‘सिविल सोसायटी’ इस पर विचार करे

सम्भव है, जो कुछ कहने जा रहा हूँ वह पहले ही कहा जा चुका हो। तब, मेरे इस लिखे की अनदेखी कर दी जाए। किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो निवेदन है कि मेरी इस बात को ‘सिविल सोसायटी’ तक पहुँचाने का उपकार करें।

मैं इतनी गुंजाइश रख कर चल रहा हूँ कि ‘सिविल सोसायटी’ की सारी बातें जस की तस मानने जैसी न हों। साफ लग रहा है कि ‘सिविल सोसायटी’ के मुद्दे को भोथरा करने के लिए सरकार हर जुगत भिड़ा रही है। अपने स्तर पर वह यथा सम्भव कोशिश करती नजर आ रही है कि ‘सिविल सोसायटी’ के लोग ‘समिति’ की बैठकों का बहिष्कार कर दें, सरकार को खुल कर खेलने का मौका मिल जाए और ठीकरा ‘सिविल सोसायटी’ के माथे फोड़ दिया जाए।

ऐसे में मेरा विचार है कि ‘सिविल सोसायटी’, ‘समिति’ की बैठक का बहिष्कार करने की बात सिरे ही निरस्त कर दे। प्रत्येक बैठक में पूरी तैयारी से भाग ले। अपनी बातें मनवाने का पूरा-पूरा प्रयास करे। जिस मुद्दे पर सफलता न मिले उस पर अपनी असहमति, बैठक के कार्रवाई विवरण में दर्ज कराए और प्रत्येक बैठक के तत्काल बाद मीडिया को विस्तृत जानकारी इस तरह दे कि लोगों को बैठक के ‘लाइव कवरेज’ की कमी अनुभव न हो।

‘समिति’ की अन्तिम बैठक के बाद ‘सिविल सोसायटी’ के सामने पूरा चित्र स्पष्ट होगा। इस सुविधा का समुचित लाभ उठाते हुए ‘सिविल सोसायटी’ व्यापक जनमानस तो बनाए ही, विभिन्न दलों और सांसदों को अपनी बात विस्तार से लेखी में सौंप कर, सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले लोकपाल विधेयक में ‘समिति’ के लोकपाल बिल के प्रारूप के उन समस्त प्रावधानों को संशोधन के रूप में शामिल कराने की कोशिश करे जो बैठकों में सरकार द्वारा निरस्त कर दिए गए हैं।

एक रास्ता और अपनाया जा सकता है।

‘समिति’ की अन्तिम बैठक की समाप्ति वाले क्षण से ‘सिविल सोसायटी’ को सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जानेवाले विधेयक की रूपरेखा लगभग पूरी की पूरी मालूम हो चुकी होगी। उस दशा में ‘सिविल सोसायटी’, किसी दल अथवा किसी सांसद की ओर से ‘व्यक्तिगत विधेयक’ के रूप में, विधेयक के अपने प्ररूप को विचार के लिए संसद में प्रस्तुत करवा दे। ऐसा करने का अधिकार और सुविधा प्रत्येक राजनीतिक दल और सांसद को प्राप्त है।

यदि ऐसा किया गया तो सब दलों की और सांसदों की सचाई सामने आ जाएगी। मालूम हो जाएगा कि लोकपाल बिल के, ‘सिविल सोसायटी’ के प्रारूप को कौन समर्थन दे रहा है और कौन नहीं।

अपना अनुरोध दोहरा रहा हूँ - ‘सिविल सोसायटी’ इस पर विचार अवश्य करे।

9 comments:

  1. अच्छा विचार है, कार्यकारी सदस्यों तक पहुँचना चाहिये। साथ ही अगर सरकार में बैठे लोग यह तय कर लें कि सोते हुए निहत्थे लोगों पर लाठियाँ न भांजी जायें तब तो उनकी विश्वसनीयता भी काफी बढ सकती है।

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  2. हमने तो यहीं पढ़ा और लाभान्वित हुए, स्‍वागत आपका.

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  3. संसद अभी तैयार नहीं है लोकपाल बिल के लिये। मुझे नहीं लगता सांसदों में भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रतिबद्धता है।

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  4. भ्रष्टाचार अभी सशक्त है, लोकतन्त्र उसका भक्त है।

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  5. जुगत भिडाना शब्द बडे प्यारे लगे। बहुत अच्छे सुझाव

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  6. मुझे नहीं लगता सांसदों में भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रतिबद्धता है। धन्यवाद|

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  7. अरे भाई बैरागी जी, सभी सांसद संसद की हमाम में नंगे हैं, वे क्यों चाहेंगे अपने गले में घंटी बंधवाना\ वे तो हर वर्ष अपना वेतन तिगुना चौगुन कर लेंगे... और कर लो गो करना है :)

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.