कर दी अंग्रेजी की हिन्दी

हिन्दी के साथ अब जो  हो जाए, कम है। ‘बोलचाल की भाषा’ के नाम पर अब तक तो हिन्दी के लोक प्रचलित शब्दों को जानबूझकर विस्थापित कर उनके स्थान पर जबरन ही अंग्रेजी शब्द ठूँसे कर भाषा भ्रष्ट की जा रही थी। किन्तु अब तो हिन्दी का व्याकरण ही भ्रष्ट किया जा रहा है।

दुनिया की तमाम भाषाओं के व्याकरण का सामान्य नियम है कि जब भी कोई शब्द अपनी मूल भाषा से किसी इतर (दूसरी) भाषा में जाता है तो उस पर उस दूसरी (इतर) भाषा का व्याकरण लागू होता है। इसलिए, यदि किसी दूसरी भाषा का कोई शब्द हिन्दी में आता है तो उस पर हिन्दी का व्याकरण लागू होगा न कि उस शब्द की मूल भाषा का। इसी नियम के अन्तर्गत हिन्दी का कोई शब्द किसी दूसरी भाषा में जाएगा तो उस पर उसी भाषा का व्याकरण लागू होगा, हिन्दी का नहीं। इसीलिए हिन्दी से अंग्रेजी में गए शब्दों पर अंग्रेजी का ही व्याकरण लागू होता है। उदाहरणार्थ हिन्दी के ‘समोसा’, ‘इडली’, ‘डोसा’ अंग्रेजी में गए तो वहाँ उनका बहुवचन रूप ‘समोसाज’, ‘इडलीज’, ‘डोसाज’ (या कि ‘समोसास’, ‘इडलीस’, ‘डोसास’) होता है न कि हिन्दी बहुवचन रूप ‘समोसे’, ‘इडलियाँ’, ‘डोसे’। 
इसी तरह अंग्रेजी के शब्द जब भी हिन्दी में आएँगे तो उन पर हिन्दी का व्याकरण लागू होगा न कि अंग्रेजी का। इसीलिए अंग्रेजी से हिन्दी में आए अधिसंख्य शब्दों के बहुवचन रूप हम हिन्दी व्याकरण के अनुशासन से ही प्रयुक्त कर रहे हैं जैसे कारें, रेलें, लाइटें, सिगरेटें, मोटरें, सायकिलें आदि। 

किन्तु इन दिनों अंग्रेजी शब्दों को हिन्दी में प्रयुक्त करते समय उनके अंग्रेजी बहुवचन रूप प्रयुक्त करने का भोंडा और खतरनाक चलन शुरु हो गया है। जैसे प्रोफेसर्स, डॉक्टर्स, टीचर्स, स्टूडेण्ट्स आदि। यह गलत है। ऐसा करने से पहले शायद किसी ने सोचने-विचारने की आवश्यकता ही नहीं समझी। इनके स्थान पर प्रोफेसरों, डॉक्टरों, टीचरों,  स्‍टूडेण्‍टों प्रयुक्त किया जाना चाहिए।

लेकिन अब तो कोढ़ में खाज जैसी दशा हो रही है। इसका एक नमूना यहाँ प्रस्तुत है।


यह उज्जैन से प्रकाशित एक सान्ध्यकालीन अखबार की कतरन है। उज्जैन की पहचान कवि कालीदास और राजा विक्रमादित्य से होती है। यह सोलह आना हिन्दी इलाका है जहाँ अंग्रेजी जानने/समझनेवालों का प्रतिशत दशमलव शून्य के बाद का कोई अंक ही होगा। किन्तु बोलचाल की भाषा के नाम पर अंग्रेजी बहुवचन का भी बहुवचन कर दिया गया है। यह हमारी मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा है। 

किसी की अवमानना कर देने के लिए जब भी कोई ‘अरे! उसकी तो हिन्दी हो गई।’ कहता है तो मुझे मर्मान्तक पीड़ा होती है। ऐसा बोलते/कहते समय हम हिन्दी की अवमानना कर रहे हैं यह किसी को सूझ नहीं पड़ती। किन्तु यदि उसी लोक वाक्य का सहारा लिया जाए तो कहना पड़ेगा - ‘इस अखबार ने अंग्रेजी की हिन्दी कर दी।’

राष्ट्रकवि मैथिली शरणजी गुप्त ने बरसों पहले निश्चय ही इसी दशा को भाँप लिया था और कहा था -

‘हम क्या थे, क्या हैं, और क्या होंगे अभी!’
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10 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " रामायण की दो कथाएं.. “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. प्राध्यापकों, चिकित्सकों, शिक्षकों या छात्रों कहने में जिव्हा टेढ़ी तो नहीं हो जाती है । जैसी है हिन्दी वैसी कहने में इज्जत तो नहीं चली जाती है ।

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  3. वाह...
    सही व सटीक शिक्षा
    यदि इस आलेख को
    सभी पढ़ लें
    तो हिन्दी अपने आप ही सुधर जाएगी
    सादर

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  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 25 जुलाई 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-07-2016) को "सावन आया झूमता ठंडी पड़े फुहार" (चर्चा अंक-2414) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. यह गम्भीर चिंता का विषय है . छोटे-छोटे समाचार पत्र की बात क्या? यहाँ तो हर दिन ही कई नामी-गिरामी समाचार पत्रों में आजकल यह खेल खूब दिल खोलकर खेला जा रहा है, जिसे देश के अधिकांश जनता पढ़ती है, लेकिन बोले भी तो क्या बोले, तूती उनकी बोली जाती है , कौन पूछने वाला ... इन समाचार पत्रों में हिंदी नाम भर की रह गयी है ..,.

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  7. विष्णु जी, विचारणीय सवाल किया है आपने। असल में आज की पिढ़ी तो व्याकरण को महत्व ही नहीं देती है। चाहे वह किसी भी भाषा का हो। उन्हें सही क्या है और गलत क्या है ये ही पता नहीं होता। ऐसे में हम उनसे सही भाषा में बोलने की या लिखने की उम्मिद कैसे कर सकते है?

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  8. आज की पीढी तो कोई भी भाषा हो अधकचरी ही बोलती है। लेकिन समाचार माध्.मों को ध्यान रखना चाहिये कि वे हिनदी शब्दों का ही व्वहार करें, जैसे कि सुशील जी ने कहा।

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  9. "गार्डसों"- ये तो लेडिजों जैसा उदाहरण हो गया।

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  10. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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