अनायास मिली खुशी




यदि केलेण्डर बदलने के पहले दिन को नव वर्ष की शुरुआत मानी जाए तो मुझे वर्ष 2013 के पहले ही दिन अत्यधिक आह्लादकारी, सारस्वत भेंट मिली है। इस क्षण, दुनिया में मुझसे अधिक प्रसन्न और आनन्दित शायद ही कोई हो।


मेरे आत्मीय आशीष दशोत्तर के गजल संग्रह ‘लकीरें’ का उल्लेख, ‘जनसत्ता’ की, कविता संग्रहों की वार्षिक समीक्षा (‘ठहराव के बावजूद’, समीक्षा श्री राजेन्द्र उपाध्याय) में प्रशंसा सहित किया गया है। साहित्यिक हलकों में आशीष की मौजूदा स्थिति के मद्-ए-नजर, आशीष और ‘लकीरें’ को लेकर छपी, दस शब्दों की एक पंक्ति मुझे आशीष के अभिनन्दन-पत्र से कम नहीं लग रही।
आशीष के चार काव्य संग्रह और चार गद्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वह नव साक्षर लेखन से भी जुड़ा है। इस अभियान के अन्तर्गत लिखी उसकी एक पुस्तक का अनुवाद तमिल में भी हुआ है।
आशीष आनेवाले कल के श्रेष्ठ गजलकारों में जगह बनाएगा। उसका एक लेख मेरी इसी ब्लॉग पर, 18 दिसम्बर को प्रकाशित हो चुका है जिसमें उसकी शुरुआती गजलों की लिंक भी दी गई है।
मेरे यहाँ ‘जनसत्ता’ एक दिन देर से आता है। गए कुछ दिनों से यह दो दिन देर से आ रहा है। (अपनी यह वेदना मैं फेस बुक पर प्रकट कर चुका हूँ।) इसी कारण, ‘जनसत्ता’ का, तीस दिसम्बरवाला अंक दो दिन देर से आज, नए केलेण्डर वर्ष के पहले दिन आया और प्रसन्नता की यह स्थिति बन गई।
पहले मैंने आशीष को बधाई दी। फिर खुद को। आशीष यदि आपके आसपासवालों में शरीक है तो आप भी उसे बधाई और आशीर्वाद अवश्य दें। उसका मोबाइल नम्बर 98270 84966 है।
आशीष हमारा आनेवाला कल है - उजला, आश्वस्तिदायक और यशदायक कल।
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‘लकीरें’ की एक गजल
आदमी हैरान है
लाचार परेशान है।
भीड़ है चारों तरफ
जाने कहाँ इंसान है।
काशी-काबा हो आए
देखा नहीं भगवान है।
जिंदगी के इस सफर में
वक्त का तूफान है।
सब सयाने हो गए
‘आशीष’ अभी नादान है।
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पता नहीं आज क्‍या हुआ कि ब्‍लॉग पर पोस्‍ट करना दिन भर सम्‍भव नहीं हुआ।
तकनीक से अनजान  मुझ जैसे आदमी के लिए आज का यह त्रास अवर्णनीय रहा।

5 comments:

  1. आप को और आशीष को बधाई! आप को ऐसी खुशियाँ मिलती रहें। (किसी दिन मेरी किताब भी छपे और उस की समीक्षा भी हो)

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  2. आपकी तो किताब नहीं, किताबें अब तक छप जानी चाहिए थीं लेकिन आपने ही रूचि नहीं ली होगी। 'तीसरा खम्‍भा' के तो कई खण्‍ड छप सकते हैं।

    इस मामले में आपसे अधिक उत्‍कण्‍ठा और प्रतीक्षा मुझे रहेगी।

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  3. आशीष भाई को बहुत बहुत बधाई । पहली ग़ज़ल ही शानदार है तो बाकी और भी जानदार होगी ।

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  4. निश्चय ही आशीष अपना स्थान बना लेंगे, हम सब आशान्वित हैं।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.