न सुधरनेवालों का संघर्ष

इस कलि काल में वह व्यक्ति अभागा भी होगा और दुर्लभ भी जो किसी वाट्स एप ग्रुप में शामिल न हो। प्रेम जताने का दावा करते हुए दुश्मनी कैसे निभाई जाती है, वाट्स एप ग्रुप इसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं।  आप हैं कि बार-बार पल्ला छुड़ाना चाहते हैं लेकिन भाई लोग हैं कि हर बार आपको पल्लू में बाँध लेते हैं। आपकी ‘त्राही! त्राही!’ की मर्मान्तक पुकार  ‘वाह! वाह!’ मानी जाती है। आप मित्रता के अत्याचार सहने को अभिशप्त हो घुटने टेक देते हैं और ग्रुप की कोड़ामार पिटाई के लिए अपनी पीठ नंगी कर मुँह मोड़ लेते हैं।

लेकिन यदि आप ग्रुप के एडमिन हैं और सबका भला चाहते हैं तो आपकी पिटाई तो सबसे ज्यादा होती है। दया की भीख माँगने की तरह आप ग्रुप का अनुशासन बनाए रखने के लिए बार-बार गिड़गिड़ाते हैं। आप पर कोई दया नहीं करता। यह सामूहिक पिटाई अचानक ही आपको याद दिलाती है कि आप भी स्वाभिमान जैसी चीज के मालिक हैं। यह याद आते ही आप चेतावनियाँ देते हैं। अंगूठा चिपका-चिपका कर सब आपका सही तो ठहराते हैं लेकिन आपकी सुनता कोई नहीं। तब आप लोगों को ‘रिमूव’ करते हैं। लेकिन ऐसा करते-करते आपको अचानक खयाल आता है कि ऐसे तो सबको रिमूव करना पड़ जाएगा! और यदि सबको रिमूव कर दिया तो फिर आप इन अपनेवालों का भला कैसे कर पाएँगे? तब आप खीझकर, एक दिन या दो दिन का ‘रिमूवल पीरीयड‘ तय कर, रिमूव किए लोगों को झुंझलाते हुए फिर ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। रिमूव किए हुए लोग खुद को फिर से ग्रुप में शामिल देख दुगुने उत्साह से ‘अपनीवाली’ पर लौट आते हैं और आप ‘हवन करने में हाथ तो जलते ही हैं’ कह कर, सबकी पिटाई झेलने के लिए खुद को सौंप देते हैं।

मेरे एक अनदेखे मित्र, ग्रुप एडमिन की इसी दशा को भोग रहे हैं। लेकिन उनका धैर्य और हम एजेण्टों के प्रति उनकी चिन्ता देख-देख मैं उन्हें मन ही मन प्रणाम करता हूँ। उनसे मेरा फोन सम्पर्क बना रहता है। कभी मैं फोन कर लेता हूँ। कभी वे।

ये हैं बुर्ला (उड़ीसा) निवासी श्री रवि नारायण मिश्रा। एलआईसी के प्रशासनिक ढाँचे के अनुसार इनकी शाखा सम्बलपुर मण्डल में आती है। उड़ियाई उच्चारण में इन्हें ‘रबि नारायण’ और बंगाली उच्चारण में ‘रोबी नारायण’ पुकारा जाता है। हम एजेण्टों की रक्षा के लिए तो हमारा संगठन ‘लियाफी’ है ही लेकिन बचाव के औजारों का खजाना इन मिश्राजी के पास है। एजेण्टों से जुड़े, एलआईसी के तमाम आदेश, तमाम परिपत्र इन मिश्राजी के पास उपलब्ध हैं। लेकिन चमत्कार तो यह कि सबकी डिजिटल प्रतियाँ इस तरह उपलब्ध करा देते हैं जैसे कोई जादूगर हवा में हाथ लहरा कर कबूतर पेश कर देता है।

लेकिन इन अनदेखे मिश्राजी की यही एकमात्र विशेषता नहीं हैं। इससे बड़ी विशेषता इनकी यह है कि ये प्रत्येक एजेण्ट को जानकारियों, सूचनाओं से लैस, समृद्ध करना चाहते हैं। ये ऐसे अनूठे और उदार ज्ञानी हैं जो प्रत्येक एजेण्ट को अपने जैसा ही ज्ञानी बनाना चाहते हैं। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि हम एजेण्ट लोग ज्ञानी बनने के बजाय मिश्राजी पर निर्भर होने में अधिक सुख अनुभव कर रहे हैं। ऐसे मे मिश्राजी हम एजेण्टों के लिए ‘निर्बल के बल राम’ बन गए हैं।

एजेण्टों को सूचना समृद्ध बनाने के लिए मिश्राजी ने ‘ओनली इंश्योरेंस ज्ञान’ तथा ‘ग्रुप मेडिक्लेम नॉलेज’ नाम से दो ग्रुप बना रखे हैं। इनकी इच्छा और कोशिश रहती है कि इन ग्रुपों के सदस्य केवल विषय से जुड़ी बातें और सामग्री ही दें। अधिकांश लोग तो मिश्राजी की बात मानते हैं लेकिन कुछ भाई लोग हैं कि इनकी सुनने को तैयार ही नहीं होते। वे ‘गुड मार्निंग’, ‘हेप्पी टुडे’, ‘हेव ए नाइस डे’ जैसे सन्देश, चित्र चिपकाते रहते हैं। मिश्राजी तो हमारा व्यावसायिक ज्ञान बढ़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन ये भाई लोग मिश्राजी सहित हम सबका जीवन सुधारने का बीड़ा उठाए हैं। ऐसे लोग उपदेशों, निर्देशों, सुभाषितों, नीति वाक्यों, नाना प्रकार के उद्धरणों से सबका जनम सफल करने का ‘अत्याचारी-उपकार’ करते रहते हैं।

मिश्राजी ने ऐसे लोगों को चेतावनी देना शुरु किया। चेतावनी का असर  न होते देख चेतावनी दी कि यदि कहा नहीं माना तो ग्रुप से निकाल देंगे। चेतावनी तो दे दी लेकिन निकाला किसी को नहीं। मिश्राजी की इस भलमनसाहत को भाई लोगों ने शायद मिश्राजी की मजबूरी समझ लिया। रुकना तो दूर रहा, वे दुगुने उत्साह से अनावश्यक, अप्रासंगिक सामग्री देने लगे। मजबूर होकर मिश्राजी ने ऐसे लोगों को एक दिन, दो दिनों के लिए ग्रुप से बाहर करना शुरु कर दिया। इसका असर तो हुआ जरूर लेकिन ‘आदत से मजबूर’ भाई लोग अभी भी काम पर लगे हुए हैं।

ऐसे लोगों से मुक्ति पाने के लिए मिश्राजी ने एक रास्ता निकाला। उन्होंने ‘बेस्ट विशेस’ नाम से एक अलग ग्रुप बनाया और कहा कि इस ग्रुप में कोई भी काम की बात नहीं की जाएगी। यहाँ केवल शुभ-कामनाएँ, अभिनन्दन, विभिन्न प्रसंगों के सन्देश और सुभाषित, नीति उद्धरण दिए जाएँगे। मिश्राजी ने चेतावनी दी - ‘यहाँ जो भी काम की बात करेगा उसे निकाल दिया जाएगा।’ होना तो यह चाहिए था कि सब खुश होते और जी भर कर शुभ-कामनाएँ, अभिनन्दन, बधाइयाँ देते। लेकिन हुआ उल्टा। कामवाले ग्रुपों पर फालतू सामग्री देनेवाले मित्रों ने कहा - ‘ऐसे कैसे? केवल बेस्ट विशेस का भी कोई ग्रुप होता है? ऐसे तो सब बोर हो जाएँगे! ग्रुप में तो काम की बातें होनी चाहिए!’ और भाई लोगों ने इस ग्रुप पर काम की बातें डालनी शुरु कर दीं। अब हालत यह है कि काम की बातोंवाले ग्रुप में भाई लोग बेस्ट विशेस डाल रहे हैं और बेस्ट विशेस वाले ग्रुप में काम की बातें।

फोन पर मिश्राजी से बातें करते हुए मुझे उनके मिजाज का कुछ-कुछ अनुमान हो चला है। बेस्ट विशेस ग्रुप पर भाई लोगों की प्रतिक्रियाएँ देख कर मैंने फौरन मिश्राजी को फोन लगाया। वे हतप्रभ और असहज थे। ‘कैसे लोग हैं बैरागीजी? काम की बात करने को कहो तो फालतू बातें करते हैं और फालतू बातों के लिए ग्रुप बनाया तो काम की बातें करने को कहते हैं!’ मैं ठठा कर हँसा। कहा - “यह ‘न सुधरनेवाली दो मानसिकताओं’ का संघर्ष है। आप भला करने पर तुले हुए हैं और वे अपना भला न होने देने को। न आप सुधरने को तैयार हैं न वे। दुःखी मत होईए। ऐसा ही चलते रहने दीजिए। कभी-कभी न सुधरते हुए भी आदमी सुधर जाता है।” 

अब मिश्राजी ठठाकर हँस रहे थे। 
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3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. इस चक्कर में मै भी अपना WhatsApp no बदल चुका हूँ मेरे दिल की बात को शब्द देने के लिए धन्यवाद

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