इन्हें कैसे रोकें ?



कर्नाटक विधान सभा के चुनाव परिणामों के राजनीतिक विश्‍लेषण तो होते रहेंगे लेकिन परास्त हुई कांग्रेस के नेता एस. एम. क्रष्‍णा और जद (यू) के नेता, पूर्व मुख्यमन्त्री (विश्वासघाती) कुमारस्वामी ने जिस शहीदाना अन्दाज में, उदारता बरतने की मुद्रा में पराजय स्वीकार की वह चैंकाने वाली है ।

इन दोनों ने यह स्वीकारोक्ति ऐसे की मानो कर्नाटक के मतदाताओं पर उपकार कर रहे हों । दोनों ने मतदाताओं के फैसले को स्वीकार तो किया लेकिन ऐसे, मानो वे चाहते तो मतदाताओं के इस फैसले को अस्वीकार भी कर सकते थे लेकिन यह उनका बड़प्पन है कि इस फैसले को स्वीकार कर रहे हैं ।

हारने वाले दल के नेता ऐसा ही पाखण्ड करते हैं । एक भी कबूल नहीं करता कि मतदाताओं ने उन्हें खारिज कर दिया है और उन्हें बड़े ही अनमनेपन से अब प्रतिपक्ष में बैठना पड़ेगा । लोगों की सेवा करने के नाम पर ये लोग वोट माँगते हैं और जीतने पर, सत्ता में जाते ही सबसे पहले लोगों को भूलते हैं और हारने पर, मन ही मन लोगों को कोसते हैं, उन्हें मूर्ख समझते हैं और इसीलिए लोकतान्त्रिक आदर्श की दुहाइयाँ देते हुए, मतदाताओं को कोसते हुए, प्रतिपक्ष की कुर्सियों पर बैठते हैं । याने, ये लोग जीतें या हारें, सत्ता में बैठें या प्रतिपक्ष में - ये सदैव मतदाताओं पर उपकार ही करते हैं ।

अभी-अभी, कोई एक अठवाड़ा पहले, मेरे प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चैहान मेरे शहर में आये थे । कोई छः माह बाद मध्यप्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं सो शिवराज की दुम में आग लग गई है और वे चैन से नहीं बैठ पा रहे हैं । नारी सशक्तिकरण सम्मेलन के नाम पर पूरे जिले से महिलाओं को रतलाम लाया गया था । इस हेतु सरकार ने विधिवत बजट प्रावधान भी किए थे । महिलाओं से अपनापा जोड़ने की चुनावी ललक में शिवराज ने कहा कि वे पूरे प्रदेश की महिलाओं के भाई हैं और प्रदेश की बच्चियों के मामा । वे कह गए कि अब मध्य प्रदेश में उनकी कोई भी बहन और कोई भी भानजी असुरक्षित नहीं रहेगी ।

तालियाँ बजवाने के लिए यह बहुत ही सही बात थी । लेकिन उनके जाने के अगले ही दिन से, अखबारों में किसी न किसी महिला के साथ बलात्कार, दुराचरण के और किसी न किसी बालिका के साथ अशालीन हरकतों के समाचार निरन्तर छप रहे हैं । शिवराज को चाहिए कि वे अखबारवालों को विशेष रूप से धन्यवाद दें कि अखबारवाले ‘मुख्यमन्त्री की बहन को डायन के सन्देह में पीट-पीट कर मार डाला’, ‘मुख्यमन्त्री की नौ वर्षीया भानजी के साथ बलात्कार’ जैसे शीर्षक नहीं दे रहे हैं ।

चुनाव हर साल कहीं न कहीं होते हैं और महिलाओं/बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएँ अब सामान्य होती जा रही हैं । ऐसे में, केवल तालियाँ पिटवाने के लिए, रिश्ते जोड़ने वाले ऐसे जुमले उच्चारित करने के क्या मायने ? शिवराज की सगी बहन या सगी भानजी के साथ कोई बड़ी दुर्घटना की बात तो दूर रही, सड़क के दूसरे किनारे से उनकी तरफ यदि कोई मनचला आँख भी मार दे पुलिस वाले उसका चेहरा-चोला बदल देंगे । लेकिन दूरदराज के गाँव-खेड़ों में महिलाओं/बच्चियों के साथ हो रही दुर्घटनाओं की तो एफआईआर भी नहीं लिखी जाती ।

सवाल यही उठता है कि हमारे नेता, जिस सीनाजोरी से, जिस बेशर्मी से, उपकारी मुद्रा में हमसे मुखातिब होते हैं, हमें उपदेश दे जाते हैं - उससे उन्हें कैसे रोका जाए ? सामान्य मतदाता दो वक्त की रोटी जुटाने में ही लगा रहता है इसीलिए वह चाहते हुए भी एकजुट नहीं हो पाता । जन सामान्य की इस विवश असहाय स्थिति का दुरूपयोग हमारे नेता बड़ी सहजता से करते चले आ रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे ही ।

इन्हें कैसे रोका जाए ।

4 comments:

  1. इन्हे कोई नही रोक सकता.
    ये तों भस्मासुर हैं.
    ये सिर्ग स्वयं के किए ही नष्ट हो सकते हैं.

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  2. विष्णु जी, कोई तो रस्ता जरूर निकलेगा.
    बालकिशन जी की बात मान लेते हैं, कभी तो खुद खत्म करेंगे ही.

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  3. मैथिली जी से सहमत कि रास्ता निकलेगा, लेकिन बालकिशन जी से असहमत कि "ये खुद नष्ट होंगे", इन्हें नष्ट करने के लिये किसी न किसी को संहारक का रोल निभाना पड़ेगा, क्योंकि "नेता" शब्द की कोई पार्टी या जाति/धर्म नहीं होता…

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  4. कोई रास्ता नही है यह सोच कर चुप भी नही रहा जा सकता...लेकिन आप कर भी क्या सकते है...

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