वाट्स एप यूनिवर्सिटी के शिकार

निर्भीक पत्रकारिता के पर्याय बन चुके पत्रकार रवीश कुमार
अपने दर्शकों/श्रोताओं को, ‘वाट्स एप यूनिवर्सिटी’ की शिक्षाओं से बचने की सलाह देने का कोई मौका नहीं छोड़ते। किन्तु उनकी यह सलाह राजनीति में धर्मान्धता से बचने को लेकर होती है। लेकिन कहा नहीं जा सकता कि अंगुलियों की पोरों से संचालित हो रही यह यूनिवर्सिटी हमारे जीवन के किस पहलू को कब स्पर्श कर ले। इस यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बनने के लिए न तो किसी शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता है न ही किसी परीक्षा/साक्षात्कार से गुजरना होता है। इसमें न तो भर्ती का आयु बन्धन है न ही सेवा निवृत्ति का। देश की तमाम सरकारी शिक्षा यूनिवर्सिटियों में प्रोफेसरों के हजारों पद खाली पड़े हैं लेकिन इस यूनिवर्सिटी में न तो पदों की संख्या निर्धारित है न ही स्वनियुक्त प्रोफेसरों की गिनती। घर-घर में इस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मौजूद हैं। घर में जितने मोबाइलधारक, उतने ही प्रोफेसर। इन प्रोफेसरों के न तो ‘ड्यूटी अवर्स’ तय हैं न ही पीरीयड की समय सीमा। निस्वार्थ-निष्काम, ‘अहर्निशम् सेवामहे’ भाव से ये स्वैच्छिक मानसेवी प्रोफेसर लोग आपकी-हमारी जिन्दगी सँवारने का कोई मौका नहीं छोड़ते। मुझे नहीं पता कि इन नेक सलाहों का फायदा किसी को हुआ या नहीं। किन्तु इसके एक ‘शिकार’ की व्यथा-कथा सुनने का मौका मिल गया।

श्री अरविन्द सोनी मेरे ‘मुक्त कण्ठ प्रशंसक’ हैं। वे म. प्र. विद्युत मण्डल के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। रतलाम जिला इण्टक के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। सेवा निवृत्त जरूर हो गए हैं लेकिन काम करना फितरत में है। परिचितों-मित्रों की समस्याएँ हल कराने के लिए एलआईसी कार्यालय आते रहते हैं। प्रायः ही मिलना होता है। जब भी मिलते हैं, कुछ पल बात करते ही हैं। इसी तरह, बातों ही बातों में अचानक ही ‘वाट्स एप यूनिवर्सिटी की सलाह का शिकार’ हो जाने की बात सामने आ गई।

हुआ यूँ कि किन्हीं कारणों से अरविन्दजी को टीएमटी करवानी पड़ी। रिपोर्ट से हृदय की धमनियों में अवरोध की आशंका के संकेत मिले। चिकित्सा शुरु की ही थी कि एक भरोसेमन्द हितचिन्तक ने वाट्स एप पर एक देसी नुस्खा भेजा। ये हितचिन्तक, मुम्बई के ख्यात-प्रतिष्ठित केईएम अस्पताल में चिकित्सक रहे हैं। परम सद्भाव और सदाशयता से भेजे गए इस सन्देश पर अरविन्दजी ने आकण्ठ विश्वास से अमल किया और नुस्खे में बताई दवा लेनी शुरु कर दी।

शुरु में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा लेकिन कुछ दिनों बाद पेट में जलन की शिकायत शुरु हो गई। जैसा कि हम सब करते हैं, अरविन्दजी ने एसिडिटी का अनुमान लगाया और स्वचिकित्सक बन, एसिडिटी निरोधी सामान्य गोलियाँ ले लीं। लेकिन गोलियाँ निष्प्रभावी रहीं और समस्या बढ़ती गई। अरविन्दजी ने डॉक्टर से सलाह ली तो उसने बड़ी आँत में अल्सर का अन्देशा बताया। अरविन्दजी फौरन इन्दौर गए। पेट रोग विशेषज्ञ से मिले। कुछ जाँचें करवाईं जिनके आधार पर विशेषज्ञ ने बड़ी आँत में अल्सर की पुष्टि की। 

विशेषज्ञ की सलाह पर अरविन्दजी इन्दौर में ही अस्पताल में भर्ती हुए। दो दिन वहाँ ईलाज कराया। डॉक्टर के निर्देश लेकर रतलाम लौटे। पूरे दो महीने ईलाज चला तब कहीं जाकर कष्ट से मुक्ति मिली।

अरविन्दजी अब पूर्ण स्वस्थ तो हैं लेकिन आँत के अल्सर के कारण कुछ ऐसे निषेध आरोपित कर दिए गए हैं जिनका पालन करने के लिए अरविन्दजी की, चाय के ठीयों की बैठकें बन्द सी हो गईं है। बैठक में शामिल हों तो भाई लोग जबरदस्ती करने में कंजूसी नहीं करते। उनका कहा मानना याने अपनी जान से दुश्मनी। 

अब अरविन्दजी जब भी ऐसी बैठकों में शामिल होते हैं तो वाट्स एप यूनिवर्सिटी से मिला यह सबक सबसे पहले सुनाते हैं।
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3 comments:

  1. हम शब्द को ब्रह्म मानते है इसलिए लिखे/छपे को ब्रह्म वाक्य मान लेते है पर जरुरी है कि ह्वाट्स एप और पत्र पत्रिकाओं में छपे हुई बातों की पहले विशेषज्ञों से जानकारी ले लें फिर माने। अगर विशेषज्ञ उपलब्ध ना हो तो गुगल पर एक से अधिक साईटों पर देखें। तभी हम गल्तियों से बच सकते है।

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  2. प्रायः ऐसा ही होता है दादा

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  3. Uttar Pradesh offers various scholarship to the needy and meritorious eligible candidate. The details of UP Scholarship Status is provided in the main article of the official website, the scholarship offers a great privilege and other benefits.

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