कोई तीन महीनों से देख रहा हूँ, सुमित रात में देर से लौट रहा है। पहले वह साढ़े सात और आठ बजे के बीच लौट आता था। इन दिनों रात साढ़े ग्यारह बजे से पहले नहीं लौट रहा। हाँ, उसके जाने के समय में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वही, सवेरे साढ़े नौ और दस बजे के बीच, जब मैं चाय पीकर अखबारों को पढ़ने का दूसरा दौर पूरा कर रहा होता हूँ। सवेरे का अभिवादन यथावत बना हुआ है। शाम का नमस्कार अब कभी-कभार ही हो पाता है। साढ़े ग्यारह बजते-बजते मैं सोने की तैयारी करने लगता हूँ। सो, रात की राम-राम उससे तभी हो पाती है जिस रात वह साढ़े ग्यारह बजे से पहले लौट आता है।
आज वह साढ़े आठ बजे ही लौट आया। मुझे आशंका हुई, उसकी तबीयत तो खराब नहीं? राजी-खुशी पूछने के निमित्त अपने पास बैठा लिया। वह फौरन बैठ गया। ऐसे, मानो उसे पता था कि मैं उसे बैठने को कहूँगा। बैठते ही बोला-‘बातें बाद में। पहले चाय पीऊँगा।’ चाय तो बाद में आनी थी। बातें पहले ही शुरु हो गईं।
सुमित, साधारण बीमा क्षेत्र में काम कर रही एक निजी बीमा कम्पनी के स्थानीय शाखा कार्यालय का प्रभारी है। चार जिलों का प्रभारी। भौगोलिक क्षेत्राधिकार भरपूर विस्तृत। अन्तिम गाँव कोई ढाई सौ किलोमीटर दूर। सुमित को वहाँ तक महीने में कम से कम दो बार तो जाना ही होता है। लगभग डेड़ सौ किलोमीटर की यात्रा उसे प्रतिदिन अपनी मोटर सायकिल पर करनी पड़ती है। सुमित सहित उसके कार्यालय में चार कर्मचारी पदस्थ थे। तीन ने नौकरी छोड़ दी। तीन माह हो गए हैं, नई नियुक्तियाँ अब तक नहीं हुईं। सो, इन दिनों ‘पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर’ बन, चारों का काम सुमित को ही करना पड़ रहा है। बीमे का काम भी ऐसा कि कल पर नहीं छोड़ा जा सकता। आज का काम आज ही निपटाना पड़ता है। इसीलिए सुमित को लौटने में देरी हो रही है। मैंने पूछा-‘तीन लोगों का अतिरिक्त काम करने का कोई अतिरिक्त भुगतान मिलेगा?’ ‘सवाल ही नहीं उठता।’ कहते हुए सुमित ने बताया कि इस तरह काम करने में उसे आनन्द आ रहा है। अपनी योग्यता और क्षमता प्रमाणित करने का अनूठा अवसर मानता है वह इसे। ‘स्टाफ की नियुक्ति आज नहीं तो कल हो ही जाएगी। मुझे क्या फर्क पड़ना? रात सात बजे लौटूँ या बारह बजे। केवल आराम करने और नींद निकालने के वक्त में ही तो थोड़ी कतर-ब्यौंत करनी पड़ रही है। अपनी योग्यता और क्षमता दिखाने के ऐसे मौके प्रायवेट सेक्टर में हर किसी को नहीं मिलते। मुझे मिला है तो इसे एन्जॉय भी कर रहा हूँ और एक्सप्लायट भी। जिस दिन स्टाफ आ जाएगा, उस दिन से आराम मिल जाएगा।’ ‘थकान’ उसके लिए ‘शारीरिक स्थिति’ नहीं, ‘मनःस्थिति’ है - ‘शरीर तभी थकता है, जब मन थके।’
चाय कब आई, कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला। उठते हुए सुमित बोला - ‘आज टूर पर नहीं जाना पड़ा सो जल्दी घर आ गया। शानदार चाय के साथ आपने इतनी चिन्ता से पूछ-परख कर ली तो ताजगी आ गई। फ्रेश होकर खाना खाने के बाद आज पढ़ने का मजा आ जाएगा।’
जो कुछ कहा, उससे कहीं अधिक और काफी-कुछ ऐसा और इतना अनकहा छोड़ गया कि उसके जाने के बाद, देर तक वही सब सुनता रहा। यही सुमित यदि सरकारी नौकरी में होता तो? तो भी वह इसी तरह, आधी-आधी रात तक बैठ कर, चार लोगों का काम करता? रोज का काम रोज निपटाता? और सबसे बड़ा सवाल - इतनी प्रसन्नता और बिना थकान के करता? निश्चय ही नहीं। उसे जैसे ही मालूम पड़ता कि उसके सिवाय बाकी तीनों कर्मचारी छुट्टी पर हैं, वह भी शायद देर से दफ्तर पहुँचता। अपने काम से काम रखता। बाकी तीनों कर्मचारियों में से किसी का भी काम नहीं निपटाता। निपटाता तो वही जिसमें उसका अपना कोई फायदा होता या काम किसी अपनेवाले का होता। पूरे दफ्तर का काम तो दूर रहता, खुद का रोज काम भी नहीं निपटाता और समय से पहले नहीं तो दफ्तर बन्द होने के समय तक तो निकल ही जाता। ‘साहब ने बुलाया है’ या फिर ‘मीटिंग में जाना है’ जैसे पारम्परिक बहाने बना कर दफ्तर से गायब हो जाता। यदि टूर करना उसकी ड्यूटी में होता तो वह प्रायः ही टूर पर निकल जाता, उस दिन दफ्तर आता ही नहीं और कोई ताज्जुब नहीं कि घर पर आराम करते हुए ही टूर कर लेता।
हाथ-मुँह धोकर, ताजादम हो कर सुमित भोजन करने के लिए निकला तो मुझे जस का तस बैठा देख कर पूछा - ‘आपको भोजन नहीं करना?’ ‘हाँ, करता हूँ।’ कह कर मैंने पूछा - ‘नौकरी में ऐसा कब तब और कैसे चलेगा?’ सुमित ठिठक गया। तनिक हैरत से मुझे देखा और चलते हुए बोला - ‘क्या बात करते हैं अंकल? प्रायवेट सेक्टर में नौकरी नहीं होती। वहाँ तो काम होता है। मैं नौकरी कहाँ कर रहा? अभी तो काम कर रहा हूँ। हाँ, दो-तीन प्रमोशन मिल जाएँगे, तब नौकरी करने की सोचूँगा।’
एक बार फिर सुमित काफी कुछ अनकहा छोड़ गया। मैं सुन रहा था कि हमारे सरकारी दफ्तरों में लोग काम नहीं करते, नौकरी करते हैं। और नौकरी करनेवालों में से नौकरी भी कितने करते हैं?
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यही सुमित यदि सरकारी नौकरी में होता तो? तो भी वह इसी तरह, आधी-आधी रात तक बैठ कर, चार लोगों का काम करता?
ReplyDeleteबैरागी जी,
सभी सरकारी कर्मियों का तो नहीं पता लेकिन अपने घर की स्थिति बता देते हैं जो तकरीबन १० वर्षों से तो देख ही रहे हैं। सरकारी बैंको में वी आर एस की स्कीम के बाद अधिकारियों की कोई खास भर्ती नहीं की गयीं। लगभग सभी शहरी शाखाओं मे स्टाफ़ की कमी है, ३ तीन अधिकारियों का काम १ के जिम्मे है। इस बार भी घर जाने पर जब कई दिनों तक पिताजी को सुबह ९ बजे से शाम ९:३०/१०:०० बजे तक काम करते देखा तो इस विषय पर बात हुयी। पता चला कि जिस शाखा में ५-६ अधिकारी होने चाहिये वो २ अधिकारियों के भरोसे चल रही है। लिपिक/सहायक लोगों पर बैंक की नौकरी में यूनियन के चलते अधिकारियों का कोई बस नहीं है। पांच बजे कि वो गायब, अब बाकी काम किसी को तो करना होगा।
पिताजी कह रहे थे कि लगभग सभी शहरी शाखाओं में जहाँ व्यवसायिक खाते अधिक हैं यही हाल है।
१ आदमी ३ का काम तभी कर सकता हैं जब की उसमे अपनी नोकरी की चिंता हो,एक व्यक्ति जब तक नोकरी मैं स्थायी नहीं होता हैं तब तक कम कररहता हैं लेकिन जब स्थायी हो जाता हैं तो वो आराम करता हैं काम नहीं.सब जॉब सेकुरेटी का मामला हैं.नोकरी मैं सुरक्षा का भाव हममें लापरवाही बड़ा रहा हैं
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