आज एक समाचार ने ध्यानाकर्षित किया। सात से तेरह अप्रेल वाले सप्ताह में, मध्य प्रदेश सरकार, ‘अन्धत्व निवारण’ अभियान चलाएगी। इसके अन्तर्गत, स्कूली बच्चों का नेत्र परीक्षण कर (नेत्र रोगों से पीड़ित) बच्चों का ‘नेत्र स्वास्थ्य’ सुरक्षित करना सुनिश्चित करने की कोशिश की जाएगी।
समाचार पढ़ते-पढ़ते ही विचार आया कि ऐसा अभियान तो स्थानीय निकाय से लेकर केन्द्र सरकार तक चलाया जाना चाहिए और केवल एक सप्ताह के लिए नहीं अपितु इसे तो निरन्तर चलाया जाना चाहिए क्योंकि इन निकायों/सरकारों में बैठे राजनीतिक दल और इनके नेता भी इस सीमा तक अन्धत्व-प्रभावित हैं कि इनकी चिकित्सा अविलम्ब शुरु की जानी चाहिए।
ये सबके सब, अपनी गलतियों, मूर्खताओं और भ्रष्टाचार के अपने अनुचित आचरण और दुष्कर्मों के प्रति ‘धृतराष्ट्र मुद्रा’ बनाए हुए हैं। ये सबके सब ‘सापेक्षिक अन्धे’ हैं। इन्हें अपने विरोधियों का भ्रष्टाचार तो नजर आता है किन्तु अपने ‘करिश्मे’ नजर नहीं आते।
ये इतने ‘चतुर-नेत्र’ हैं कि इन्हें विरोधियों का भ्रष्टाचार फौरन ही (और कभी-कभी तो, होने से पहले ही) नजर आ जाता है और अपना भ्रष्टाचार, बार-बार दिखाने पर भी दिखाई नहीं देता। ‘अन्धत्व-निवारण’ से इनका मतलब ‘स्वयम् के भ्रष्टाचार के प्रति अन्धे बने हुए विरोधियों का अन्धत्व निवारण’ होता है, ‘अपने भ्रष्टाचार के प्रति बरते जा रहे अपने अन्धत्व का निवारण’ नहीं। ये सबके सब जानते हैं कि खुद का अन्धत्व दूर करना अधिक आसान और सामनेवाले का अन्धत्व दूर करना ‘असम्भवप्रायः’ होता है। किन्तु सम्भवतः दो कारणों से इन्हें यह कठिन काम करने में अधिक आनन्द आता है। पहला - दूसरे के उपचार में लापरवाही बरती जा सकती है, खुद के उपचार में नहीं। दूसरा - अपने से पहले सामनेवाले की रोजी-रोटी की चिन्ता करते हैं। यदि खुद का अन्धत्व मिटा लिया तो सामनेवाला बेरोजगार हो जाएगा।
हम भारतीय अपने से पहले सामनेवाले की चिन्ता करते हैं। उसकी सेवा करने में
कोई कसर नहीं छोड़ते। परोपकारी जो हैं! इसीलिए, यह जानते हुए भी कि खुद का अन्धत्व निवारण करना अधिक आवश्यक और अधिक आसान है, हम दूसरों के अन्धत्व निवारण को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे।
अपना क्या है? अपना अन्धत्व तो जिस क्षण चाहेंगे, उसी क्षण दूर कर लेंगे। हमें अन्धत्व की और उसे दूर करने के उपायों की जानकारी भली प्रकार है।
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वाह बहुत जोरदार बात लिखी है. पर अगर अपने भ्रष्टाचार को मिटाने की सोचेंगे तो फिर राजनीति में आने का मुख्य उद्देश्य ही ख़त्म हो जायेगा
ReplyDeleteजो अन्धे पैदा हुये हैं, उनके लिये है यह योजना। जो जान के अन्धे बने बैठे हैं, उनका क्या? सटीक अवलोकन।
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