अच्छी शुरुआत का आशावाद


जब आप अपनी कमजोरियाँ और कमियाँ सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं, वह भी तब, जब आप किसी पद पर आने के बाद पहली बार ऐसा कर रहे हों, तब कुछ बातें अपने आप ही साथ आ जाती हैं। पहली, और मेरे हिसाब से सबसे बड़ी बात तो यह कि आप अपने विरोधियों से उनका, आपकी आलोचना का सबसे बड़ा हथियार छीन लेते हैं। जो कुछ वे कह सकते थे, वह सब तो आपने खुद ही कह दिया। दूसरी, उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह कि लोग आपकी आत्म-स्वीकृतियाँ सुनने के बादवाले पहले ही क्षण से आप पर नजर रखना, प्रतीक्षा करना, प्रबल अपेक्षा करना शुरु कर देते हैं कि आप अपनी इन कमियों को कितनी जल्दी दूर करते हैं। क्योंकि लोग आपकी वे सारी कमियाँ, आपके मुँह से भले ही पहली बार सुन रहे हों किन्तु यह सब वे बहुत पहले से जानते हैं। तीसरी और भारतीय राजनीतिक दलों और नेताओं के सन्दर्भ में मेरे मानोनुकूल बात यह कि अब लोग अन्य दलों और नेताओं से भी ऐसी ही आशा/अपेक्षा करेंगे कि वे भी अपनी-अपनी कमियाँ सार्वजनिक रूप से स्वीकार करें। और जब वे भी ऐसा सार्वजनिक स्वीकार करेंगे तो उन्हें भी वैसी ही जनपेक्षा/जन-आशा का सामना करना पड़ेगा कि वे अब अपनी कमियाँ कब दूर करते हैं।

भारतीय राजनीति का वर्तमान चरित्र केवल ‘विरोधी की आलोचना’ बन कर रहा गया है। सारे के सारे दल और नेता अपने विरोधियों को भ्रष्ट, जन-विरोधी से कम कभी नहीं बताते। उनके पास बताने के लिए मानो अपनी खुद की कोई पूँजी रही ही नहीं। बस! विरोधियों की गलतियाँ ही उनकी पूँजी बन कर रह गई हो। सबकी बातों को सच माना जाए तो हमारे पास अपने तमाम राजनीतिक दलों और नेताओं को भ्रष्ट तथा जन-विरोधी मानने के सिवाय कोई चारा ही नहीं बचता। जबकि इसका समानान्तर रोचक-जन-सत्य यह है कि, हमारे राजनीतिक दल और नेता नागरिकों को नामसझ मानने की हास्यास्पद नासमझी कर रहे हैं। वे निश्चय ही ‘शुतुरमुर्गी मुद्रा’ अपनाते हुए भूल जाना चाहते हैं कि ‘ये पब्लिक है, सब जानती है।’

अखबार हों, समाचार चैनलों की लफ्फाजी भरी बहसें हों या आम-सभाएँ - हमें केवल और केवल आरोप, आलोचना और फूहड़-घटिया चुटकुलों के जरिए विरोधी का उपहास ही देखने-सुनने को मिलता है। हर कोई सामनेवाले को ‘चरम भ्रष्ट और परम पापी’  साबित करता रहता है और जब उससे, खुद के भ्रष्टाचार और पाप के बारे में कहा/पूछा जाता है तो वह सामनेवाले के ही भ्रष्टाचार और पापों की दुहाई देकर बचने की सीनाजोरी करता है। सारे के सारे, खुद ‘चरम भ्रष्ट और परम पापी’ बने रहते हुए, सामने वाले को ‘पवित्र और पूजनीय गाय’ के रूप-स्वरूप में देखना चाहते हैं। निर्लज्जता का चरम यह कि जब अधिक पूछताछ करो तो जवाब मिलता है - ‘राजनीति में भजन करने नहीं आए हैं।’

ऐसे में, काँग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद दिए गए, राहुल गाँधी के पहले भाषण में मैंने, वर्तमान घटिया और गैरजिम्मेदार राजनीतिक व्यवहार के सन्दर्भ में ‘आशा की किरण’ देखी। राहुल की आत्मस्वीकृतियों के पीछे कारण जो भी रहे हों, किन्तु वे खुद भी इतना तो जानते/समझते होंगे कि केवल आत्मस्वीकृतियों से काम नहीं चलता। स्वीकार करने के बाद यदि इन कमियों को दूर नहीं किया जाता तो सारा कहा गया न केवल अर्थहीन होता है अपितु जग-हँसाई का और कालान्तर में लोक अस्वीकार का कारण भी बनता है। किसी भी राजनीतिक दल और नेता के लिए यही सबसे बड़ा खतरा होता है।

नेताओं से एक दूसरे की आलोचना (और वह भी घटिया शब्दावली में) सुन-सुन कर अब देश को मितली आने लगी है। अब देश आलोचना और उपदेश नहीं, आत्म-स्वीकार सुनना चाहता है और तदनुसार ही सुधार भी देखना चाहता है। अपने नेताओं से देश अब विरोधियों के भ्रष्टाचार, पापों, दुराचरण के किस्से नहीं, अपनी जमात की और अपनी जमात के लोगों की धवलता, निष्कलंकता, सदाचरण, ईमानदारी के ब्यौरे सुनना चाहता है। 

राहुल गाँधी के मीडिया-चर्चित इस भाषण में मैंने यही बात देखी। सम्भवतः केवल इसीलिए कि मैं ऐसी ही बात प्रत्येक दल के प्रत्येक नेता के भाषण में देखना-सुनना चाहता हूँ। मेरे तईं, भारतीय राजनीति की ही नहीं, समूचे भारत की आज यही सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हमारे राजनीति दल और नेता खुद की कमियाँ स्वीकारें, उन्हें दूर करें और दूसरों को गलियाँ देने के बजाय खुद के लिए अभिनन्दन-पत्र भेंट किए जाने का अधिकार और पात्रता अर्जित करें। 

13 comments:

  1. वर्तमान गांधी परिवार के सदस्यों (विशेषकर सोनिया और राहुल) को सार्वजनिक जीवन में मैंने अशिष्ट भाषा अथवा ओछी टिप्पणी का प्रयोग करते नहीं देखा ।
    उनसे अनेक बातों पर असहमति है लेकिन इस बारे में उनकी तारीफ़ करनी पड़ेगी ।

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    1. इस ओर तो मेरा ध्‍यान नहीं गया। मैंने तो केवल एक बात देखी कि किसी ने अपनी कमियॉं स्‍वीकार करने की शुरुआत की। यह किसने किया इससे अधिक महत्‍वपूर्ण यह है किसी ने तो यह किया। जाने-अनजाने, मैं इसे अच्‍छी शुरुआत मानता हूँ और कामना करता हूँ हमारे तमाम राजनेता आत्‍म-निरीक्षण, आत्‍म-परीक्षण, आत्‍म-शोधन से गुजरते हुए आत्‍मोन्‍नयन को लक्ष्‍य बनाऍं।

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    2. ये तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब जरा सी पंहुच अथवा सामर्थ्य (पॉवर) वालों को बौराते रोज ही देखते हैं ।

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    3. यह तो और भी महत्‍वपूर्ण बात कह दी तुमने नीरज - आधारभूत होने की सीमा तक जाती महत्‍वपूर्ण। अब तो ईश्‍वर से यही प्रार्थना है कि आत्‍म-स्‍वीकार का जो साहस और सद्बुध्दि ईश्‍वर ने राहुल को दी है, वही सद्बुध्दि तथा उससे भी अधिक साहस, अपने कहे को कर दिखाने के लिए दे। कठिनाई और विडम्‍बना यह है कि हमारे लगभग सारे राजनीतिक दल, पता नहीं क्‍यों, कॉंग्रेस की प्रतिलिपियॉं ही बन कर रह गए हैं।

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  2. मानना पड़ेगा भाई साहब आपको और आपकी खबी का तो जवाब नहीं

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  3. सचमुच जब तक हमारे नेता आत्ममुग्धता के दौर से बाहर नहीं आ जाते, देश का भला होने वाला नहीं है। चाटुकारों की लंबी कतार कहीं राहुल गाँधी को भी आत्ममुग्धता के अंधेरे में न धकेल दे, देश की सबसे बड़ी आशंका यही है।

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    1. यह बहुत बडा संकट है। चाय से पहले और चाय से अधिक, केतलियॉं गरम हो रही हैं। चाटुकारों से मुक्ति पाने के उपाय भी तलाशे जाने चाहिए।

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  4. स्पष्ट और सच बोलने से अन्ततः लाभ होता है..

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  5. कल "किसी" ने अपने भाषण मेँ कहा कि माँ रोई!!!

    मैँ कहता हुँ कि इस देश में माँ तो होती ही रोने के लिए है। उन साढ़े तीन लाख किसानो की माँएं भी रोई ही होंगी जिन्होंने आत्महत्या की। सुदूर गांवों, छोटे कस्बों, जिलों में भूख, गरीबी, ठण्ड, अभाव और बिना इलाज़ के मरने वाले बच्चों की माँ भी रोती तो होंगी ही। गरीबी से तंग आ के जब पूरा का पूरा परिवार ही आत्महत्या कर लेता है तो उसमे तो माँ ही नहीं बचती है रोने के लिए। माँ को कहो की थोडा उन का भी रोना रो लें जिन जिन की माँ रोई;

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  6. फेस बुक पर श्री सुरेशचन्‍द्रजी करमरकर, रतलाम की टिप्‍पणी -

    राहलु ने कुछ आधारभूत गलतियॉं स्‍वीकार की हैं। उन्‍होंने युवाओं को लेकर भी अपनी चिन्‍ता जताई है जो राष्‍ट्र निर्माण में समुचित रूप से भागीदार नहीं हो सके हैं। राहुल चिन्तिततो लगे किन्‍तु पूर्णत: आश्‍वस्‍त नहीं लगे। उन्‍होंने इस बारे में कोई संकेत भी नहीं दिए।

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  7. हम उम्मीद करें कि राहुल भैया काँग्रेस मे सकारात्मक बदलाव लाएँगे और कुछ कर दिखाएंगे । बशर्ते उनका भाषण किसी और ने तैयार न किया हो ।

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  8. फेस बुक पर श्री भुवनेश दशोत्‍तर, भोपाल की टिप्‍पणी -

    ऐसी आत्म स्वीकृति ही नया कर सकती है।

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  9. फेस बुक पर श्री रवि शर्मा, इन्‍दौर की टिप्‍पणी -

    अपनी कमजोरी को हर कोई नेता स्वीकार नही कर सकता। इस माने मे राहुलजी ने अच्छी शुरुआत की है।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.