लोकतन्त्र का त्रिभुज : तरसती तीसरी भुजा

तीन महीनों से अधिक समय से अखबार पढ़ना बन्द है। अन्तिम यात्रा, उठावनों की सूचनाएँ देखने के लिए पन्ने पलटते हुए, शीर्षकों पर नजर चली जाती है। सपाटे से देख लेता हूँ। जिन्दगी में कई फर्क नहीं पड़ा। कभी नहीं लगा कि बाकी दुनिया से पिछड़ गया हूँ। सब कुछ सामान्य, तरोताजा लग रहा।

लेकिन आज पढ़ने में आ गया। पालक साफ करने में उत्तमार्द्ध ने मदद चाही। वे पुराने अखबार पर पालक फैलाए बैठी थीं। पालक साफ करते-करते दो-एक समाचार ऐसे देखने में आए कि बाकी अखबार देखने लगा।

अखबार 17 मई का । पहला समाचार गाँधी नगर में, स्कूल के ऐन सामने चल रही दारू-दुकान को हटाने के लिए जारी महिलाओं के धरने का था। महिलाएँ जनसुवाई में कलेक्टर के पास पहुँची। कलेक्टर ने कानूनों का हवाला देकर, दुकान हटाने में असमर्थता जता दी। महिलाएँ तैश में आ गईं। बोलीं, कानून नहीं हटा सका तो हम कानून हाथ में ले लेंगी। उम्मीद थी कि कलेक्टर जन-भावनाएँ अनुभव कर राहत देगा। लेकिन उल्टा हुआ। तुर्की-ब-तुर्की चेतावनी मिली - तो कानूनी कार्रवाई होगी। 

दूसरा समाचार श्रृंगी नगर में खुलनेवाली दारू की दुकान के विरोध मे धरने पर बैठी महिलाओं का। ठेकेदार ने एक मकान में दारू की बोतलें रखवा दी हैं। बस! दुकान शुरु होने भर की देर है। महिलाएँ अड़ी हुई हैं। अचानक महिलाओं में गहमा-गहमी शुरु हो गई। दूर से एसडीएम की गाड़ी आती नजर आई। महिलाएँ खुश हो गईं - चलो! आज मामला अपने पक्ष मेें निपट जाएगा। लेकिन एसडीएम ने तो महिलाओं की ओर मुँह भी नहीं किया। वे तो दारू की दुकान के लिए वैकल्पिक जगह देखने आई हैं। लोगों ने कोर्ट में दस्तक दे रखी है। कोर्ट ने 18 मई तक दुकान न खोलने के लिए स्थगनादेश जारी कर रखा है। एसडीएम ने, कोर्ट का फैसला आने तक के लिए, दुकान पर ताला लगवा दिया और बिना किसी से बोले चली गईं। महिलाएँ हतप्रभ, टुकुर-टुकुर देखती रह गईं।

तीसरा समाचार नान ज्यूडिशियल स्टाम्प पेपरों की कालाबाजारी का। कलेक्टर को मालूम हुआ तो टीम भेजकर जाँच कराई। शिकायत सच पाई। 50 रुपयों का स्टाम्प 60 रुपयों में और 500 रुपयों का स्टाम्प 600 रुपयों मंे बेचा जा रहा है। टीम ने दो दुकानें सील कर दीं। टीम ने जानने की कोशिश नहीं कि यह कालाबाजारी आज ही हुई या बरसों से जारी है। जानने की कोशिश करते तो निकम्मे साबित हो जाते। मालूम पड़ता कि जो बात पूरा रतलाम बरसों से जानता है, वह कलेक्टर की टीम को आज पहली बार मालूम हुई। 

चौथा समाचार रेल्वे स्टेशन स्थित स्कूटर स्टैण्ड का है। भाव पाँच रुपये है और ग्राहकों को दी जानेवाली  पर्ची पर भी पाँच रुपये ही लिखा है लेकिन ठेकेदार दस ले रहा है। अब तो लोगों को याद भी नहीं रहा कि कब से दुगुना पैसा ले रहा है।  लोग शिकायत करते चले आ रहे हैं लेकिन कभी, कोई कार्रवाई नहीं हुई। अखबार के सम्वाददाता ने ठेकेदार से पूछा तो जवाब मिला - ‘लोग क्यों देते हैं? उन्हें देना ही नहीं चाहिए।’ उससे कहा - ‘न दो तो तुम्हारे लोग बदतमीजी करते हैं, आतंकित करते हैं, हमलावर हो जाते हैं।’ ठेकेदार ने कहा - ‘लोगों को उचित जगह पर शिकायत करनी चाहिए।’ शिकायत किससे करें? अब तक अनगिनत बार शिकायत कर चुके। कोई कार्रवाई नहीं हुई। डीआरएम, नेता लोग तो स्कूटर रखते नहीं और रेल्वे कर्मचारियों के पैसे लगते नहीं। शिकायत पर कार्रवाई कौन करे और भला क्यों करे?

पाँचवा समाचार इन्दौर जानेवाली डेमू ट्रेन का है। रेल यहीं से बनती है। इसलिए लेट होनेवाली बात ही नहीं। रवानगी का निर्धारित समय 12ः30 बजे का है लेकिन रेल हिल ही नहीं रही। न सीटी बज रही न कोई झण्डी दिखा रहा। गर्मी चालीस डिग्री के आसपास है। लोगों के हलक सूख रहे हैं। बच्चे रो रहे हैं। लेकिन रेल को तो जैसे जड़ें निकल आई। आखिरकार 01ः10 बजे रेल सरकी। निर्धारित समय से पूर चालीस मिनिट बाद। मालूम हुआ, रेल प्रशासन को ड्रायवर ही नहीं मिला। मालगाड़ी चलानेवाले ड्रायवर से कहा तो उसने साफ इंकार कर दिया। जैसे-तैसे ड्रायवर लाया गया तब रेल चली। इस बीच रेल प्रशासन ने न तो कोई जानकारी दी न ही लाउडस्पीकर पर घोषणा की। प्लेटफार्म पर रेल्वे का काई जिम्मेदार आदमी भी नहीं।  स्थिति जानने के लिए लोग इधर-उधर भागते रहे और झिड़कियाँ खाते रहे। किसी जिम्मेदार अधिकारी की बात तो दूर, रेल्वे का परिन्दा भी मौजूद नहीं। रही बात नेताओं की तो सबके पास अपनी-अपनी वातानुकूलित, आरामदायक कारें। ऐसी कि पेट का पानी न हिले। गर्मी से बेहाल लोगों से उन्हें क्या लेना-देना? चुनाव वैसे भी लगभग डेड़ साल बाद है।

छठवाँ समाचार किसी और जगह का है। एक विधायकजी भन्ना रहे हैं। बड़े तैश में हैं। उन्हें टोल नाके पर लगभग आधा घण्टा रुकना पड़ा। कोई पहचानने को तैयार नहीं। उन्हें, अपना परिचय-पत्र बताने की असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी। कहते सुने गए - कुछ करना पड़ेगा। टोल नाकों पर लोगों को बहुत परेशानी होती है। बिना किसी बात के घण्टों प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मुख्य पीड़ा छुपा नहीं पाए - लाल बत्ती नहीं होने से यह सब बर्दाश्त करना पड़ा। 

सातवाँ समाचार भोपाल का है। मन्त्री मण्डल ने निर्णय ले रखा है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल से पुरुस्कृत/सम्मानित अध्यापकों को ‘बारी से परे’ (आउट ऑफ टर्न) पदोन्नत किया जाए। निर्णय राज्य के असाधारण गजट में भी अधिसूचित हो चुका है। लेकिन प्रदेश के लोक शिक्षण संचालक ने मानने से इंकार कर दिया। कहते हैं - ऐसा कोई नियम ही नहीं है। मन्त्री-त्रय पारस जैन, अर्चना चिटनिस, विजय शाह तथा अधिकारीगण अभिमत ही लेते रह गए लेकिन केबिनेट निर्णय का क्रियान्वयन नहीं हुआ। 

आठवाँ समाचार पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी का है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त, केन्द्र सरकार की प्राधिकृत प्रतिनिधि, महामहीम राज्यपाल पता नहीं लोगों को (नेक) सलाह दे रही हैं या सरकार की अक्षमता की उद्घोषण कर रही हैं - ‘अपनी-अपनी बेटी बचाओ।’

मुझे थकान आ गई। आगे पन्ने नहीं पलट सका। मन पर उदासी और क्षोभ एक साथ तैर आए। हम लोकतन्त्र में जी रहे हैं। स्कूल से लेकर विधायी सदनों और सड़कों पर होनेवाली आम सभाओं में एक स्वर से कहते सुना - ‘लोकतन्त्र याने लोगों का शासन, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए।’ यह व्याख्या किसी फूहड़ चुटकुले जैसी लगने लगती है। यह शासन लोगों के द्वारा तो है लेकिन लोगों का नहीं। और, लोगों के लिए तो है ही नहीं। यह तो ‘लोगों के द्वारा, नेताओं/अफसरों का, नेताओं/अफसरों के लिए’ है। 

स्कूल में गणित के अध्यापक सोमानी सर ने समझाया था - ‘अपना लोकतन्त्र समबाहु त्रिभुज है। इसकी तीनों भुजाएँ बराबर हैं। इसके तीनों कोण भी समान, 60-60 अंशों के हैं। इसे विभाजित करो तो समान आकार-प्रकार के तीन बराबर हिस्से होंगे - एक लोगों का, दूसरा सरकार का और तीसरा सरकारी तन्त्र का।’ लेकिन सोमानी सर यह बताना भूल गए थे कि लोगों के हाथ में उनका हिस्सा तो पाँच बरस में एक बार ही आएगा।  बहुत थोड़ी देर के लिए - वोट देने के एक मिनिट के लिए। बाकी चार बरस, ग्यारह महीने, उनतीस दिन, तेईस घण्टे, उनसाठ मिनिट वह नेताओं-अफसरों के पास ही रहेगा, उनके बाकी दोनों टुकड़ों के साथ। लोकतन्त्र का त्रिभुज तो इन दोनों के कब्जे में रहेगा। 
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                                          (दैनिक 'सुबह सवेरे',भोपाल में 01 जून 2017 को प्रकाशित)

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
    "देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. खूबसूरत विश्लेषण और नकारा सरकार संग सरकारी महकमे का सूक्ष्म अंकन । हमने भी अनजाने में पेपर पढना बंद कर डाला है ।

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  3. लाल बत्ती हटने से 5% टोल बढ़ा, साल में 800 करोड़ की अतिरिक्त आय संभव ( गडकरी जी का वक्तव्य)आज के समाचार पत्र में । प्रश्न 1.अब तक लाल बत्ती के नाम पर सरकार को लोग बत्ती दे रहे थे । 2. टोल तो ठेके पर दे रखे है,सरकार की आय कैसे बढ़ेगी 3.अफसर,मंत्री और नेताओं के पास सहानुभूति का स्टॉक खत्म हो गया है । 4.चोरी और सीनाजोरी बढ़ती जा रही है ।

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  4. लाल बत्ती हटने से 5% टोल बढ़ा, साल में 800 करोड़ की अतिरिक्त आय संभव ( गडकरी जी का वक्तव्य)आज के समाचार पत्र में । प्रश्न 1.अब तक लाल बत्ती के नाम पर सरकार को लोग बत्ती दे रहे थे । 2. टोल तो ठेके पर दे रखे है,सरकार की आय कैसे बढ़ेगी 3.अफसर,मंत्री और नेताओं के पास सहानुभूति का स्टॉक खत्म हो गया है । 4.चोरी और सीनाजोरी बढ़ती जा रही है ।

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