यह खबर कौन छापेगा?


अभी तीन दिन इन्दौर में रहा। काम कम और फुरसत अधिक। कुछ ऐसी कि लगभग पूरी तरह से फुरसत। बेटी-बेटे, महू नाका चौराहे पर, एक बहु-मंजिला इमारत की दूसरी मंजिल पर रहते हैं। अन्नपूर्णा मन्दिर जानेवाली सड़क के समानान्तर ही जाती है - फूटी कोठी और रणजीत हुनमान मन्दिर पहुँचानेवाली  सड़क। इसी के, चौराहेवाले कोने पर बड़े सवेरे, अखबार विक्रेता अपना अड्डा जमा लेते हैं। उनका आना, अखबार लानेवाले वाहनों की प्रतीक्षा करना, वाहनों के आते ही, जल्दी से जल्दी, अपने-अपने ढेर उतारना, उन्हें टेबलों पर रखना, अपनी-अपनी सायकिलें लिए, सामने और आसपास खड़े हॉकरों के हिसाब से उन्हें प्रतियाँ थमाना आदि-आदि सब कुछ, बेटों के निवास की खिड़की से साफ-साफ दिखाई देता है। 

चूँकि सब कुछ लगभग पूर्वनिर्धारित ही रहता है, इसलिए, चहल-पहल तो भरपूर रहती है किन्तु बातें बहुत ही कम। बहुत जरूरी हो तो ही बात होती है अन्यथा एक ने अखबार की प्रतियाँ दीं, दूसरे ने लेकर अपनी सायकिल पर जमाई। उनके ठीक-ठीक जमने की तसल्ली करने के लिए जोर से दो-चार बार थपथपाईं और चल दिए। सबको, सबसे पहले जाने की जल्दी। इस बीच, चाय भी आ जाती है, बिना किसी मनुहार के सब अपना-अपना ग्लास उठा लेते हैं। चाय पी। खाली ग्लास एक तरफ रखा और अगला काम शुरु। किसी को किसी की परवाह नहीं। बस! एक ही धुन - सबसे पहले निकल जाना है। हर एक इतनी जल्दी में कि बेचारा सूरज अपनी पहली किरण फेंक कर देखता है तो शायद ही कोई नजर आए। घुप अँधेरे से अपने काम की शुरुआत कर, मुँह अँधेरे तक सब अपना-अपना काम कुछ इस तरह से निपटाते हैं मानो सूरज उनका कोई ‘टे्रड सीक्रेट’ देख न ले।

लगातार तीन दिन, ब्राह्म मुहूरतों में मैंने इस जीवन्त दृष्य श्रृंखला का आनन्द लिया। मैं सबको ध्यान से देखता रहा किन्तु मेरी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अखबार लो, पैसे दो। बस!

तीनों ही दिन, तीन अखबार लिए - नईदुनिया, भास्कर और पत्रिका। हाँ, सान्ध्य दैनिक प्रभातकिरण भी तीनों ही दिन लिया किन्तु उसके लेने में ऐसे आनन्द का सहस्रांश भी नहीं।

अखबारों की हालत किसी से छुपी नहीं। विज्ञापन ही विज्ञापन। समाचार-सामग्री की स्थिति कुछ ऐसी कि मानो अखबार को अखबार बताना जरूरी न हो तो विज्ञापन के सिवाय और कुछ छापा ही नहीं जाए। ऐसे में अखबार, केवल कहने भर को अखबार। पठनीय कम और दर्शनीय तो उससे भी कम। लेकिन आदत की बात। जब तक अखबार न देखो तब तक न देखने की बेचैनी और देखने के बाद, खुद पर हुई ‘आखिरकार देखा ही क्यों’ की खीझ।

इस सबके बीच ही अखबारों की कीमतों और पृष्ठ संख्या पर ध्यान गया तो वह बात सामने आई जिसके कारण यह सब लिखना पड़ा। अचानक ही यह ज्ञान प्राप्ति हुई कि ‘दाम और माल’ के मामले में हम रतलामवालों के साथ कुछ अनुचित किया जा रहा है, असमानता बरती जा रही है। आँकड़े खुद ही सारी बात कह देते हैं -

नईदुनिया 
शनिवार, 12 जनवरी को - 
इन्दौर में - 24 पृष्ठ,  2/- रुपये। रतलाम में - 20 पृष्ठ, 2/- रुपये।

रविवार, 13 जनवरी को -
इन्दौर में - 52 पृष्ठ, 5/- रुपये (वार्षिक केलेण्डर सहित)। रतलाम में - 24 पृष्ठ, 2/- रुपये (बिना केलेण्‍डर)।

सोमवार, 14 जनवरी को -
इन्दौर में - 20 पृष्ठ, 2/- रुपये। रतलाम में - 16 पृष्ठ, 2/- रुपये।

दैनिक भास्कर 
शनिवार, 12 जनवरी को -
इन्दौर में - 22 पृष्ठ, 2/- रुपये। रतलाम में - 20 पृष्ठ, 3.50 रुपये।

रविवार, 13 जनवरी को -
इन्दौर में - 26 पृष्ठ, 3/- रुपये। रतलाम में - 22 पृष्ठ, 4/- रुपये।

सोमवार, 14 जनवरी को -
इन्दौर में - 18 पृष्ठ, 2/- रुपये। रतलाम में - 14 पृष्ठ, 2/- रुपये।

पत्रिका 
शनिवार, 12 जनवरी को -
इन्दौर में - 36 पृष्ठ, 2/- रुपये। रतलाम में - 18 पृष्ठ, 3/- रुपये।

रविवार, 13 जनवरी को -
इन्दौर में - 40 पृष्ठ, 3/- रुपये। रतलाम में - 22 पृष्ठ, 3/- रुपये।

सोमवार, 14 जनवरी को -
इन्दौर में - 26 पृष्ठ, 2/- रुपये। रतलाम में - 16 पृष्ठ, 2/- रुपये।

सान्ध्य दैनिक प्रभातकिरण 
उपरोक्त तीनों ही दिन -
इन्दौर में - 10 पृष्ठ प्रतिदिन, 1/- रुपया। रतलाम में - 6 पृष्ठ प्रतिदिन, 1/- रुपया।

गणित के मामले में मैं शुरु से ही फिसड्डी रहा हूँ। व्यापार की सूझ आज तक नहीं आ पाई। सो, इस अन्तर का कारण समझ नहीं पा रहा हूँ। निपट देहाती आदमी हूँ सो लगता है कि या तो हम रतलामवालों ने इन्दौरवालों की, घनी अमराइयाँ काट दी होंगी या फिर, रतलाम की बेटियों ने इनकी बहू के रूप में इन्हें इतनी यातना दी होगी कि हमसे इस तरह बदला लिया जा रहा है। 

ईश्वर से प्रार्थना भी कर रहा हूँ - जैसा हम रतलामवालों के साथ हो रहा है, वैसा और किसी कस्बेवालों के साथ न हो। गाँवों-कस्बों के दम पर किस तरह शहरों को पाला-पोसा जा रहा है, उसी का एक उदाहरण यह भी है।

12 comments:

  1. गजब की पारखी नज़र

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  2. इन्दौर ही जा कर रहना पड़ेगा लगता है
    हमारे नोएडा मे तो 4 रुपए से कम का पेपर ही मिलना मुश्किल है

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  3. अखबार वाले शायद नहीं चाहते कि रतलाम वाले खबरें पढ़ें, उनकी इच्छा का प्रतिदान करके दिखा दीजिये, अखबार खरीदना बंद कर के। पाठकों की आधी संख्या ने भी कर दिया तो अखबार वाले आधी कीमत पर रतलाम विशेषांक निकालना शुरू कर देंगे ...

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  4. समाचारों के लिए अखबारों पर अब वैसी निर्भरता नहीं रही.

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  5. मैंने कभी तुलना नहीं की पर उज्जैन में भी इंदौर के बनिस्पत में अख़बार की कीमत ज्यादा होती है,

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  6. Indore me paper sastaa.. lekin logo ka time mahanga hai..

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  7. इस मामले में आपको मुम्बई से तुलना करनी चाहिए थी.

    मुम्बई में प्रतिदिन औसत 50 पृष्ठ - ( रविवार को अधिक पृष्ठ संख्या के साथ 50 पेज की 1 ग्लॉसी पत्रिका भी!) कीमत वही 2 रुपए.

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  8. यह तो सरासर अन्याय है रतलाम वालों के साथ..

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  9. Ravishankarji ! Bairagiji Hindi newspaper ki baat kar rahe hain.Mumbai me Navbharat Times (Hindi) dainik total pages 10 price Rs.4/- kabhi-kabhi pages 12 bhi hote hain.

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  10. यही स्थिति खंडवा मे भी रहती है,क्योंकि मैंने 3 साल तक खंडवा और इंदौर दोनों जगहो पर अखबार लिए और पढे है । 99.9 % विज्ञापन इंदौर से ही मिलते है,इसलिए इंदौर के पाठकों को कम दाम पर अधिक न्यूज़ अधिक विज्ञापन के साथ मिलती है । सब माया की माया है ।

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  11. फेस बुक पर श्री सुरेशचन्‍द्रजी करमरकर, रतलाम की टिप्‍पणी -

    वाह! भाई! क्‍या विश्‍लेषण है? बात सही है। इसका असर होगा।

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