थोक में मँहगा, फुटकर में सस्ता

‘‘नमाज पढ़ने गए थे, रोजे गले पड़ गए’’ वाली कहावत मुझ पर शब्दशः लागू हो गई। मैं अचकचा गया। मेरे अनुमान, आशा, अपेक्षा के सर्वथा प्रतिकूल और कल्पना से परे।
 
‘अपने, भेजे जानेवाले पत्रों पर टिकिट मत लगाइए। हमें एक मुश्त सौंप दीजिए। खर्च का भुगतान कर दीजिए और भूल जाइए।‘ डाक विभाग की इस योजना के बारे में एकाधिक बार सुना था। इसीसे उत्साहित हो कर सोचा - ‘इस वर्ष भेजे जानेवाले लगभग 700, दीपावली अभिनन्दन पत्र इसी योजना से भेजे जाएँ।’ अचेतन में शुभेच्छापूर्ण (और लालच भरा भी) अनुमान रहा कि ‘थोक’ का मामला है तो ‘दो पैसों की बचत’ हो जाएगी। किन्तु वहाँ तो सब कुछ उल्टा ही झेलना पड़ा।

मुझे बताया गया कि इस योजना के अन्तर्गत मुझे, पत्र पर लगने वाले डाक टिकिटों के मूल्य के अतिरिक्त, फ्रेंकिग शुल्क के नाम पर प्रति पत्र दस पैसों का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ।

मेरी अपनी धारणाएँ थीं - इस योजना के अन्तर्गत डाक कर्मचारियों को कोई अतिरिक्त श्रम नहीं करना था। मैं टिकिट लगा कर डाक के डिब्बे में डालूँ तो भी उन्हें एक ठप्पा लगाना है और इस योजना के अन्तर्गत पत्र सौंपूँ तो भी उन्हें एक बार ठप्पा लगाना (फ्रेंकिंग करना) है। मुझसे अतिरिक्त शुल्क लेने के बजाय मुझे तो छूट मिलनी चाहिए क्योंकि मैं डाक विभाग के (टिकिट में होनेवाले) कागज, छपाई, मानव-श्रम आदि का मूल्य बचा रहा हूँ। बात को तनिक आगे बढ़ाऊँ तो मैं पर्यावरण रक्षा में सहायक बनने का यश भी डाक विभाग को दे रहा हूँ क्योंकि टिकिट कम छपेंगे तो उनका प्रत्यक्ष/परोक्ष प्रभाव, कागज बनने के लिए काटे जानेवाले वृक्षों (की संख्या में कमी होगी) पर पड़ेगा। फिर, मैं थोक में धन्धा दे रहा हूँ। इस दृष्टि से, मुझे तो छूट मिलनी चाहिए! लेकिन हो रहा है एकदम उल्टा! जो आदमी विभाग की सहायता कर रहा है, थोक में ग्राहकी दे रहा है उससे अतिरिक्त वसूली की जा रही है! याने, यहाँ, ‘थोक में सस्ता और फुटकर में मँहगा’ वाले, व्यापार के सामान्य सिद्धान्त को उलट कर ‘थोक में मँहगा और फुटकर में सस्ता’ का नया, ग्राहकों को विकर्षित करनेवाला सिद्धान्त अपनाया जा रहा है। ग्राहकों को समझाया जा रहा है - ‘हमें थोक में, कम समय में अधिकाधिक व्यापार कर, मुनाफा देनेवाला व्यापार मत दो।’

‘ग्राहक एक बार दुकान में आए तो सही। आएगा तो कुछ न कुछ तो खरीद कर ही जाएगा। न भी खरीदेगा तो कौन सा घाटा हो जाएगा?’ की मानसिकता के चलते, व्यापारी क्या-क्या हथकण्डे वापरते हैं? ‘एक पर एक फ्री’ तक के दावे किए जा रहे हैं।

डाक विभाग के घाटे में चलने की और इसकी ग्राहक संख्या कम होने की खबरें आए दिनों अखबारों में पढ़ने को मिलती रहती हैं। आय बढ़ाने के लिए सोने के सिक्के बेचना, पासपोर्ट के, विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के और अनेक रोजगार सूचनाओं के आवेदन-पत्र बेचने का काम इसे दिया जाने लगा है। सुनते हैं कि बहुत जल्दी अब यह अपनी बैंक सेवाएँ भी शुरु करनेवाला है। लेकिन जहाँ दो पैसों की कमाई की बात आती है तो ‘मूर्ख व्यापारी’ की तरह व्यवहार करता है।

जिन-जिन से मैंने बात की, सबने मुझसे सहमति जताई। डाक कर्मचारी संगठनों के कुछ नेताओं ने बताया कि जो कुछ मैं कह रहा हूँ, वही बात वे विभाग को कई बार सुझा चुके हैं। किन्तु अमल करना तो दूर रहा, उसे सुनने/पढ़ने के लिए ही कोई तैयार नहीं होता।

इस सबमें मुझे दो बातों से तसल्ली हुई। पहली तो यह कि जो मैं सोच रहा था, वही वे सब, मुझसे पहले से  ही  सोच रहे थे। और दूसरी - इस बात पर मैं अकेला दुखी नहीं था। मुझसे पहले ही दुखी लोग वहाँ मौजूद थे।

ऐसा क्यों होता है - मैं सोच ही रहा था कि ‘मेल प्यून‘ के पद पर काम रहा एक भाई ने मानो मेरे मन की बात जान ली। बोला - ‘सा’ब! सरकारी दुकान है। इसके फैसले वे लेते हैं जिन्हें इसकी कोई चिन्ता नहीं। जो ऐसे फैसले लेते हैं उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि एक पोस्ट कार्ड कितने में आता है और कितनी मेहनत से उसे मुकाम तक पहुँचाया जाता है।’
 
मुझे उनकी बात समझ में आई। इसके साथ ही साथ कृषि विभाग का वह अधिकारी याद आ गया (तब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था) जिसने मूँम्फली के एक खेत की मेड़ पर खड़े-खड़े, एक ग्राम सेवक को डाँट दिया था। उस ग्राम सेवक ने कहा था - ‘बहुत अच्छी फसल आई है सा’ब।’ तब अधिकारी ने, अपना ज्ञान प्रदर्शित करते हुए, आठ-दस लोगों की उपस्थिति में उस ग्राम सेवक को हड़का दिया था - ‘हमें बेवकूफ समझते हो? एक भी मूँम्फली तो नजर नहीं आ रही और कह रहे हो कि फसल बहुत अच्छी आई है?’

ऐसे ही ‘कुशल व्यापारी’ जब सरकारी दुकानें चलाते हैं तो यही होता है - थोक में मँहगा, फुटकर में सस्ता।
 

11 comments:

  1. बिल्कुल सही, केवल डाक विभाग को ही अगर ढंग से चलाया जाये तो सरकार के लिये सोने का अंडा बन सकती है, इन्होंने ही विश्वास डगमगाया है तभी तो कूरियर वालों का धंधा अच्छा चला। अब जिन कर्मचारियों के कारण ऐसा हुआ, उसके बारे में शायद ये यूनियन वाले भी कुछ नहीं बोलेंगे, केवल अधिकारियों की लापरवाही नहीं, कहीं न कहीं इसकी जिम्मेदारी सबकी है।

    और एक बात यह थोक में महँगा वाली बात अब FMCG उत्पादों पर भी लागू हो रही है, अगर आप सोच रहे हैं कि बड़ी पैकिंग ले लें तो सस्ता पड़ेगा, पर हो रहा बिल्कुल उल्टा है, हमने अभी कुछ उत्पादों के छोटे पैकेट के दाम और मात्रा का बड़े पैकेटों के दाम और मात्रा की तुलना करने के बाद यही पाया ।

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  2. हमने टिप्पणी की थी वह गायब हो गई ।

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    1. आपकी सूचना पकार तलाश किया तो मालूम हुआ कि आपकी 'वह' टिप्‍पणी स्‍पेम में चली गई थी। अब छप गई है।

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  3. डाक विभाग की ये योजना तो अच्छी थी.
    डाक विभाग के नजरिये से देखें तो थोडा ज्यादा मूल्य लगाने में भी कोई गलती नहीं है क्योंकि आप 700 पत्रों पर टिकेट चिपकाने के सरदर्द से भी तो बच रहे हैं ... आपका glue भी बच रहा है ....
    आपका ये सोचना है की डाक विभाग को कोई अतिरिक्त श्रम नहीं करना पढ़ रहा है तो शायद कीमत बराबर ही रहती तो ठीक होता. लेकिन डाक विभाग को इस योजना को चलने के लिए एक आदमी बैठना पड़ा है ... जिसने आपके पत्र गिने हैं .. कीमत का calculation किया है ... अगर आप टिकेट लगा के डब्बे में दाल देते तो डाक विभाग को वो आदमी नहीं बैठना पड़ता ...
    तो मेरे हिसाब से ये एक value added service है ... एक सुविधा है ... अगर आपको सुविधा लेनी है तो उसकी कीमत भी चुकानी ही होगी ...
    रही बात थोक की तो आज की तरीक में भारतीय डाक विभाग से सस्ता आपको थोक, फुटकर कहीं भी कुछ नहीं मिलेगा ... तो ये तर्क यहाँ लागू नहीं होता ...

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    1. आप 700 पत्रों पर टिकेट चिपकाने के सरदर्द से भी तो बच रहे हैं - डाक विभाग भी तो 700 टिकट छापने से बच रहा है।

      आपका glue भी बच रहा है - डाक विभाग का glue जो की टिकट के पीछे पहले से लगा कर बेचा जाता है वो भी तो बच रहा है।

      विभाग को इस योजना को चलने के लिए एक आदमी बैठना पड़ा है ... जिसने आपके पत्र गिने हैं .. कीमत का calculation किया है ... अगर आप टिकेट लगा के डब्बे में दाल देते तो डाक विभाग को वो आदमी नहीं बैठना पड़ता ... - खली बैठा आदमी यदि सही योजनाओ के चलते व्यस्त हो जाये तो कही ज्यादा आमदनी करवाएगा डाक विभाग को।

      ये एक value added service है ... एक सुविधा है - सुविधा तब होती जब समय, पैसा और श्रम तीनो बचते। समय; टिकट छपाई, टिकट लगाना और टिकट पर मुहर लगाना - अगर टिकट लगाने का श्रम बच रहा है तो उसे छापने और उस पर मुहर लगाने का श्रम भी तो बच रहा है। पैसा; टिकट छापना, छपे हुवे टिकट को बेचने के लिए सहेज कर रखना, छपे टिकटों को देश भर में पहुचना, टिकट छापने के लिए कागज़ खरीदना और उसे बेचने के लिए एक व्यक्ति को रखना, याने पैसा डाक विभाग का बाख रहा है, इतना पैसा बचाने के बाद 'मार्जिनल डिस्काउंट' तो दिया ही जा सकता है। श्रम; टिकट डिजाईन से लेकर उसको डाक विभाग की खिड़की तक पहुचने में श्रम और खरीदे हुवे टिकट को चिपकाने में श्रम, कोई भी बता सकता है की किसके श्रम की बचत हो रही है।

      आज की तरीक में भारतीय डाक विभाग से सस्ता आपको थोक, फुटकर कहीं भी कुछ नहीं मिलेगा - एक दम सही। एक बात और डाक विभाग से धीमा और निष्क्रिय भी कोई नहीं मिलेगा।

      ये तर्क यहाँ लागू नहीं होता - किसी भी बिजनस या धंधे में सारे तर्क ग्राहक की सुविधा और उसे जोड़े रखने के लिए सोचे या लागू किये जाते हैं। और ये तर्क हर जगह लागू होता है।

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  4. रोचक और सही जानकारी के आभार याद रखा जायेगा ठगी का .

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  5. फेस बुक पर श्री रवि कुमार शर्मा, इन्‍दौर की टिप्‍पणी -

    'थोक में मँहगा, फुटकर में सस्ता' अभी पढा। स्टेट बैंक कर्मचारियों की बात भी अभी ही की है हमने। याने हम नही सुधरेंगे। मेरे CT (वाणिज्यिक कर) विभाग ने नए आए अधिकांश लोग आते ही सरकारी हो रहे है ऐसा मे महसूस कर रहा हूँ ।

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  6. आपकी बात से पूर्णसहमति ।

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  7. dak vibhag hi nahi railways bhi on line ticket par reservation charge leta hai,jabki delhi metro smart card prayog karne par 10% chhoot deta hai vajah kharch aur suvidha ka nahi hai balki galat tarah se aay bhadane ki bajigari hai. kalyug me badh hi khet kho kha rahi hai. aap superfast charge ka das rupaye ka ticket bhool jaiye beraham system aapse 10 rupye par penalty na lekar without ticket ki penalty lega faste hai garib gramin jo kal usi train me ordinary ticket se mahine bhar ke liye mumbai se gaon aye the aur railway ne bina speed suvidha badhaye train superfast kar di. bina ticket jaiye penalti bhariye reserv swaari ke sir par naachiye railway ko penalty mil gayi ab reserv passenger ka bhagwaan maalik Rakesh kumar

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  8. डाक विभाग की जय हो।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.