मैं : नासमझ, नादान और पिछड़ा


यह शायद नौंवी या दसवीं बार हुआ जब मैं ‘नासमझ, नादान और पिछड़ा हुआ’ एजेण्ट घोषित किया गया। यह भी नौंवी या दसवीं बार हुआ कि अपनी इस नासमझी, नादानी और पिछड़ेपन पर आत्म सन्तोष हुआ। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि मुझे इस तरह प्रमाण-पत्र दिए जाने पर मुझे न तो गुस्सा आया और न ही हीनता-बोध हुआ।

उन्नीस वर्ष और सात महीने उम्र है मेरी बीमा एजेन्सी की। लगभग चौदह सौ पॉलिसियों और लगभग साढ़े नौ सौ ‘अन्नदाताओं’ की परिसम्पत्तियों का स्वामी हूँ मैं। इस अवधि में मेरे खाते में नौ या दस मृत्यु दावे ही लिखे गए हैं। मुझसे बड़े, बेहतर और समझदार बीमा एजेण्ट और बीमा अधिकारियों के मुताबिक यह आँकड़ा ‘बहुत-बहुत कम’ से भी बहुत कम है। इतना कम जिस पर एजेण्ट गर्व कर सके। किन्तु मुझे इसमें गर्व करने जैसी कोई बात नजर नहीं आती। बीमा करने से पहले एजेण्ट यदि सारी बातें खुद जान ले, वास्तविकता से आश्वस्त हो जाए और बीमा प्रस्ताव में सब कुछ सच-सच लिख दे, कोई तथ्यात्मक सूचना छिपाए नहीं, तो उसे कभी भी असुविधाजनक स्थिति का सामना नहीं करना पड़े। यही सब तो मैंने भी किया! कोई अनूठा काम नहीं किया। यह तो मेरी न्यूनतम जिम्मेदारी थी। अपनी जिम्मेदारी निभाने में भला गर्व करने की बात कहाँ से आती है? बहुत हुआ तो आदमी आत्म सन्तोष कर सकता है।

अन्य क्षेत्रों/अंचलों की जानकारी तो मुझे नहीं किन्तु मालवा अंचल में चलन है कि मृत्यु दावे की रकम का चेक समारोहपूर्वक दिया जाता है। एजेण्ट और/अथवा एल आई सी यह समारोह आयोजित नहीं करते। सम्बन्धित एजेण्ट और एल आई सी के लोग मृतक के बारहवें/तेरहवें पर पूरी की जानेवाली ‘पगड़ी’ की रस्म के दौरान पहुँच कर, मृतक के परिवार को दावा राशि का चेक सौंपते हैं। इससे शोकग्रस्‍त परिवार के, जाति-पंचायत तथा नाते-रिश्तेदारों के उपस्थित जन समूह के कुछ लोगों के बीमे मिलते ही मिलते हैं। इसके पीछे के कारण आसानी से समझे जा सकते हैं।

किन्तु मुझे यह आज नहीं रुचा। मेरी एजेन्सी में जितने भी मृत्यु दावों का भुगतान हुआ, उनके चेक मैंने अकले ही, शोकग्रस्त परिवार में जाकर, चुपचाप परिजनों को सौंपे। शोक के प्रसंग और वातावरण को व्यवसाय में भुनाना मुझे अब तक गले नहीं उतरा है। एक बीमा एजेण्ट के रूप में मैंने खुद को अपने ‘अन्नादाताओं’ के परिवार का सदस्य ही माना। लिहाजा, अपने परिजनों के वाजिब हक का नगदीकरण कैसे किया जा सकता है? यह तो परायों के साथ भी उचित नहीं!

बीमे का अर्थ ही है - अनुबन्धित वचनबद्धता का निष्ठापूर्वक, समयबद्ध पालन। ऐसा कर हम (बीमा एजेण्ट और बीमा कम्पनी) किसी पर अहसान नहीं करते। अपना कर्तव्यनिर्वहन हमने नम्रतापूर्वक करना चाहिए, गर्वपूर्वक नहीं - यही तो सिखाया है हमें हमारे पुरखों ने! सो, मृत्यु दावे की रकम का चेक मैं चुपचाप ही सौंपता हूँ - कुछ इस तरह कि शोकग्रस्त परिवार और मेरे सिवाय किसी और को मालूम न हो।
वैसे भी, काम करने का आनन्द भी तो तब ही आता है जब उसकी चर्चा कोई और करे! अपने किए की चर्चा करने को, वह भी समारोहपूर्वक करने को ‘अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना’ ही कहा गया है हमारे यहाँ तो। मैं आत्म-प्रशंसा से बचने की कोशिश करता हूँ और मेरी इस कोशिश को मेरे साथी एजेण्ट और बीमा अधिकारी मेरी नासमझी, नादानी और पिछड़ापन मानते/कहते हैं।
मैं चुपचाप सुन लेता हूँ। प्रतिवाद, प्रतिकार नहीं करता।

मैं अपने ईश्वर, अपनी आत्मा के प्रति जवाबदेह हूँ। इन्हीं से मुझे डरना चाहिए। नहीं, डरना नहीं चाहिए, इन्हीं की साक्षी में अपना काम करना चाहिए। इन दोनों से भय कैसा? ये ही तो मेरे परम् मित्र हैं।

मैं अपने इन्हीं परम् मित्रों से शक्ति, आत्म-बल पाता हूँ। ये दोनों ही मुझे कहते हैं कि मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ।

मुझे अपनी नासमझी, नादानी और पिछड़ेपन से कोई शिकायत नहीं। मैं ऐसा ही बना रहना चाहूँगा और इसीके लिए कोशिशें करता रहूँगा।

मैं नासमझ, नादान और पिछड़ा हुआ ही भला। मुझे नहीं बनना समझदार, दुनियादार और अगड़ा।

-----

आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।


यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

2 comments:

  1. बेईमानी, तथाकथित "होशियारी" और अगड़ेपन से तो आपकी नादानी और नासमझी ही भली! इससे कुछ और मिले या ना मिले आप को आत्मसंतोष तो मिलता है।

    ReplyDelete
  2. नितिन जी ने ठीक ही कहा है। वैसे भी जिसका बकाया है उसे जितना जल्दी भुगतान हो बेहतर है।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.