मात्र सोलह पंक्तियों का यह समाचार अविकल रूप से भी प्रस्तुत है-
बीमार बहन के लिए बना नक्सली
मंत्री को धमकाया
दमोह-मध्यप्रदेश के जल संसाधन, आवास और पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया को टेलिफोन पर जान से मारने की धमकी देने वाला अपनी बीमार बहन की जान बचाने की नीयत से नक्सली बना।
दमोह (ग्रामीण) थाने के नरसिंहगढ़ गांव के शैलेष (16) ने अपनी बहन स्वाति की बीमारी से परेशान होकर मंत्री को धमकाया था। मलैया ने भी उसकी कहानी जानने के बाद उन्हें धमकाने की पुलिस कार्रवाई वापस लेकर उसे माफ कर दिया है। दरअसल शैलेष की बहन पिछले एक साल से बे्रन हेमरेज की शिकार है। शैलेष ने मलैया से मदद मांगी तो आश्वासन मिला, लेकिन सरकारी काम ‘सौ दिन चले, अढ़ाई कोस’ की चाल से चलता है, जिसके कारण कुछ परिणाम नहीं निकला। इन हालात से निराश और परेशान शैलेष ने मन्त्री को धमकाने का दुस्साहस जुटाया और पुलिस की गिरत में पहुंच गया।
हमारे नेता और हमारी व्यवस्था किस प्रकार लोगों की अनदेखी करती है और किस प्रकार लोगों को नक्सलवादी बनाती है, यह उसका बहुत ही छोटा नमूना है।
राहुल गाँधी! कहाँ हो युवराज? सुन रहे हो?
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नक्सलवादी निर्माण करने वाली यह फैक्ट्री जब उन से लड़ने की बात करती है तो हँसी और रोना दोनों आते हैं।
ReplyDeleteजिस घटना का उल्लेख किया है, इसमें नक्सल होने का ढोंग रचा गया है. बना नहीं है.
ReplyDeleteअब कोई करे भी तो क्या करे
ReplyDeleteलोगों ने इन नेताआें की दरबार भी जा जा कर देख लिए
...बातों से मानने वाले भूत कहां हैं ये लोग
भारत में इलाज का खर्च उठाने में कितने ही घर बरबाद हो जाते हैं। जनसंख्या की समस्या तो है ही किन्तु इलाज के बिना भी तो नहीं रहा जा सकता। ये समस्याएँ ऐसी हैं कि सोचो तो मस्तिष्क फट जाए । इसलिए ही अधिकतर लोग आँखें मूँदे ही रहते हैं। मैं भी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
"मैं अपने घर का स्वामी हूं लेकिन यह कहने के लिए मुझे मेरी पत्नी की अनुमति की आवश्यकता होती है पूरी तरह अपनी पत्नी पर निर्भर । धनपतियों की दुनिया में घूमने के बाद का निष्कर्ष कि पैसे से अधकि गरीब कोई नहीं ।"
ReplyDeleteआपने अपनी पत्नी को तो आड़े हाथों ले लिया लेकिन धनपतियों को धनपशु लिखते समय घबरा गए !
घटना दुखद है मगर यह क्या कम है की लोकतंत्र में नक्सली बन्ने का विकल्प भी खुला है, नक्सली राज (साम्यवाद - चीन का ही उदाहरण ले लीजिये) में तो गरीब की ज़िंदगी मौत से भी बदतर है.
ReplyDeleteव्यवस्था में बेशक खामियां हैं, स्वार्थ और भ्रष्टाचार भी है, मगर लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यही है की उसमें परिवर्तन की, सुधार की आशा और गुंजाइश दोनों ही हैं जबकि नक्सलवाद, माओवाद, साम्यवाद, फासीवाद, नाजीवाद, आतंकवाद आदि में ऐसी किसी भी उम्मीद की निर्दय भ्रूण ह्त्या कर दी जाती है.