन लेने को भी तैयार नहीं हुआ था। व्यापारियों ने पार्टी से सपरिवार स्तीफे दिए थे। लेकिन किसी ने परवाह नहीं की। फिर! सूरत के व्यापारियों ने क्या कुछ कम कोशिश की थी? लाखों लोग महीने भर तक रैलियाँ निकालते रहे लेकिन न तो कोई आया न किसी ने बुलाया। इसलिए चुपचाप रहो। जो सबके साथ होगा वही अपने साथ भी होगा। सुनकर मुझे अच्छा नहीं लगा। यह क्या बात हुई कि अपनी पार्टी की सरकार है तो गैरवाजिब बात पर भी चुप रहो? अरे! अपनी पार्टी की सरकार है तो फिर तो पार्टी को अपनी चिन्ता सबसे पहले करनी चाहिए! मैंने कहा कि भले ही कुछ नहीं हो लेकिन विरोध तो करो। गलत को गलत तो कहो! चार साल पहले जो बात गलत थी, वो आज सही कैसे हो गई? लेकिन कोई नहीं बोला। सब चुप रहे। मेरा जी खट्टा हो गया।

“मैं व्यापारी हूँ। दुकानदारी चलाने के लिए सबसे पहले ग्राहक का भरोसा जीतना पड़ता है। जब भी कोई ग्राहक भाव-ताव करता है, मैं अपनी बिल बुक बता कर कहता हूँ - ‘देख लो! एक भी बिल यदि तुम्हें बताई रकम से कम का हो तो तुम्हें फोगट में दे दूँगा। जिसका बाप एक, उसकी बात एक।’ यह सुनकर बैरागीजी! ग्राहक कोई सवाल नहीं करता। ऐसा मैं खाली कहने-सुनने या दिखाने के लिए नहीं करता। सच्ची में इस पर कायम रहता हूँ।

“लेकिन बैरागीजी! आज सुबह अखबार देखा तो अपने पर घिरना (घृणा) आ गई। पेट्रोल अस्सी रुपया लीटर पार कर गया! इस पेट्रोल को लेकर हमने मनमोहन सरकार को कितनी गालियाँ दीं! कितनी खिल्ली उड़ाई! कोई गिनती नहीं। पूरी दुनिया के भाव दिखा कर हम कहते थे कि हमें सारी दुनिया में सबसे मँहगा पेट्रोल खरीदना पड़ रहा है। तब हमने मँहगाई का खूब विरोध किया। हमारे बड़-बड़ेे नेता पेट्रोल और गैस की बढ़ती कीमतों के विरोध में धरने पर बैठे। मोदी सरकार बनी तो लगा था कि मँहगाई के खात्मे की शुरुआत पेट्रोल की कीमतें कम होने से होगी। लेकिन एकदम उल्टा हो गया। कच्चे तेल के भाव जैसे-जैसे कम हों, अपने यहाँ पेट्रोल की कीमत वैसे-वैसे बढ़ने लगी। मैंने पार्टीवालों से कहा कि यह गलत है। इसका विरोध करो। जिसका बाप एक, उसकी बात एक। सबने मेरी बात का एक ही जवाब दिया - ‘अपन ऐसा नहीं कर सकते। अपनी पार्टी की सरकार है।’ फिर मैंने एक के बाद एक वो सारी बातें गिनवाईं जिन पर मोदीजी ने पलटियाँ खाईं। लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी।

“लेकिन आज तो बैरागीजी मेरी आत्मा ने मुझे धिक्कार दिया। ऐसी कैसी पार्टी लाइन कि हर गलत बात को सही कहो! अरे! मँहगा पेट्रोल यदि कल गलत था तो आज सही कैसे? गलत तो गलत ही होता है। मैंने सुमित और राजेन्द्र को फोन लगाया। शरम तो उन्हें भी आ रही है और मेरी बात को सही भी कह रहे हैं लेकिन वही जवाब - ‘पार्टी लाईन।’ मैं सुबह से रो रहा हूँ। काँच में अपनी शकल देखने की भी हिम्मत नहीं हो रही। क्या करूँ, क्या नहीं? कोई जवाब नहीं सूझा तो आपके पास चला आया। मालूम है कि आप कुछ नहीं कर सकते। लेकिन अपनी बात किससे कहूँ। आपके सामने रो-गा लूँगा तो छाती ठण्डी हो जाएगी।”

यह सब सुनने के लिए मैं बिलकुल ही तैयार नहीं था। मैंने कहा - ‘आप सब लोग मिलकर हाईकमान से बात करें? न हो तो पार्टी से बगावत की धमकी दें। चुनाव के साल में सरकार से जो चाहो करवा लो।’ बोले - ‘इस पर भी सोचा। लेकिन बैरागीजी! व्यापारी की मूँछ हमेशा नीची ही रहती है। फिर, आप हमारे संगठन को नहीं जानते। हम अछूत बना दिए जाएँगे। अरे! आप आडवाणीजी, मुरली मनोहर जोशीजी जैसे दिग्गजों की दो कौड़ी की दशा देख नहीं रहे? हमारे यहाँ जिसका बहिष्कार किया, उसके तो दाग (दाह संस्कार) में भी नहीं जाते।”

उन्हें अपना अतीत और वर्तमान ही नहीं अपना भविष्य भी पता था। मैंने पूछा - ‘तो अब आप क्या करेंगे?’ मानो अपनी छाती में अपने हाथों खंजर भोंक रहे हों, इस तरह बोले - ‘चुनाव की राह देखेंगे।’ ‘लेकिन तब तक?’ ‘तब तक? तब तक खुद को दो बाप की औलाद मानते रहेंगे। इसे भूलेंगें नहीं।’

वे चले गए। उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर मुझे गर्व हो रहा है लेकिन चिन्ता भी हो रही है। अब मुझे रोज उनका हाल-चाल पूछना है। यह जिम्मेदारी मैंने खुद ओढ़ी है।
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दैनिक 'सुबह सवेरे', भोपाल,  दिनांक 26 अप्रेल 2018 

8 comments:

  1. अभी तो ठीक है। अबकी बार फिर आयी सरकार, तो दिखेंगे दिन में तारे ।

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  2. Padha kar achchha laga aur un mahanubhav par garv bhi ki wo jinda hai. Salaam

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जज साहब के बुरे हाल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत-बहुत धन्‍यवाद। विलम्बित उत्‍तर के लिए क्षमा करें।

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  4. व्यापारी बेईमानी करे तो नाजायज़ । सरकार वादा खिलाफी करे और बेईमानी करे तो जायज । जब क्रूड ऑयल के दाम गिरे,तो जनता को उसका लाभ नही दिया,अब भाव बढ़े तो सरकार (केंद्र और राज्य दोनों) दादागिरी से कह रही है,टैक्स कम नहीं होगा । चार साल में क्या पाया क्या खोया पर गहन चिंतन जनता को करना होगा ।

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  5. हम भी मोदी पर गर्व किया करते थे लेकिन जेसे जेसे उनके कार्यकाल के दिन बीते घृणा हो गयी ऐसे नेता से...
    जमीदार आदमी हैं बात कहने में संकोच नही करते
    हमारे लिए तो डीजल व पेट्रोल के दाम बढना मतलब फांसी पर लटकते हुए जीवित व्यक्ति के पेरों में बड़ा सा पत्थर बाँध देने जेसा है.
    पिछली सरकार हमारे लिए बहुत ज्यादा बढ़िया थी
    चाहे घोटाले किये हों लेकिन उन घोटालों की सीधी मार जमीदार पर नही आई.
    इसने तो हलाल कर दिया है..विरोध की आवाज को केसे दबाया जाये इस सरकार को बखूबी आता है.
    पहले पेट्रोल के दाम एक 50 पैसे भी बढ़ता था तो अख़बार में छपता था,न्यूज़ में आता था और लोग विरोध करते थे लेकिन अब रोज भाव बढ़ता है लेकिन कहीं कोई खबर नही आती और इसलिए विरोध भी नही होता.
    बैरागी जी की ईमानदारी को शत शत नमन.



    स्वागत है गम कहाँ जाने वाले थे रायगाँ मेरे (ग़जल 3)




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    1. टिप्‍पणी के लिए धन्‍यवाद। यह मेरी ईमानदारी नहीं, मेरे परिचित नरेन्‍द्रजी की ईमानदारी है। मैंने ताेे बस, उनका कहा लिखा भर है।

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