भारतीय जीवन बीमा निगम देश के सबसे बड़े वित्तीय उपक्रमों में अग्रणी है । इसे लेकर आए दिनों अखबारों में ‘कुछ न कुछ’ छपता ही रहता है । इस ‘कुछ न कुछ’ में आलोचना और उपहास अधिक होता है । लेकिन जिस संस्था के ग्राहकों की संख्या 23 करोड़ से भी अधिक हो, उसे लेकर ऐसा छपना न तो अनूठी बात है और न ही अनपेक्षित । लेकिन यह देखकर दुख अवश्य होता है कि इसकी विशेषताओं, उपलब्धियों और अनोखेपन को लेकर कभी कुछ नहीं छपा । यह शायद इसलिए कि हर कोई यह मानकर चलता है कि चूँकि इस संस्था को इतना अच्छा, इतना अनूठा, इतनी उपलब्धियों वाली तो होना ही चाहिए और यदि यह ऐसी ही है तो इसमें कहने की क्या बात है ? इस मायने में यह घर का जोगी जोगडा, आन गांव का पीर' वाली कहावत का शिकार हो रहा है । लेकिन ‘बाजारवाद और मार्केटिंग’ के इस समय में यदि अच्छी बातें सामने नहीं लाई जाएँ तो नकारात्मक छवि के प्रगाढ़ होने का खतरा बढ़ता ही जाता है । चूँकि मैं इसी संस्थान से सम्बध्द हूँ और इसीने मुझे यह स्थिति दी है कि मैं ‘रोटी-कपड़ा-मकान’ की चिन्ताओं से मुक्त होकर अपने शौक पूरे कर सकूँ इसलिए मुझे लगता है कि इसकी अच्छाइयाँ, अनूठापन, उपलब्धियाँ मैं ने उजागर करनी ही चाहिए ।
अनेक सन्दर्भों में अनूठा यह उपक्रम देश का एकमात्र ऐसा वित्तीय संस्थान है जिसके निवेश पर भारत सरकार ने शत प्रतिशत ग्यारण्टी दे रखी है । इसीलिए यह संस्थान अपनी विशाल धनराशि को भारत सरकार के निर्देशों के अनुरूप ही निवेश करने को बाध्य है । सराकर के इस कड़े नियन्त्रण के कारण, बीमाधारकों की रकम के दुरुपयोग की आशंका शून्यवत हो जाती है । इसे अपनी धनराशि अनिवार्यतः केन्द्रीय और राज्यों की शासकीय परियोजनाओं, योजनाओं, उपक्रमों में ही निवेश करनी पड़ती है । स्टाक मार्केट में भारतीय जीवन बीमा निगम, बहुत बड़ा निवेशक है जबकि इसके द्वारा निवेश की जाने वाली रकम इसके सकल फण्ड का बहुत ही छोटा हिस्सा होती है । लेकिन यह छोटा सा हिस्सा भी इतना बड़ा और इतना भारी होता है कि स्टाक मार्केट जब भी स्थानीय कारणों से संकट में आता है तो सरकार भारतीय जीवन बीमा निगम को मैदान में उतार कर बाजार के मिजाज को बनाए रखती है ।
1956 में भारत सरकार द्वारा 50 करोड रुपयों की पूँजी से यह शासकीय उपक्रम शुरु हुआ था । प्रतिवर्ष, अपनी अतिशेष (सरप्लस) रकम का 95 प्रतिशत भाग ग्राहकों के बोनस के लिए रखकर शेष 5 प्रगतिशत रकम इसे अनिवार्यतः भारत सरकार को देनी ही होती है । अपनी स्थापना से लेकर अब तक यह उपक्रम इस 5 प्रतिशत रकम के रूप में एक पंचवर्षीय योजना की रकम के बराबर का योगदान भारत सरकार को कर चुका है । भाजीबीनि के बीमाधारक ग्राहकों को यह जानकर अतिरिक्त आत्म सन्तोष और गर्व होगा कि प्रीमीयम के रूप में चुकाई गई उनकी रकम सीधे-सीधे राष्ट्र निर्माण में प्रयुक्त होती है ।
देश भर में इसकी 2048 शाखाएँ काम कर रही हैं । देश का यह ऐसा एकमात्र वित्तीय संस्थान है जिसके धन संग्रहण के आँकड़े प्रतिदिन भारतीय संसद को नियमित रूप से अनिवार्यतः सूचित किए जाते हैं । इसके दैनिक संग्रहण आँकड़े के बारे में जनसामान्य को कोई जानकारी नहीं है । यह जानकर लोगों को अविश्वसनीय आश्चर्य होता है कि यह उपक्रम लगभग डेड़ सौ करोड़ रुपये प्रतिदिन संग्रहण करता है । इस आँकड़े को एक विशेष सन्दर्भ में देखने पर इसका महत्व अनुभव हो सकेगा । देश में कोई भी बीमा कम्पनी प्रारम्भ करने के लिए एक सौ रुपयों की ग्यारण्टी मनी जमा करानी पड़ती है । अर्थात्, भाजीबीनि प्रतिदिन डेड़ बीमा कम्पनी की ग्यारण्टी मनी संग्रहण करता है ।
किसी भी वित्तीय संस्थान की साख उसकी भुगतान स्थिति से ही बनती-बिगड़ती है । यह जानकर हर
कोई अविश्वास ही करेगा कि दावों के भुगतान के मामले में यह उपक्रम बरसों से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रथम बना हुआ है । दुनिया की कोई भी बीमा कम्पनी अब तक इसके रेकार्ड को छू नहीं पाई है । यह उपक्रम प्रतिवर्ष, इसे मिलने वाले दावों में से 95 से 97 प्रतिशत दावों का भुगतान करता है । लम्बित दावों का प्रतिशत सामान्यतः केवल 3 से 5 तक रहता है । यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कई दावे इसे मार्च महीने में (अर्थात् वित्तीय वर्ष के अन्त में) प्राप्त होते हैं जो सामान्यतः लम्बित ही रहते हैं । हम भारतीय जब एक बार पलक झपक रहे होते हैं तब यह ‘निगम‘ एक दावे का भुगतान कर रहा होता है ।
इसकी टोपी का एक पंख सबसे शोख, चटकीले और गहरे रंग का ऐसा है जो इसे एक बार फिर सबसे अलग और सबसे ऊपर स्थापित करता है । निगमित क्षेत्र में यह सर्वाधिक आय कर चुकाने वाला संस्थान् है ।
ऐसी और कई विशेषताओं और अनूठेपन के कारण इस संस्थान् को ‘भारत सरकार का कुबेर‘ कहने में मुझे कोई संकोच नहीं होता ।
लेकिन अपने ग्राहकों की देनदारियाँ चुकाने के मामले में जो अनूठापन इसे दुनिया भर की समस्त वित्तीय संस्थाओं में सिरमौर बनाता है और जिसे प्रस्तुत करने के लिए ही मैं ने यह पोस्ट लिखनी शुरु की थी, वह अब आज नहीं, कल ।
तब तक, यदि आपने अब भारतीय जीवन बीमा निगम की इन विशेषताओं पर गौर नहीं किया हो तो अब गौर कर इस पर गर्व कीजिए और यदि आपने इसकी कोई बीमा पालिसी ले रखी है तो अतिरिक्त गर्व कीजिए कि देश की विभिन्न योजनओं को पूरा करने में आप भी परोक्षत: भागीदार हैं
बहुत अच्छी पोस्ट !
ReplyDeleteइस दुधारू गाय पर बहुत लोगों की निगाह थी कि इसे भी अपने घर बांध लें और सरकार की नियंत्रण क्षमता उन के पास चली जाए।
ReplyDeleteआज बाजार अर्थव्यवस्था की दुर्द्शा देख कर कोई भी सोच सकता है कि ऐसी दुधारू गउओं का नियंत्रण सामाजिक-सार्वजनिक क्षेत्र में होना ही बेहतर है।
अमरीका में एक बीमा कंपनी को संकट से उबारने को सरकारी धन की जरूरत है। भारत में वही संकट से उबारने का साधन बनी हुई है।
बहुत सुंदर जानकारी |
ReplyDeleteमज़ा आ गया। मैं भी भाजीबीनि का ग्राहक हूं। भाजीबीनि अच्छा नाम है।
ReplyDeleteजी सर मैंने भी गत अक्टूबर में इसकी परीक्षा पास की है और एजेंट बना हूँ, हालांकि व्यस्तताओं की वजह से मेरी एजेंसी खतरे में है, लेकिन मैं तो LIC का ही फ़ैन हूँ और अभी तक की मेरी सभी पॉलिसियाँ इसी संस्थान से हैं… विदेश से आये "काले बादलों" का क्या भरोसा… LIC के इस नीले आसमान के नीचे हम सुरक्षित तो हैं… :)
ReplyDeleteरेस्पेक्टेड बैरगिज़ी,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा पोस्ट लिखा है, धन्यवाद. कुछ आँकड़े करेक्शन करना है.
१. आरंभिक मूल पूंजी जो की भारत सरकार द्वारा लगाई गई थी वह ५ करोड़ है न की ५० करोड़.
२. दावा भुगतान का रेशियो ९८.५% है.
३.इसकी कुल संपत्तियो का मूल्य भारत सरकार की कुल संपत्तियो से ज़्यादा है.
४.यह एक मात्र संस्था है जो बकाया भुगतान हेतु प्राप्तकर्ताओ को ढूँढने हेतु अभियान चलती है.
५.जहाँ तक संभव हो मृत्यु दावों का चेक घर जा कर प्रदान करती है.
६.रतलाम मे मैने रेलवे, एम.पी.ई.बी आदि कई संस्थाओं के कर्मचारियों को कहते सुना है की हमारे किसी साथी की मृत्यु
होने पर सबसे पहले चेक एल.आई.सी. से मिलता है, जिस वक्त रुपयो की सबसे ज़्यादा आवश्यकता होती है.
जहाँ हम जीवन भर काम करते है वहाँ से बाद मे मिलता है.
अत्यंत सुंदर लिखा हैं विष्णु जी , और यही कारण हैं की आज प्रतियोगिता के १२ वर्षो बाद भी भा जी बी निगम ने बीमा क्षेत्र मैं अपना प्रभुत्व कायम रखा हैं. आज सरकार की नवउदारवादी पलिसीयो के कारण उदारीकरण और निजीकरण जैसे राहू केतु हमारे संस्थान के ऊपर मंडरा रहे हैंऔर जब तक इन पॉलिसियो को परास्त नहीं किया जाता तब तक हम असुरक्षित हैं .....अतः हमारे आंदोलनों को सडको और आम जनता तक सही मुद्दों के साथ ले जाना अवश्यम्भावी हो गया हैं ........
ReplyDelete