अपना नाम न देने के अनुरोध सहित, जयपुर के एक ब्लॉगर मित्र ने सन्देश दिया है - ‘आपके ब्लॉग पर बीमा सम्बन्धी सलाह मुफ्त मिलने का सन्देश अच्छा लगा। मैं चालीस साल का युवक हूँ। पत्नी के अलावा एक पुत्र है। आजकल की जीवन शैली और बीमारियों के मद्देनजर एक मेडिकल पॉलिसी लेना चाहता हूँ। कृपया समुचित सलाह दें।’
1991 से, जब हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंहजी पहली बार देश के वित्त मन्त्री बने थे, देश वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के रास्ते पर चल पड़ा है। इससे किसका कितना भला हुआ यह जानने में तो भरपूर समय लगता है किन्तु हममें से प्रत्येक को यह बात बिना कोशिशों के ही मालूम होने लगी है (और हम इस ‘मालूम होने’ से बच नहीं पा रहे हैं कि) स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कारक इतने मँहगे हो गए हैं कि बीमार होना और बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराना, विलासिता-सूची में शामिल हो गया है।
प्रस्तुत प्रश्न को मैं इसी सन्दर्भ में देख रहा हूँ।
मेरा उत्तर पढ़ने के बाद आपको कोई पूछताछ न करनी पड़े और यदि करनी पड़े तो कम से कम करनी पड़े, इसलिए विस्तार से उत्तर दे रहा हूँ।
साधारण बीमा क्षेत्र में चार सरकारी कम्पनियाँ कार्यरत हैं - युनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं. लि., न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कं. लि., नेशनल इंश्योरेंस कं. लि. और ओरीयण्टल इंश्योरेंस कं. लि.। आप इनमें से किसी भी कम्पनी से ‘मेडीक्लेम बीमा पॉलिसी’ ले लें।
मेरी सलाह यह है कि आप अपने पूरे परिवार के लिए पॉलिसी लें। इससे दो लाभ सीधे-सीधे होंगे। पहला - आपको प्रीमीयम पर, 10 प्रतिशत की ‘परिवार रियायत‘ मिलेगी। दूसरा - मेडीक्लेम बीमा पॉलिसी की पहली शर्त होती है कि जो बीमारियाँ आपको अभी हैं, उनके लिए आपका दावा या तो स्वीकार नहीं किया जाएगा और यदि किया जाएगा तो एक सुनिश्चित समय सीमा के पश्चात्। आप इस समय जिस आयु वर्ग में हैं, उससे अनुमान लगा रहा हूँ कि आप और आपका समूचा परिवार इस समय पूर्णतः निरोग है। ‘निरोग’ स्थिति में पॉलिसी लेने के बाद यदि ग्राहक को कोई रोग हो जाता है तो उस पर दावा देय होता है। सो, दूसरा लाभ यह है कि ईश्वर की अकृपा से यदि आपको अथवा आपके बीमित परिजन को भविष्य में कोई रोग हुआ तो उस पर दावा देय होगा।
यदि आपके पिता-माता आपके साथ हैं और आप पर आश्रित हैं तो मेरी सलाह है कि आप उन्हें भी अपनी पॉलिसी में शरीक करें। 45 वर्ष से अधिक की आयु वाले व्यक्तियों को मेडीक्लेम पॉलिसी लेते समय अपनी ईसीजी रिपोर्ट तथा शुगर टेस्ट (खाली पेट और भोजनोपरान्त) रिपोर्ट लगानी पड़ती है तथा अपने नियमित चिकित्सक से एक फार्म भरवाना पड़ता है। इनका शुल्क ग्राहक को ही चुकाना पड़ता है। आपके पिताजी-माताजी को यदि कोई रोग है तो उसका स्पष्ट और विस्तृत उल्लेख अवश्य करें। मेरा अनुभव रहा है कि कई बार एजेण्ट तथा कम्पनी के लोग भी ऐसे तथ्यों को छुपाने की सलाह दे देते हैं जो अन्ततः ग्राहक को दोहरा नुकसान कराती है - दावा भी नहीं मिलता और व्यर्थ ही उत्तेजना/असन्तोष झेलना पड़ता है।
आप अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग-अलग बीमाधन का बीमा ले सकते हैं। उदाहरणार्थ जब मैंने पहली बार यह बीमा लिया था तब मेरे और मेरी पत्नी के लिए एक-एक लाख रुपयों का तथा मेरे दोनों बेटों के लिए 15-15 हजार का बीमा लिया था। आज मेरा और मेरी पत्नी का 5-5 लाख का बीमा है और बेटों का 50-50 हजार का।
प्रीमीयम का निर्धारण प्रत्येक व्यक्ति के लिए आयु और बीमा धन के अनुसार किया जाएगा। आप यदि करदाता हैं तो मेरी सलाह है कि इस प्रीमीमय का भुगतान चेक से करें ताकि आपको आय कर छूट का लाभ मिल सके।
प्रत्येक कम्पनी यह पॉलिसी दो स्वरुपों में बेचती है।
पहला - टीपीए (थर्ड पार्टी असेसर) सहित, जिसे लोक प्रचलन में ‘केश लेस पॉलिसी’ कहा जाता है। इसमें (मेरी जानकारी के अनुसार) 6 प्रतिशत प्रीमीयम अतिरिक्त ली जाती है और दावा प्रस्तुति तथा भुगतान की प्रक्रिया ‘टीपीए’ करता है। आप चूँकि प्रदेश की राजधानी जयपुर में हैं सो सम्भव है कि ‘टीपीए’ का कार्यलय जयपुर में ही हो क्योंकि टीपीए के कार्यालय सामान्यतः प्रदेश की राजधानी-नगरों में ही खोले जा रहे हैं। अन्यथा छोटे गाँवों, कस्बों, नगरों में टीपीए के कार्यालय नहीं होते। रतलाम की जनसंख्या लगभग पौने तीन लाख है और यहाँ चारों सरकारी और कुछ निजी बीमा कम्पनियों सहित 6 कम्पनियों के कार्यालय हैं किन्तु टीपीए का कार्यालय यहाँ नहीं है। हम लोगों को भोपाल पर निर्भर रहना पड़ रहा है। टीपीए पॉलिसी पर आए दावों से बीमा कम्पनी का सम्बन्ध शून्यवत रहता है। न तो आपका एजेण्ट आपकी सहायता कर पाता है न ही बीमा कम्पनी का स्थानीय कार्यालय। सब कुछ आपके और टीपीए के बीच ही रहता है।
दूसरा स्वरुप है - बिना टीपीए। इसमें आपको प्रीमीयम कम लगेगी और आपके दावे, बीमा कम्पनी के उसी कार्यालय में प्रस्तुत किए जाएँगे जहाँ से आपने पॉलिसी ली है। इसमें आपका एजेण्ट और बीमा कम्पनी का कार्यालय आपसे सीधे सम्पर्क में रहता है। किन्तु याद रखिए बीमा करते समय एजेण्ट और बीमा कम्पनी जो उत्साह और गर्मजोशी दिखाते हैं, दावा भुगतान करते समय वह आपको कहीं नजर नहीं आएगी। आपके धैर्य की परीक्षा होगी।
इस मामले में बीमा एजेण्ट का चयन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा। आप किसी ऐसे एजेण्ट की सेवाएँ लें जो इसके सिवाय और कोई काम नहीं करता हो।
प्रत्येक व्यक्ति के व्यवसाय की प्रकृति और आयु के हिसाब से बीमा धन का निर्धारण उचित होगा। आप चूँकि परिवार के मुख्य कर्ता हैं, इसलिए आप अपना बीमा अधिक राशि का करवाएँ। आपकी श्रीमतीजी भी यदि कामकाजी हैं तो उनका बीमा भी आपके बीमे के बराबर करवाएँ। इन दिनों अधिकांश बीमा कम्पनियों ने नियम बना लिया है कि पति-पत्नी का बीमा बराबर होना चाहिए। हाँ, ऐसा शायद ही सम्भव होगा कि पति का बीमा कम और पत्नी का अधिक हो।
यह पॉलिसी लेते समय कुछ बातों का ध्यान सदैव रखिएगा -
(1) यह पॉलिसी 365 दिनों के लिए होती है। सो, इसका नवीकरण (रिन्यूअल) अनिवार्यतः 365 दिनों से पहले ही कराएँ। अधिक अच्छा होगा कि 350 दिनों में ही करा लें। यदि आप 365 दिनों की अवधि चूक गए तो आपको बीमा पॉलिसी तो फिर मिल जाएगी किन्तु वह नई पॉलिसी होगी और उस पर वे सभी प्रतिबन्ध लागू होंगे जो नई पॉलिसी पर होते हैं।
(2) समयावधि में नवीकरण इसलिए भी आवश्यक है कि यदि एक वर्ष की अवधि में आपने कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया है तो आपको, आपके बीमा धन पर 5 प्रतिशत बीमा धन का अतिरिक्त लाभ बोनस के रूप में मिलेगा। अर्थात्, आप प्रीमीयम तो चुकाएँगे एक लाख रुपये बीमाधन की किन्तु आपका बीमा धन होगा एक लाख पाँच हजार रुपये।
(3) मेडीक्लेम पॉलिसी उसी दशा में प्रभावी होगी जब आप अस्पताल में कम से कम 24 घण्टे भर्ती रहें। यह नियम काफी पुराना है जबकि चिकित्सा क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गए हैं। कई ऑपरेशन ऐसे हो गए हैं जिनके लिए पहले एक सप्ताह लगता था लेकिन आज, सवेरे अस्पताल जाकर, वही ऑपरेशन करवाकर कर आदमी शाम को घर लौट आता है। इसलिए इस मामले में पूरी स्थिति पहले ही से ही समझ लीजिएगा।
(4) यदि आप चिकित्सा कराने के लिए अस्पताल में भर्ती होते हैं और भर्ती होने से पहले आपको समय मिल जाता है तो इसकी सूचना बीमा कम्पनी को अनिवार्यतः दे दें। यदि ऐसा सम्भव न हो तो भर्ती होने के तत्काल बाद दे दें और विस्तार से सूचित कर दें कि आप किस अस्पताल में, किस कमरा नम्बर में या किस वार्ड में, किस बिस्तर पर भर्ती किए गए हैं। मुमकिन है, बीमा कम्पनी का कोई प्रतिनिधि अस्पताल पहुँच कर आपकी सूचना का सत्यापन करे।
पहली सूचना तो आप फोन पर ही देंगे। किन्तु उसके बाद पहली ही सुविधा में, सर्वोच्च प्राथमिकता पर आप यह सूचना लिखित में अवश्य दें और इसकी पावती अवश्य लें।
(5) अस्पताल से घर आने के बाद एक सप्ताह में आपको अपना दावा प्रस्तुत कर देना चाहिए। घर आने के बाद भी यदि आपका इलाज चल रहा है तो आप यह सूचना बीमा कम्पनी को दें और सूचित कर दें कि इलाज समाप्त होने के बाद, सप्ताह भर में आप अपना दावा प्रस्तुत कर देंगे।
(6) ऐसा प्रायः ही हुआ है कि बीमार होते ही आदमी अपनी मर्जी से (बेहतर चिकित्सा परामर्श/सुविधा प्राप्त करने के लिए) किसी बड़े शहर चला जाता है। अपनी मर्जी से बाहर जाने वाले ऐसे प्रकरणों में बीमा कम्पनियाँ सामान्यतः दावा स्वीकार नहीं करतीं। यदि आपको अपने शहर से अन्यत्र कहीं और इलाज करवाना है तो पहले स्थानीय डॉक्टर से परामर्श कीजिए, उनसे लिखवाइए कि आपका इलाज बाहर करवाना जरूरी है। यह आपका अभिलेखीय प्रमाण होगा कि आप अपनी मर्जी से बाहर नहीं गए, चिकित्सक के परामर्श पर गए थे।
(7) इलाज शुरु होने वाले पहले ही क्षण से आप सारे कागज सुरक्षित रखिएगा। प्रत्येक प्रिस्क्रिप्शन और उसके आधार पर खरीदी गई दवाइयों के सारे बिल, इलाज हेतु कराए गए सारे परीक्षणों की रिपोर्टें, फिल्में आपको मूलतः बीमा कम्पनी को प्रस्तुत करनी पड़ेंगी और प्रत्येक पर्ची, बिल, रिपोर्ट के पीछे सम्बन्धित डॉक्टर अथवा अस्पताल का प्रमाणीकरण कराना पड़ेगा। अपने रेकार्ड के लिए आप इनकी फोटो प्रतियाँ अपने पास रख लें।
यदि आपको लगता है कि परीक्षणों की फिल्मों/प्लेटों की आवश्यकता आपको भविष्य में हो सकती है तो आप इस हेतु लिखित अनुरोध बीमा कम्पनी को प्रस्तुत करें। आपको सारी फिल्में/प्लेटें वापस दे दी जाएँगी।
(8) कुछ बीमारियाँ ऐसी होती हैं जिनके इलाज के लिए आपको अस्पताल में तो भर्ती होना पड़ सकता है किन्तु जिनका दावा भुगतान नहीं किया जाता! ऐसी बीमारियों की सूची पॉलिसी के साथ ही आपको दे दी जाती है। इन्हें ‘एक्सक्लूजन क्लाज’ के नाम से जाना जाता है! अपने अनुभव के आधार पर बीमा कम्पनियाँ इस सूची में कमी-बेशी कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, बीमा लेने वाले की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर भी कभी-कभी कुछ बीमारियों को स्थायी अथवा अस्थायी रूप् से ‘एक्सक्लूजन क्लाज’ में शामिल कर दिया जाता है। इस बारे में, शरु में ही सब कुछ स्पष्ट रूप से समझ लें।
यदि आपकी पॉलिसी ‘टीपीए सहित’ (या कि ‘केश लेस’) है तो मुमकिन है कि अस्पतालवाले आपसे आपका बीमा पालिसी नम्बर ले लें। उस दशा में आपको, बीमा धन की रकम के बराबर तक की रकम का बिल होने पर न तो अस्पताल को भुगतान करना पड़ेगा और न ही वह सब कागजी कार्रवाई करनी पड़ेगी जो मैंने ऊपर लिखी है। यदि अस्पताल के बिल की रकम, आपके बीमा धन की रकम से अधिक हुई तो अस्पतालवाले आपसे अन्तर की रकम जमा करवा लेंगे।
विशेष - मेरी सलाह है कि आप निजी बीमा कम्पनियों से बचें। इन कम्पनियों की पॉलिसी शर्तों में ‘गुप्त शुल्क’ (हिडन चार्जेस) काफी होते हैं जो बाद में ग्राहक को कष्टदायी होते हैं। किन्तु यदि कोई एजेण्ट आपका अत्यधिक विश्वसनीय है तो आप यह दाँव खेल सकते हैं। निजी बीमा कम्पनियाँ अपने एजेण्टों को, दावा भुगतान से दूर रखती हैं जबकि सरकारी बीमा कम्पनियों के एजेण्ट, दावा भुगतान प्रक्रिया में ग्राहक को भरपूर सहायता पहुँचाते हैं।
आपको लग रहा होगा कि आपको सारी जानकारियाँ हो गई हैं। ठहरिए। ऐसा नहीं है। पॉलिसी लेते समय आपको कई सारी छोटी-छोटी जानकारियों से सामना करना पड सकता है।
बिना माँगी सलाह - मेरी, बिना माँगी सलाह है कि आप मेडीक्लेम बीमा पॉलिसी के साथ ‘व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पॉलिसी’ (पर्सनल एक्सीडेण्ट इंश्योरेंस पॉलिसी) अवश्य लें। यह पॉलिसी, दुर्घटना होने पर (यह दुर्घटना पूरे भारत में कहीं भी हो सकती है) प्रभावी होती है। इसे आप तालिका तीन में लाभ क्रमांक 1 से लेकर लाभ क्रमांक 6 तक लें। इस पॉलिसी के तहत मात्र 199 रुपयों में एक लाख रुपयों का बीमा हो जाता है। इसमें, 52 सप्ताह तक के लिए साप्ताहिक मुआवजे का प्रावधान है। याने, यदि कोई व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण, 52 सप्ताह तक काम पर नहीं जा सका तो उसे, उसकी आय के अनुसार 52 सप्ताहों तक के लिए साप्ताहिक मुआवजे की रकम भुगतान की जाएगी। इसमें स्थायी/अस्थायी, आंशिक/पूर्ण अपंगता पर भी भुगतान का प्रावधान है।
यदि आप मेडीक्लेम पॉलिसी नहीं ले रहे हैं तो भी कोई बात नहीं। यह पॉलिसी तो आप उसके बिना भी न केवल ले सकते हैं बल्कि मेरी सलाह है कि तत्काल ले ही लें।
ईश्वर से प्रार्थना है कि आप और तमाम ब्लॉगर बन्धु सपरिवार, सकुटुम्ब पूर्ण स्वस्थ रहें और आपमें से किसी को कभी भी, ऐसे दावे प्रस्तुत न करने पड़ें।
शुभ-कामनाएँ।
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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लॉग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
Vah guru ji
ReplyDeletekab miloon aapase ?
aalekh se meree beemaagni bhadak uthee hai
ReplyDeleteवाह बहुत ही अच्छे से जानकारी प्रदान की गई है जो भी लोग बीमा को बहुत जटिल मानते हैं उनके लिये तो १०० फ़ीसदी बहुत उत्तम।
ReplyDeleteअब लोगों को जगाना है कि सब टर्म इंश्योरेंस करवायें न कि एन्डोर्समेंट इंश्योरेंस।
अति उत्तम, विस्तारपूर्ण और "बड़े भाई" जैसी सलाह… सबको तुरन्त प्रभाव से मानना चाहिये…
ReplyDeleteमेडिक्लेम पॉलिसी के संबंध में इतनी सूचनापरक जानकारी के लिए मुझ सरीखे कई ब्लॉगर मित्र आपके आभारी हैं। कोटिशः साधुवाद।
ReplyDeleteसर प्रणाम ,
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा आलेख लिखा है आपने |
एक LAYMAN के जो जो बाते जरूरी हो सकती है आपने उन सब बातो का समावेश बखूबी से किया है |
बहुत बहुत आभार व शुभकामनाएं !
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