रुढ़ी बन रही परम्परा


एक परम्परा हमारे देखते-देखते रुढ़ी बन रही है। हमारे देखते-देखते ही नहीं, शायद हम सब मिल कर अत्यन्त प्रेपूर्वक और यत्नपूर्वक इसे रुढ़ी बना रहे हैं।


यह परम्परा है - सगाई जिसे अंग्रेजी में ‘एंगेजमेण्ट’ कहा जाता है। दो अलग-अलग परिवारों की परस्पर सहमति से, इन दोनों परिवारों के लड़के-लड़की का विवाह तय करने के निर्णय को सामाजिक/सार्वजनिक रूप से प्रकट करने के लिए जो समारोह किया जाता है उसे कहीं ‘सगाई’ तो कहीं ‘तिलक’ कहा जाता है। संस्कृत में इसके लिए ‘वाग्दान समारोह’ शब्द युग्म प्रयुक्त किया जाता है। यह समारोह तब किया जाता है जब सम्बन्ध तय होने और विवाह होने के बीच सुदीर्घ अन्तराल हो। यह सम्भवतः इसलिए किया जाता रहा होगा ताकि कोई पक्ष बाद में इससे इंकार न कर दे और दूसरे पक्ष को सामाजिक अवमानना का शिकार न होना पड़े। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सामाजिक/सार्वजनिक साक्ष्य में दोनों परिवार ऐसे सम्बन्ध के लिए परस्पर वचनबद्ध होते थे।


आज परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। आज तो सम्बन्ध तय होने के साथ ही विवाह का दिनांक भी तय हो जाता है। ऐसे में, सम्बन्ध तय होने और विवाह होने में बहुत ही कम समय रहने लगा है। कभी-कभी तो यह अन्तराल एक पखवाड़े से भी कम का होता है। ऐसे में ‘सगाई’ या कि ‘तिलक’ अथवा ‘वाग्दान’ स्वतः ही अनावश्यक हो गया है। किन्तु हम बिना साचे-विचारे, परम्परा निर्वहन के नाम पर उत्साहपूर्वक इसे आयोजित और सम्पादित करते हैं।


स्थिति यह हो गई है कि विवाह के विस्तृत (पारिवारिक स्तर पर दिए जाने वाले) निमन्त्रण पत्रों में दिए गए कार्यक्रमों में सगाई और फेरों की सूचना एक साथ दी जा रही है।


यह न केवल आपत्तिजनक अपितु अनुचित भी है। सगाई कोई संस्कार नहीं है। गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित हो रहे मासिक ‘कल्याण’ का, सन् 2006 में प्रकाशित 492 पृष्ठीय ‘संस्कार-अंक’ (वर्ष 80, अंक 1) मैंने यथासम्भव पूरी सतर्कता से, सचेष्ट होकर पढ़ा है। इसमें सर्वत्र 16 संस्कारों का उल्लेख किया गया है जिनमें ‘वाग्दान’ का उल्लेख कहीं नहीं है। जहाँ-जहाँ ‘उप संस्कार’ उल्लेखित किए गए हैं, उनमें भी ‘वाग्दान’ का उल्लेख कहीं नहीं है। ऐसे सन्दर्भों में ‘कल्याण’ की अपनी आधिकारिकता है जिसे चुनौती दे पाना असम्भवप्रायः ही होगा।


जहाँ विवाह सम्बन्ध तय होने के साथ ही विवाह तिथि भी तय कर ली गई हो वहाँ सगाई या कि तिलक या वाग्दान के लिए अलग से समारोह आयोजित करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। वस्तुतः यह ऐसा आयोजन बन कर रह जाता है जो न केवल दोनों (वर, वधू) पक्षों पर अपितु दोनों पक्षों के रक्त सम्बन्धियों और व्यवहारियों पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालता है। परम्परा के नाम पर यह आयोजन भोंडे प्रदर्शन का तथा अपव्यय का सबब बनता जा रहा है। मैं ऐसे अनेक विवाहों में शामिल हुआ हूँ जिनमें शाम को लग्न होने थे और दोपहर में सगाई समारोह आयोजित किए गए। मेरे पूछने पर हर बार मुझे ‘परम्परा’ की दुहाई सुनने को मिली। मैंने जब इसकी तार्किकता पर सवाल किए तो मेरी बात मानी तो सबने किन्तु आयोजन की अनिवार्यता पर सबके सब कायम रहे।


कुछ समाजों/जातियों में तो इस आयोजन के नाम पर वधू पक्ष से अच्छी-खासी वसूली की जाती है और वर पक्ष अपने सम्बन्धियों/व्यवहारियों को तगड़ा नेग दिलाता है। मैं मेरे कस्बे में एक ऐसे सगाई समारोह में शामिल हुआ हूँ जिसका आयोजन इतना भव्य, भड़कीला और खर्चीला था जिसमें मुझे जैसे मध्यमवर्गीय व्यक्ति के यहाँ दो विवाह निपटाए जा सकते थे। सब कुछ पूरी तरह से चकाचौंध भरा, फिल्मी प्रभाववाला था।


मुझे लगता है कि हम केवल कपड़ों और शेखी बघारने में ही प्रगतिशील हुए हैं, वास्तविक आचरण में नहीं। दहेज की तरह ही ‘सगाई’ भी अब एक बुराई के रूप में स्थापित होती जा रही है जिसे परम्परा के नाम पर हम सब बड़े यत्नपूर्वक ढोए जा रहे हैं। इसमें, पैसेवालों को तो कोई अन्तर नहीं पड़ रहा किन्तु गरीब की मौत हो रही है।


क्या हम इस (कु) परम्परा को रुढ़ी बनने से रोक पाएँगे?
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4 comments:

  1. विष्णु भैया काफ़ी दिनो बाद आपके ब्लाग पर आना हुआ।बहुत सही लिखा आपने अब सगाई कह लिजिये या विवाह सब उनके लिये धन-बल प्रदर्शन का सुनहरे मौके मे बदलते जा रहे हैं जिनके पास धन है,लेकिन जिनके पास नही है वो इस कुप्रथा की होड़ मे मज़बूरी मे दौड़ते है और प्रगति की दौड़ मे पीछे हो जाते हैं।वैसे गुजराती समाज मे समूह लगन जैसी अच्छी परम्परा भी है जिसे अब दूसरे समाज भी धीरे-धीरे अपना रहे हैं।हमेशा की तरह आपको मैने समाज को सकारातम्क दिशा देने का प्रयास करते पाया।देर से इधर आया इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूं।

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  2. अप केवल सगाई की बात कर रहे हैं यहाँ तो सगाई के नाम पर और कितनी प्रथायें चलन मे आ रही हैं पहले रोका फिर ठाका उसके बाद चुनी चढाई फिर शगुन और ये सिलसिला अंतहीन होता जा रहा है।हम परंपराओं को भी सरल करने की बजाये और जटिल करते जा रहे हैं। खैर अब आपका सवास्थय कैसा है? आपकी सेहत के लिये शुभकामनायें

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  3. बिलकुल सही जगह उँगली रखी है आपने !
    उपयोगी आलेख । आभार ।

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  4. आपने सही कहा.. यह गैर जरुरी है..

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