आईए! मरें। ताकि स्वर्ग देख सकें

जब भी किसी फालतू की बहस से बचना चाहता हूँ, दोनों हाथ जोड़कर कह देता हूँ - ‘इस मामले मे मुझे कुछ नहीं पता। जो जितना जाने, उतना दुःखी हो। मुझे अज्ञान का सुख भोगने दीजिए।’ लोग हँस कर मुझे छोड़ देते हैं और मैं अर्थहीन, निकम्मी बहस का आनन्द लेने लगता हूँ। अनेक बार कहता हूँ - ‘मुझे समझदार नहीं बनना। समझदार की मौत है।’ लेकिन आज जब शेखरजी से बात हुई तो, बचाव के अपने इन कमजोर बहानों पर झेंप हो आई। अज्ञान का सुख तो हो सकता है। किन्तु इसके दण्ड तो भुगतने ही होते हैं। इसमें यदि आलस जुड़ जाए तो हालत ‘कोढ़ में खाज’ जैसी हो जाती है। तब हम दण्ड ही नहीं, दुःख भी भोगते हैं।

शेखरजी को आप भूले नहीं होंगे। नीमच जैसे दूरदराज के  मझौले कस्बे में बैठकर सूचना का अधिकार के जरिए वे ‘व्यवस्था’ के लिए असुविधाएँ पैदा करते रहते हैं। जिन्हें हम ‘छोटी-छोटी बातें’ मान कर ‘यह तो चलता है’ कह कर अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं, उन्हीं की जानकारी माँग कर ‘व्यवस्था’ के कपड़े उतारते रहते हैं। देश के शिक्षित लोगों के एक प्रतिशत लोग भी यदि शेखरजी की तरह सजग और सक्रिय हो जाएँ तो मेरा दावा है कि देश की नौकरशाही और अफसरशाही घुटनों पर आकर ‘त्राहिमाम्! त्राहिमाम्!’ करते हुए, साष्टांग मुद्रा में नजर आए। बस! शर्त यही है कि हम शेखरजी की तरह जानकारियों से वाकिफ, चौकन्ने और सक्रिय बने रहें।

सरकार को चुकाया पैसा या कि सरकार से उसकी अव्यवस्था का जुर्माना वसूलना असम्भव नहीं तो आसान भी नहीं। शेर के मुँह में हाथ डालकर सामान निकालने जैसा है। वसूलने में सरकार जितनी सख्ती, आक्रामता, निर्ममता बरतती है, चुकाने में उससे हजार गुना पीड़ा होती है सरकार को। लेकिन शेखरजी एक बार यह ‘पराक्रम’ कर चुके।

सन् 2016 की, आठ और नौ नवम्बर की सेतु-रात्रि को, नीमच टेलिफोन एक्सचेंज की केबल ट्रेंच में आग लग गई। फलस्वरूप नीमच के विभिन्न इलाकों के लेण्ड लाइन टेलिफोन तीन दिन से लेकर दस दिनों तक बन्द रहे। शेखरजी का फोन भी इन में शामिल था। 

शेखरजी के पास स्मार्ट फोन तो है किन्तु वे खुद अब तक स्मार्ट नहीं बन पाए। ठेठ देशी आदमी ही हैं - लेण्ड लाइन फोन पर बात करना, अपना काम निपटाना उन्हें अधिक सुखद और सुविधाजनक लगता है। ऐसे में फोन ठप्प याने शेखरजी ठप्प। परेशानी से चिढ़ उपजी और इसी से उपजी उत्सुकता - ऐसी स्थिति के लिए उपभोक्ताओं के लिए कोई राहत है या नहीं? वे जुट गए। बीएसएनएल की जनम-पत्री बाँची। वहाँ कुछ नहीं मिला तो ‘भारतीय टेलिफोन नियामक अभिकरण’ याने ‘ट्राई’ के कागज खँगाले। बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। शेखरजी की मुराद पूरी हो गई। ट्राई द्वारा निर्धारित सेवाओं के ‘गुणवत्ता मानक’ (बेंचमार्क) के अनुसार यदि कोई टेलिफोन तीन दिन से अधिक एवम् सात दिन से कम अवधि के लिए खराब हो जाता है तो उस उपभोक्ता को बिल में सात दिनों के किराए के बराबर रकम की छूट मिलती है।  सात दिन से पन्द्रह दिन की अवधि के लिए  पन्द्रह दिनों के किराए के बराबर रकम की और पन्द्रह से तीस दिनों की अवधि के लिए एक माह के किराए की रकम के बराबर छूट मिलती है। 

ये उल्लेख देखकर शेखरजी खुद की पीठ ठोक रहे थे। उन्होंने लिखा-पढ़ी शुरु कर दी। जैसा कि होता है, उनकी बात सुनी ही नहीं गई। शेखरजी ने सीधे बीएसएनल की साइट पर शिकायत दर्ज की। वहाँ इसे हाथों-हाथ लिया गया। छूट उपलब्ध कराने की प्रक्रिया के सारे गलियारों से होते हुए नीमचवालों को आदेशित किया गया - ‘शेखरजी को नियमानुसार छूट की रकम वापस करें।’ नीमच बीएसएनएलवाले चकित थे। उन्हें ऐसे आदेशों की आदत नहीं। आदेश दो बार पढ़ा और शेखरजी को अगले बिल में लगभग साढ़े तीन सौ रुपयों की छूट दी गई।

शेखरजी ने किस्सा सुनाया तो मैंने पूछा - ‘बीएसएनल वालों का क्या कहना रहा?’ शेखरजी बोले - “सब अपनेवाले ही हैं। खुश ही हुए। किसी की जेब से तो कुछ जाना ही नहीं था। लेकिन एक ने कहा - ‘शेखरजी! और तो कुछ नहीं, आपने लोगों के लिए रास्ता खोल दिया। आपने हमारा काम बढ़ा दिया। अब हमें लिखा-पढ़ी ज्यादा करनी पड़ेगी। बुढ़िया मरी इस बात की तकलीफ नहीं। तकलीफ इस बात की है कि मौत ने रास्ता देख लिया।”

मैंने शेखरजी से कहा - ‘शेखरजी! आपको मेरी सौगन्ध! आप इस मौत को नीमच से लेकर दिल्ली तक के, छोटे से छोटे से लेकर सबसे बड़े तक, हर सरकारी दफ्तर का दरवाजा दिखा दीजिएगा। आपको पूरे देश की दुआएँ लगेंगी।’

बहुत अदब और संकोच से शेखरजी बोले - ‘नहीं सर! आप जानते हैं, चाह कर भी ऐसा कर पाना किसी एक के लिए मुमकिन नहीं। सरकारी व्यवस्था की यह मौत तो हर हिन्दुस्तानी की जेब में पड़ी है। हम लोग अपनी ही जेब में हाथ डालने की मेहनत करने को तैयार नहीं। अपने यहाँ स्वर्ग तो हर आदमी देखना चाहता है लेकिन मरने को कोई तैयार नहीं। और आप तो जानते ही हैं सर! मरे बिना स्वर्ग नहीं देखा जाता।’
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4 comments:

  1. सुन्दर आप बीती का लेखा
    सजग और पैनी निगाह
    साधुवाद सत्कर्म हेतु

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  2. बहुत ही शिक्षा प्रद आलेख है ।साधुवाद

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  3. साधुवाद शेखर जी, लगे रहिये और समाज सेवा करते रहिये।

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : सुनील दत्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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