अर्जुन का समाचार



‘‘आज के इस आतंकी आकाश में फैली दहशत भरी हवाओं में और इस विसंगत समय में, जब सुरक्षा का भरोसा देने वाला हर बाजू विकलांग हो चुका हो और जबकि देश के पहरेदार-कर्णधार भी भ्रष्ट आचरण की गलियों में गुम हैं, अविश्वास-असुरक्षा-भय की सुरंगों में हर जिन्दगी का दम घुट रहा हो और सारी ‘सदी’ भागीरथ के पूर्वजों की तरह अकाल मृत्यु से ग्रस्त, उध्दार की अभिलाषा में गंगा की बाट जोहती हो, तब एक पक्ष किसी भागीरथ की तरह विश्वस्त और भरोसेमन्द रह गया है, हम उसी पक्ष ‘समाचार-पत्र’ की सुरक्षा-भरोसे में आज जी रहे हैं । ऐसे ही भरोसे की कड़ी में एक और कड़ी जुड़ गई, वह है ‘महक पंजाब दी’ पत्रिका ।

’’विश्वास कीजिएगा, यह उध्दरण किसी पुस्तक समीक्षा का नहीं बल्कि एक समाचार का अंश है जो साप्ताहिक उपग्रह के, 22 से 28 मई वाले अंक में प्रकाशित हुआ है । मेरे बाल सखा अर्जुन पंजाबी ने यह समाचार लिखा है । अर्जुन केवल मनासा का ही नहीं, मालवा के बड़े हिस्से का स्थापित और लोकप्रिय लेखक है । उसके सामयिक लेख, व्यंग्य और कहानियाँ नीमच-मन्दसौर के लगभग समस्त अखबारों में नियमित रूप से तथा देश के विभिन्न नगरों से प्रकाशित हो रहे पत्र-पत्रिकाओं में प्रायः ही छपते रहते हैं ।

ऐसी भाषा किसी समीक्षा की तो हो सकती है लेकिन समाचार की तो बिलकुल ही नहीं । अर्जुन के लिखे इस समाचार ने मेरी बहुत बड़ी उलझन दूर कर दी । मैं समझ नहीं पा रहा था कि हमारे कलमकारों को लोक-स्वीकार और लोक-सम्मान उतना और उस तरह क्यों नहीं मिलता जैसा कि अन्य भारतीय भाषाओं के कलमकारों को मिलता है । इस समाचार ने मुझे उत्तर दे दिया ।

स्वाधीनता संग्राम के दौर में साहित्यकार और पत्रकार प्रायः समानार्थी और पर्यायवाची बने हुए थे । वे जो भी लिखते थे, वह न केवल लोगों को समझ पड़ता था अपितु लोगों को वह लिखा हुआ अपने मन की बात लगता था । साहित्य की अपनी कोई अलग भाषा नहीं होती थी । जन भाषा ही साहित्य की भाषा होती थी । इसीलिए बच्चा-बच्चा उन कलमकारों को व्यक्तिश: भले ही न जानता रहा हो, उनके प्रति भरपूर सम्मान अपने मन में संजोए रखता था । हिन्दी से इतर अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों से उनके पाठकों के आत्मीय जुड़ाव का कारण भी यही है ।

लेकिन हिन्दी के मामलें में आज स्थिति बिलकुल ही बदल गई है । हमारे कलमकारों की भाषा किसी और दुनिया की भाषा लगती है । वे खुद को स्थापित करने के लिए जो ‘शाब्दिक पिश्ट पेषण’ करते हैं उसका जन सामान्य से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं होता । लेखकों के लिखे में लोग अपने आप को तलाश करते हैं और उन्हें मिलता है दूसरे ग्रह की भाषा वापरने वाला कोई ‘एलियन ।’ परिणाम यह होता है कि कलमकारों के बीच भले ही आप स्थापित हो जाएँ लेकिन पाठकों के संसार से आप विस्थापित हो जाते हैं । यह विस्थापन ही अन्ततः सम्वादहीनता से होता हुआ लेखकों के प्रति विकर्षण तक पहुँचता है । मुझे लगता है कि हमारे अधिसंख्य कलमकार इसी कारण ‘लोक’ से बहिष्कृत हो, ‘परलोकवासी’ हो गए हैं । जाहिर है कि इस स्थिति और दशा के लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं ।

हमारे कलमकारों को इस सन्दर्भ में हिन्दी ब्लाग जगत को ध्यान से देखना चाहिए । यहाँ दिल की बात सीधे जबान पर आ रही है । भाषा के पेंच और घुमाव यहाँ नदारत हैं । अनगढ़ता लिए इसकी भाषा की सहजता और सीधापन इसकी सबसे बड़ी सुन्दरता बन कर उभर रहा है । यहाँ राजपथ के आतंक की बजाय अपने गाँव-खेड़े की पगडण्डी पर उन्मुक्तता से चलने का आनन्द मिलता है ।

अपनी भावनाएँ जताते हुए मैं ने अर्जुन को पत्र लिखा । उत्तर में उसने फोन पर बात की और बड़ी देर तक की । मैं डर रहा था कि उसका ‘परलोकवासी कलमकार’ हमारी मित्रता के प्राण न ले ले। लेकिन मुझे बड़ी राहत मिली (जो वस्तुतः मुझ पर अर्जुन की कृपा ही है) कि अर्जुन ने सारी बातों को न केवल सहजता से लिया बल्कि मेरी बातों को ‘जस का तस’ स्वीकार भी किया ।

पूर्ववर्ती साहित्यकार लोगों के लिए लिखते थे तो लोग उन्हें सर-आँखों पर उठाते थे । अब लेखक खुद के लिए लिखते हैं तो उन्हें स्वाभाविक रूप से अकेलापन झेलना ही पड़ेगा । हमारे लेखकों के होठों पर जब तक ‘मैं’ रहेगा, वे अकेले रहने को अभिषप्‍त रहेंगे । जिस दिन उनके होठों पर ‘आप’ आ जाएगा उस दिन वे अपने पाठकों से इस तरह और इस सीमा तक घिरे रहेंगे कि एकान्त लिए तरसने लगेंगे ।

आप साहित्य को जन-भाषा नहीं बना सकते । आपको जन भाषा में साहित्य रचना पड़ेगा ।

अर्जुन को धन्यवाद । उसने मेरी बहुत बड़ी जिज्ञासा का समाधान कर दिया ।
(मेरी यह पोस्ट, (तनिक हेर-फेर के साथ) रतलाम से प्रकाशित हो रहे ‘साप्ताहिक उपग्रह’ के,, 29 मई 2008 के अंक में, ‘बिना विचारे’ “शीर्षक स्तम्भ के अन्तर्गत प्रकाशित हुई है ।)

1 comment:

  1. आप साहित्य को जन-भाषा नहीं बना सकते ।
    आपको जन भाषा में साहित्य रचना पड़ेगा ।
    बहुत उच्च कोटी का विश्लेषण.
    लेख का एक-एक वाक्य वर्तमान की सच्चाई उजागर करता है.

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